महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-022
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गान्धार्या कृष्णम्प्रति बाह्लिकादीनां तथा तत्स्त्रीणां च प्रदर्शनम्।। 1 ।।
गान्धार्युवाच। | 11-22-1x |
आवनत्यं भीमसेनेन भक्षयन्ति निपातितम्। गृध्रगोमायवः शूरं दूरबन्धुमबन्धुवत्।। | 11-22-1a 11-22-1b |
तं पश्य कदनं कृत्वा शूराणां मधुसूदन। शयानं वीरशयने रुधिरेण समुक्षितम्।। | 11-22-2a 11-22-2b |
तं सृगालाश्च कङ्काश्च क्रव्यादाश्च पृथग्विधाः। तेनतेन विकर्षन्ति पश्य कालस्य पर्ययम्।। | 11-22-3a 11-22-3b |
शयानं वीरशयने शूरमाक्रन्दकारिणम्। आवन्त्यमभितो नार्यो रुदत्यः पर्युपासते।। | 11-22-4a 11-22-4b |
प्रातिपेयं महेष्वासं हतं भीमेन बाह्लिकम्। प्रसुप्तमिव शार्दुलं पश्य कृष्णमनस्विनम्।। | 11-22-5a 11-22-5b |
अतीव मुखवर्णोऽस्य निहतस्यापि शोभते। सोमस्यवाभिपूर्णस्य पौर्णमास्यां समुद्यतः।। | 11-22-6a 11-22-6b |
पुत्रशोकाभितप्तेन प्रतिज्ञां चाभिरक्षता। पाकशासनिना सङ्ख्ये वार्धक्षत्रिर्निपातितः।। | 11-22-7a 11-22-7b |
एकादशचमूर्भित्त्वा रक्ष्यमाणं महात्मभिः। सत्यं चिकीर्षता पश्य हतमेनं जयद्रथम्।। | 11-22-8a 11-22-8b |
सिन्धुसौवीरभर्तारं दर्पपूर्णं मनस्विनम्। भक्षयन्ति शिवा गृध्रा जनार्दन जयद्रथम्।। | 11-22-9a 11-22-9b |
संरक्ष्यमाणं भार्याभिरनुरक्ताभिरच्युत। भीषयन्त्यो विकर्षन्ति गहनं निम्नमन्तिकात्।। | 11-22-10a 11-22-10b |
तमेताः पर्यपासन्ते वीक्षमाणा महाभुजम्। सिन्धुसौवीरकाम्भोजगान्धारयवनस्त्रियः।। | 11-22-11a 11-22-11b |
यदा कृष्णामुपादाय प्राद्रवत्केकयैः सह। तदैव वध्यः पाण्डूनां जनार्दन जयद्रथः।। | 11-22-12a 11-22-12b |
दुःशलां मानयद्भिस्तु तदा मुक्तो जयद्रथः। कथमद्य न तां कृष्ण मानयन्ति स्म ते पुनः।। | 11-22-13a 11-22-13b |
सैन्धवं मे सुता बाला प्रस्स्वलन्तीव दुःखिता। प्रमापयन्ती चात्मानमाक्रोशन्तीव पाण्डवान्।। | 11-22-14a 11-22-14b |
किन्नु दुःखतरं कृष्ण परं मम भविष्यति। यत्सुता विधवा बाला स्नुषाश्च निहतेश्वराः।। | 11-22-15a 11-22-15b |
हाहा धिग्धुःशलां पश्य वीतशोकभयामिव। भर्तुः शिर अपश्यन्तीं धावमानामितस्ततः।। | 11-22-16a 11-22-16b |
वारयामास यः सर्वान्पाण्डवान्पुत्रगृद्विनः। स हत्वा विपुलाः सेनाः सर्वयं मृत्युवशं गतः।। | 11-22-17a 11-22-17b |
तं मत्तमिव मातङ्गं वीरं परमदुर्जयम्। परिवार्य रुदन्त्येताः स्त्रियश्चन्द्रोपमाननाः।। | 11-22-18a 11-22-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि स्त्रीविलापपर्वणि द्वाविंशोऽध्यायः।। 22 ।। |
11-22-7 बार्धक्षत्रिर्जयद्रथः।। 11-22-22 द्वाविंशोऽध्यायः।।
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