महाभारतम्-15-आश्रमवासिकपर्व-025
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युधिष्ठिरेण नानायानारूढैः पौरैर्भ्रातृभिश्च सह धृतराष्ट्रादिदिदृक्षया शतयूपाश्रमवनप्रवेशः।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 15-25-1x |
आज्ञापयामास ततः सेनां भरतसत्तमः। अर्जुनप्रमुखैर्गुप्तां लोकपालोपमैर्नरैः।। | 15-25-1a 15-25-1b |
योगोयोग इति प्रीत्या ततः शब्दो महानभूत्। क्रोशतां सादिनां तत्र युज्यतां युज्यतामिति।। | 15-25-2a 15-25-2b |
केचिद्यानैर्नरा जग्मुः केचिदश्वैर्महाजवैः। काञ्चनैश्च रथैः केचिज्ज्वलितज्वलनोपमैः।। | 15-25-3a 15-25-3b |
गजेन्द्रैश्च तथैवान्ये केचिदुष्ट्रैर्नराधिप। पदातयस्तथैवान्ये नखरप्रासयोधिनः।। | 15-25-4a 15-25-4b |
पौरजानपदाश्चैव यानैर्बहुविधैस्तथा। अन्वयुः कुरुराजानं धृतराष्ट्रं दिदक्षवः।। | 15-25-5a 15-25-5b |
स चापि राजवचनादाचार्यो गौतमः कृपः। सेनामादाय सेनानीः प्रययावाश्रमं प्रति।। | 15-25-6a 15-25-6b |
ततो द्विजैः परिवृतः कुरुराजो युधिष्ठिरः। संस्तूयमानो बहुभिः सूतमागधबन्दिभिः।। | 15-25-7a 15-25-7b |
पाण्डुरेणातपत्रेण ध्रियमाणेन मूर्धनि। रतानीकेन महता निर्जगाम कुरूद्वहः।। | 15-25-8a 15-25-8b |
गजैश्चाचलसंकाशैर्भीमकर्मा वृकोदरः। सज्जयन्त्रायुधोपेतैः प्रययौ पवनात्मजः।। | 15-25-9a 15-25-9b |
माद्रीपुत्रावपि तथा हयारोहौ सुसंवृतौ। जग्मतुः शीघ्रगमनौ सन्नद्धकवचध्वजौ।। | 15-25-10a 15-25-10b |
अर्जुनश्च महातेजा रथेनादित्यवर्चसा। वशी श्वेतैर्हयैर्युक्तैर्दिव्येनान्वगमन्नृपम्।। | 15-25-11a 15-25-11b |
द्रौपदीप्रमुखाश्चापि स्त्रीसङ्घाः शिबिकागताः। स्त्र्यध्यक्षगुप्ताः प्रययुर्विसृजन्तोऽमितं वसु।। | 15-25-12a 15-25-12b |
समृद्धरथहस्त्यश्वं वेणुवीणानुनादितम्। शुशुभे पाण्डवं सैन्यं तत्तदा भरतर्षभ।। | 15-25-13a 15-25-13b |
नदीतीरेषु रम्येषु सरःसु च विशाम्पते। वासान्कृत्वा क्रमेणाथ जग्मुस्ते कुरुपुङ्गवाः।। | 15-25-14a 15-25-14b |
युयुत्सुश्च महातेजा धौम्यश्चैवि पुरोहितः। युधिष्ठिरस्य वचनात्पुरगुप्तिं प्रचक्रतुः।। | 15-25-15a 15-25-15b |
ततो युधिष्ठिरो राजा कुरुक्षेत्रमवातरत्। क्रमोणोत्तीर्य यमुनां नदीं परमपाविनीम्।। | 15-25-16a 15-25-16b |
स ददर्शाश्रमं दूराद्राजर्षेस्तस्य धीमतः। शतयूपस्य कौरव्य धृतराष्ट्रस्य चैव ह।। | 15-25-17a 15-25-17b |
ततः प्रमुदितः सर्वो जनस्तद्वनमञ्जसा। विवेश सुमहानादैरापूर्य भरतर्षभ।। | 15-25-18a 15-25-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते आश्रमिवासिकपर्वणि आश्रमिवासपर्वणि पञ्चविंशोऽध्यायः।। 25 ।। |
15-25-3 यानैमनुष्यवाह्यः।। 15-25-4 नखरप्रासः व्याघ्रनखवत्पराचीनफलककुक्षिर्यः।।
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