महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-010
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धृतराष्ट्रेण पौरान्प्रति दुर्योधनपक्षपातेन स्वकृतापनयक्षमापनम्।। 1 ।।
धृतराष्ट्र उवाच। | 15-10-1x |
शान्तनुः पालयामास यथावद्वसुधामिमाम्। तथा विचित्रवीर्यश्च भीष्मेण परिपालितः। पालयामास नस्तातो विदितं वो न संशयः।। | 15-10-1a 15-10-1b 15-10-1c |
यथा च पाण्डुर्भाता मे दयितो भवतामभूत्। स चापि पालयामास यथावत्तच्च वेत्थ ह।। | 15-10-2a 15-10-2b |
`अनन्तरं हि पितरमनुज्ञातो युधिष्ठिरः। नात्र किञ्चिन्मृषा जातु भाषतेति मतिर्मम।।' | 15-10-3a 15-10-3b |
मया च भवतां सम्यक् शुश्रूषा या कृताऽनघाः। असम्यग्वा महाभागास्तत्क्षन्तव्यमतन्द्रितैः।। | 15-10-4a 15-10-4b |
यदा दुर्योधनेनेदं भुक्तं राज्यमकण्टकम्। अपि तत्र न वो मन्दो दुर्बुद्धिरपराद्धवान्।। | 15-10-5a 15-10-5b |
तस्यापराधाद्दुर्बुद्धेरभिमानान्महीक्षिताम्। विमर्दः सुमहानासीदनयात्स्वकृतादथ। `घातिताः कौरवेयाश्च पृथिवी च विनाशिता।।' | 15-10-6a 15-10-6b 15-10-6c |
तन्मया साधु वाऽपीदं यदि वाऽसाधु वै कृतम्। तद्वो हृदि न कर्तव्यं मया बद्धोऽयमञ्जलिः।। | 15-10-7a 15-10-7b |
वृद्धोऽयं हतपुत्रोऽयं दुःखितोऽयं नराधिपः। पूर्वराज्ञां च पुत्रोऽयमिति कृत्वाऽनुजानथ।। | 15-10-8a 15-10-8b |
इयं च कृपणा वृद्धा हतपुत्रा तपस्विनी। गान्धारी पुत्रशोकार्ता तुल्यं याचति वो मया।। | 15-10-9a 15-10-9b |
हतपुत्राविमौ वृद्धौ विदित्वा दुःखितौ तथा। अनुजानीत भद्रं वो व्रजाव शरणं च वः।। | 15-10-10a 15-10-10b |
अयं च कौरवो राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। सर्वैर्भवद्भिर्द्रव्यः समेषु विषमेषु च। न जातु विषमं चैव गमिष्यति कदाचन।। | 15-10-11a 15-10-11b 15-10-11c |
चत्वारः सचिवा यस्य भ्रातरो विपुलौजसः। लोककपालसमा ह्येते सर्वधर्मार्थदर्शिनः।। | 15-10-12a 15-10-12b |
`चतुर्णां लोकपालानां मध्ये विपरिवर्तते।' ब्रह्मेव भगवानेष सर्वभूतजगत्पतिः।। | 15-10-13a 15-10-13b |
`एवमेव महाबाहुर्भीमार्जुनयमैर्वृतः।' युधिष्ठिरो महातेजा भवतः पालयिष्यति।। | 15-10-14a 15-10-14b |
अवश्यमेव वक्तव्यमिति कृत्वा ब्रवीमि वः। एष न्यासो मया दत्तः सर्वेषां वो युधिष्ठिरः। भवन्तोऽस्य च वीरस्य न्यासभूताः कृता मया।। | 15-10-15a 15-10-15b 15-10-15c |
यदेव तैः कृतं किञ्चिद्व्यलीकं वः सुतैर्मम। यदन्येनि मदीयेन तदनुज्ञातुमर्हथ।। | 15-10-16a 15-10-16b |
भवद्भिर्न हि मे मन्युः कृतपूर्वः कथञ्चन। अत्यन्तगुरुभक्तानामेषोऽञ्जलिरिदं नमः।। | 15-10-17a 15-10-17b |
तेषामस्थिरबुद्धीनां लुब्धानां कामचारिणाम्। कृते याचेऽद्य वः सर्वान्गान्धारीसहितोऽनघाः।। | 15-10-18a 15-10-18b |
इत्युक्तांस्तेन ते सर्वे पौरजानपदा जनाः। नोचुर्बाष्पकलाः किञ्चिद्वीक्षांचक्रुः परस्परम्।। | 15-10-19a 15-10-19b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि दशमोऽध्यायः।। 10 ।। |
15-10-7 न कर्तव्यमनुज्ञातुमिहार्हथेति क.ट.थ.पाठः।। 15-10-16 अन्येन भृत्येन। अनुज्ञातुं क्षन्तुम्।।
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