महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-029
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युधिष्ठिरेण धृराष्ट्राभ्यनुज्ञया भ्रात्रादिभिः सह महर्षिणामाश्रमदर्शनम्।। 1 ।। शतयूपादिभिः सशिष्येण व्यासेन च युधिष्ठिरादिभिः परिवृतस्य धृतराष्ट्रस्याश्रमंप्रत्यागमनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-29-1x |
ततस्तु राजन्नेतेषामाश्रमे पुण्यकर्मणाम्। शिवा नक्षत्रसम्पन्ना सा व्यतीयाय शर्वरी।। | 15-29-1a 15-29-1b |
ततस्तत्र कथाश्चासंस्तेषां धर्मार्थलक्षणाः। विचित्रपदसञ्चारा नानाश्रुतिभिरन्विताः।। | 15-29-2a 15-29-2b |
पाण्डवास्त्वभितो मातुर्धरण्यां सुषुपुस्तदा। उत्सृज्य तु महार्हाणि शयनानि नराधिप।। | 15-29-3a 15-29-3b |
यदाहारोऽभकवद्राजा धृतराष्ट्रो महामनाः। तदाहारा नृवींरास्ते न्यवसंस्तां निशां तदा।। | 15-29-4a 15-29-4b |
व्यतीतायां तु शर्वर्यां कृतपौर्वाह्णिकक्रियः। भ्रातृभिः सहितो राजा ददर्शाश्रममण्डलम्।। | 15-29-5a 15-29-5b |
सान्तः पुरपरीवारः सभृत्यः सपुरोहितः। यथासुखं यथोद्देशं धृतराष्ट्राभ्यनुज्ञया।। | 15-29-6a 15-29-6b |
ददर्श तत्र वेदीश्च सम्प्रज्वलितपावकाः। कृताभिषेकैर्मुनिभिर्हुताग्निभिरुपस्थिताः।। | 15-29-7a 15-29-7b |
वानेयपुष्पनिकरैराज्यधूमोद्गमैरपि। ब्राह्मेण वपुषा युक्ता युक्ता मुनिगणस्य ताः।। | 15-29-8a 15-29-8b |
मृगयूथैरनुद्विग्नैस्तत्रतत्र समाश्रितैः। अशङ्कितैः पक्षिगणैः प्रगीतैरिव च प्रभो।। | 15-29-9a 15-29-9b |
केकाभिर्नीलकण्ठानां दात्यूहानां च कूजितैः। कोकिलानां कुहुरवैः सुखैः श्रुतिमनोहरैः।। | 15-29-10a 15-29-10b |
प्राधीतद्विजघोषैश्च क्वचित्क्वचिदलङ्कृतम्। फलमूलसमाहारैर्महद्भिश्चोपशोभितम्।। | 15-29-11a 15-29-11b |
ततः स राजा प्रददौ तापसार्थमुपाहृतान्। कलशान्काञ्चनान्राजंस्तथैवौदुम्बरानपि।। | 15-29-12a 15-29-12b |
अजिनानि प्रवेणीश्च स्रुक्स्रुवं च महीपतिः। कमण्डलूंश्चि स्थालीश्च पिठराणि च भारत।। | 15-29-13a 15-29-13b |
भाजनानि च लौहानि पात्रीश्च विविधा नृप। यद्यदिच्छति यावच्च यदन्यदपि काङ्क्षितम्।। | 15-29-14a 15-29-14b |
एवं स राजा धर्मात्मा परीत्याश्रममण्डलम्। वसु विश्राण्य तत्सर्वं पुनरायान्महीपतिः।। | 15-29-15a 15-29-15b |
कृताह्निकं च राजानं धृतराष्ट्रं महीपतिम्। ददर्शासीनमव्यग्रं गान्धारीसहितं तदा।। | 15-29-16a 15-29-16b |
मातरं चाविदूरस्थां शिष्यवत्प्रणतां स्थिताम्। कुन्तीं ददर्श धर्मात्मा शिष्टाचारसमन्विताम्।। | 15-29-17a 15-29-17b |
स तमभ्यर्च्य राजानं नाम संश्राव्य चात्मनः। निषीदेत्यभ्यनुज्ञातो वृस्यामुपविवेश ह।। | 15-29-18a 15-29-18b |
भीमसेनादयश्चैव पाण्डव भरतर्षभ। अभिवाद्योपसङ्गृह्य निषेदुः पार्थिवाज्ञया।। | 15-29-19a 15-29-19b |
स तैः परिवृतो राजा शुशुभेऽतीव कौरवः। बिभ्रद्ब्राह्मीं श्रियं दीप्तां देवैरिव बृहस्पतिः।। | 15-29-20a 15-29-20b |
तथा तेषूपविष्टेषु समाजग्मुर्महर्षयः। शतयूपप्रभृतयः कुरुक्षेत्रनिवासिनः।। | 15-29-21a 15-29-21b |
व्यासश्च भगवान्विप्रो देवर्षिगणसेवितः। वृतः शिष्यैर्महातेजा दर्शयामास पार्थिवम्।। | 15-29-22a 15-29-22b |
ततः स राजा कौरव्यः कुन्तीपुत्रश्च धर्मराट्। भीमसेनादयश्चैव प्रत्युत्थायाभ्यवादयन्।। | 15-29-23a 15-29-23b |
समागतस्ततो व्यासः शतयूपादिभिर्वृतः। धृतराष्ट्रं महीपालमास्यतामित्यभाषत।। | 15-29-24a 15-29-24b |
वरं तु विष्टरं कौश्यं कृष्णाजिनकुशोत्तरम्। प्रतिपेदे तदा व्यासस्तदर्थमुपकल्पितम्।। | 15-29-25a 15-29-25b |
ते च सर्वे द्विजश्रेष्ठा विष्टरेषु समन्ततः। द्वैपायनाभ्यनुज्ञाता निषेदुर्विपुलौजसः।। | 15-29-26a 15-29-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमवासिकपर्वणि आश्रमवासपर्वणि एकोनत्रिंशोऽध्यायः।। 29 ।। |
15-29-8 मुनिगणस्य मुनिगणेन। ता वैदिक्यो लौकिक्यश्च।। 15-29-9 मृगयूथादिभिरलङ्कृतमाश्रमम्।। 15-29-12 औदुम्बरान् कलशान्।। 15-29-13 प्रवेणीः कुथाः।।
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