महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-040
दिखावट
← आश्रमवासिकपर्व-039 | महाभारतम् पञ्चादशपर्व महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-040 वेदव्यासः |
आश्रमवासिकपर्व-041 → |
युधिष्ठिरेण धृतराष्ट्रादिनिधनश्रवणेन भ्रातृभिः सह सकरुणं परिदेवनपूर्वकं सतिसंस्कृताग्नौ तेषां वृथाग्निना दाहं प्रत्यनुशोचनम्।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 15-40-1x |
तथा महात्मनस्तस्य तपस्युग्रे च तस्थुषः। अनाथस्येव निधनं तिष्ठत्स्वस्मासु बन्धुषु।। | 15-40-1a 15-40-1b |
दुर्विज्ञेया गतिर्ब्रह्मन्पुरुषाणां मतिर्मम। यत्र वैचित्रवीर्योसौ दग्ध एवं वनाग्निना।। | 15-40-2a 15-40-2b |
यस्य पुत्रशतं श्रीमदभवद्बाहुशालिनः। नागायुतबलो राजा स दग्धो हि दवाग्निना।। | 15-40-3a 15-40-3b |
यं पुरा पर्यवीजन्त तालवृन्तैर्वरस्त्रियः। तं गृध्राः पर्यवीजन्त दावाग्निपरिकालितम्।। | 15-40-4a 15-40-4b |
सूतमागधसङ्घैश्च शयानो यः प्रबोध्यते। धरण्यां स नृपः शेते विकृष्टो गृध्रवायसैः।। | 15-40-5a 15-40-5b |
न च शोचामि गान्धारीं हतपुत्रां यशस्विनीम्। पतिलोकमनुप्राप्तां तथा भर्तृव्रते स्थिताम्।। | 15-40-6a 15-40-6b |
पृथामेव च शोचामि या पुत्रैश्वर्यमृद्धिमत्। उत्सृज्य् सुमहद्दीप्तं वनवासमरोचयत्।। | 15-40-7a 15-40-7b |
धिग्राज्यमिदमस्माकं धिग्बलं धिक्पराक्रमम्। क्षत्रधर्मं च धिग्यस्मान्मृता जीवामहे वयम्।। | 15-40-8a 15-40-8b |
सुसूक्ष्मा किल लोकस्य गतिर्द्विजवरोत्तम। यत्समुत्सृज्य राज्यं सा वनवासमरोचयत्।। | 15-40-9a 15-40-9b |
युधिष्ठिरस्य जननी भीमस्य विजयस्य च। अनाथवत्कथं दग्धा इति मुह्यामि चिन्तयन्।। | 15-40-10a 15-40-10b |
वृथा संतर्पितो वह्निः खाण्डवे सव्यसाचिना। उपकारमजानन्स कृतघ्न इति मे मतिः।। | 15-40-11a 15-40-11b |
यत्रादहत्स भगवान्मातरं सव्यसाचिनः। कृत्वा यो ब्राह्मणच्छद्म भिक्षार्थी समुपागतः।। | 15-40-12a 15-40-12b |
धिगग्निं धिक् च पार्थस्य विश्रुतां सत्यसन्धताम्। इदं कष्टतरं चान्यद्भगवन्प्रतिभाति मे।। | 15-40-13a 15-40-13b |
वृथाऽग्निना समायोगो यदभूत्पृथिवीपतेः। तथा तपस्विनस्तस्य राजर्षेः कौरवस्य ह।। | 15-40-14a 15-40-14b |
कथमेवंविधो मृत्युः प्रशास्य पृथिवीमिमाम्।। | 15-40-15a |
तिष्ठत्सु मन्त्रपूतेषु तस्याग्निषु महावने। वृथाऽग्निना समायुक्तो निष्ठां प्राप्तः पिता मम।। | 15-40-16a 15-40-16b |
मन्ये पृथा वेपमाना कृशा धमनिसंतता। हा तात धर्मराजेति मामाक्रन्दन्महाभये।। | 15-40-17a 15-40-17b |
भीम पर्याप्नुहि भयादिति चैवाभिवाशती। समन्ततः परिक्षिप्ता माताऽभून्मे दवाग्निना।। | 15-40-18a 15-40-18b |
सहदेवः प्रियस्तस्याः पुत्रेभ्योधिक एव तु। न चैनां मोक्षयामास वीरो माद्रवतीसुतः।। | 15-40-19a 15-40-19b |
तच्छ्रुत्वा रुरुदुः सर्वे समालिङ्ग्य परस्परम्। पाण्डवाःक पञ्च दुःखार्ता भूतानीव युगक्षये।। | 15-40-20a 15-40-20b |
तेषां तु पुरुषेन्द्राणां रुदतां रुदितस्वनः। प्रासादाभोगसंरुद्धे अन्वरौत्सीत्स रोदसी।। | 15-40-21a 15-40-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि नारदागमनपर्वणि चत्वारिंशोऽध्यायः।। 40 ।। |
आश्रमवासिकपर्व-039 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | आश्रमवासिकपर्व-041 |