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महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-016

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महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-016
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धृतराष्ट्रेण कुन्तीस्कन्धावसक्तहस्ताया गान्धार्या अंसावलम्बनेन सशोकैः पौरैर्युधिष्ठिरादिभिश्चानुगम्यमानेन सता वनं प्रति प्रस्थानम्।। 1 ।।

वैशम्पायन उवाच। 15-16-1x
ततः प्रभाते राजा स धृतराष्ट्रोंऽबिकासुतः।
आनाय्य पाण्डवान्वीरान्वनषासे कृतक्षणः।।
15-16-1a
15-16-1b
गान्धारीसहितो धीमानभ्यनन्दद्यथाविधि।
कार्तिक्यां कारयित्वेष्टिं ब्राह्मणैर्वेदपारगैः।।
15-16-2a
15-16-2b
अग्निहोत्रं पुरस्कृत्य वल्कलाजिनसंवृतः।
वधूजनवृतो राजा निर्ययौ भवनात्ततः।।
15-16-3a
15-16-3b
ततः स्त्रियः कौरवपाण्डवानां
याञ्चापराः कौरवराजवंश्याः।
तासां नादः प्रादुरासीत्तदानीं
वैचित्रिवीर्ये नृपतौ प्रयाते।।
15-16-4a
15-16-4b
15-16-4c
15-16-4d
ततो लाजैः सुमनोभिश्च राजा
विचित्राभिस्तद्गृहं पूजयित्वा।
संयोज्याश्वैर्भृत्यवर्गं च सर्वं
ततः समुत्सृज्य ययौ नरेन्द्रः।।
15-16-5a
15-16-5b
15-16-5c
15-16-5d
ततो राजा प्राञ्जलिर्वेपमानो
युधिष्ठिरः सस्वरं बाष्पकण्ठः।
विनद्योच्चैर्गां महाराज साधो
क्व यास्यसीत्यपतत्ताति भूमौ।।
15-16-6a
15-16-6b
15-16-6c
15-16-6d
तथाऽर्जुनस्तीव्रदुःखाभितप्तो
मुहुर्मुहुर्निः श्वसन्भारताग्र्यः।
युधिष्ठिरं मैवमित्येवमुक्त्वा
निगृह्याथो दीनतरो बभूव।।
15-16-7a
15-16-7b
15-16-7c
15-16-7b
वृकोदरः फल्गुनश्चैव वीरौ
माद्रीपुत्रौ विदुरः संजयश्च।
वैश्यापुत्रः सहितो गौतमेन
धौम्यो विप्राश्चान्वयुर्बाष्पकण्ठाः।।
15-16-8a
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15-16-8c
15-16-8d
कुन्ती गान्धारीं बद्धनेत्रां व्रजन्तीं
स्कन्धासक्तं हस्तमथोद्वहन्ती।
राजा गान्धार्याः स्कन्धदेशेऽवसज्य
पाणिं ययौ धृतराष्ट्रः प्रतीतः।।
15-16-9a
15-16-9b
15-16-9c
15-16-9d
तथा कृष्णा द्रौपदी यादवी च
बालापत्या चोत्तरा कौरवी च।
चित्राङ्गदा याश्च काश्चित्स्त्रियोऽन्याः
सार्धं राज्ञा प्रस्थितास्ता वधूभिः।।
15-16-10a
15-16-10b
15-16-10c
15-16-10d
तासां नादो रुदतीनां तदाऽऽसी-
द्राजन्दुःखात्कुररीणामिवोच्चैः।
ततो निष्पेतुर्ब्राह्मणक्षत्रियाणां
विट्शूद्राणां चैव भार्याः समन्तात्।।
15-16-11a
15-16-11b
15-16-11c
15-16-11d
तन्निर्याणे दुःखितः पौरवर्गो
गजाह्वये चैव बभूव राजन्।
यथापूर्वं गच्छतां पाण्डवानां
द्यूते राजन्कौरवाणां सभायाम्।।
15-16-12a
15-16-12b
15-16-12b
15-16-12c
या नापश्यच्चन्द्रमा नैव सूर्यो
रामाः काश्चित्ताः स्म तस्मिन्नरेन्द्रे।
महावनं गच्छति कौरवेन्द्रे
शोकेनार्ता राजमार्गं प्रपेदुः।।
15-16-13a
15-16-13c
15-16-13d
15-16-13c
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि
आश्रमवासपर्वणि षोडशोऽध्यायः।। 16 ।।

15-16-9 कुन्ती गान्धारीं अनयदिति शेषः। किंभूता। अर्थाद्गान्धार्या हस्तं स्कन्धासक्तं उद्वहन्ती। कुन्ती गान्धारीमनुभर्तृ व्रजन्तीमिति क.थ.पाठः।।

आश्रमवासिकपर्व-015 पुटाग्रे अल्लिखितम्। आश्रमवासिकपर्व-017