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महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-017

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स्त्रीपर्व
महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-017
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गान्धार्या दुर्योधनमालिङ्ग्य परिदेवनम्।। 1 ।।

वैशम्पायन उवाच। 11-17-1x
दुर्योधनं हतं दृष्ट्वा गान्धारी शोककर्शिता।
सहसा न्यपतद्भूमौ छिन्नेव कदली वने।।
11-17-1a
11-17-1b
सा तु लब्ध्वा पुनः संज्ञां विक्रुश्य च विलप्य च।
दुर्योधनमभिप्रेक्ष्य शयानं रुधिरोक्षितम्।।
11-17-2a
11-17-2b
परिष्वज्याथ गान्धारी कृपणं पर्यदेवयत्।
हाहापुत्रेति शोकार्ता विललापाकुलेन्द्रिया।।
11-17-3a
11-17-3b
सुगूढजत्रु विपुलं हारनिष्कविभूषितम्।
वारिणा नेत्रजेनोरः सिञ्चन्ती शोकतापिता।।
11-17-4a
11-17-4b
समीपस्थं हृषीकेशमिद वचनमब्रवीत्।
उपस्थितेऽस्मिन्सङ्ग्रामे ज्ञातीनां संक्षये विभो।।
11-17-5a
11-17-5b
मामयं प्राह वार्ष्णेय प्राञ्चलिर्नृपसत्तमः।
अस्मिञ्ज्ञातिसमुद्धर्षे जयमम्बा ब्रवीतु मे।।
11-17-6a
11-17-6b
इत्युक्ते जानती सर्वमहं स्वव्यसनागमम्।
अब्रुवं पुरुषव्याघ्र यतो धर्मस्ततो जयः।।
11-17-7a
11-17-7b
तथा तु युव्यमानस्त्वं सम्प्रगृह्य सुपुत्रक।
ध्रुवं शखजिताँल्लोकान्प्राप्स्यस्यमरवत्प्रभो।।
11-17-8a
11-17-8b
इत्येवxxx पूर्वं नैवं शोचामि वै प्रभो।
धृतराष्ट्रं तु शोचामि कृपणं हतबान्धवम्।।
11-17-9a
11-17-9b
अमर्वणं युधां श्रेष्ठं कृतास्त्रं युद्धदुर्मदम्।
शयानं वीरशयने पश्य माधव मे सुतम्।।
11-17-10a
11-17-10b
बोऽयं मूर्धावसिक्तानाये याति परन्तपः।
सोऽवं पांसुषु शेतेऽद्य पञ्च कालस्य पर्ययम्।।
11-17-11a
11-17-11b
दुवं दुर्योधनो वीरो गतिं न सुलभां गतः।
तथा ह्यभिxxxx शेते शयने वीरसेविते।।
11-17-12a
11-17-12b
यं पुरा पर्युपासीना समयन्ति वरस्त्रियः।
सं वीरशयने सुप्तं रमयन्त्यशिवाः शिवाः।।
11-17-13a
11-17-13b
यं पुरा पर्युपासीना रमयन्ति महीक्षितः।
महीतलस्यं निहतं गृध्रास्तं पर्युपासते।।
11-17-14a
11-17-14b
यं पुरा व्यजनैरम्यैरुपवीजन्ति योषितः।
तमद्य पक्षव्यजनै रुपवीजन्ति पक्षिणः।।
11-17-15a
11-17-15b
एष शेते महाबाहुर्बलवान्सत्यविक्रमः।
सिंहेनेव द्विपः सङ्ख्ये भीमसेनेन पातितः।।
11-17-16a
11-17-16b
पश्य दुर्योधनं कृष्ण शयानं रुधिरोक्षितम्।
निहतं भीमसेनेन गदां सम्मृज्य भारत।।
11-17-17a
11-17-17b
अक्षौहिणीर्महाबाहुर्दश चैकां च केशव।
आनयद्यः पुरा सङ्ख्ये सोऽनयान्निधनं गतः।।
11-17-18a
11-17-18b
एष दुर्योधनः शेते महेष्वासो महाबलः।
शार्दूल इव सिंहेन भीमसेनेन पातितः।।
11-17-19a
11-17-19b
विदुरं ह्यवमत्यैष पितरं चैव मन्दभाक्।
बालो वृद्धावमानेन मन्दो मृत्युवशं गतः।।
11-17-20a
11-17-20b
निःसपत्ना मही यस्य त्रयोदशसमाः स्थिता।
स शेते निहतो भूमौ पुत्रो मे पृथिवीपतिः।।
11-17-21a
11-17-21b
अपश्यं कृष्ण पृथिवीं धार्तराष्ट्रानुशासिताम्।
पूर्णां हस्तिगवाश्वैश्च वार्ष्णेय न तु तच्चिरम्।।
11-17-22a
11-17-22b
तामेवाद्य महाबाहो पश्याम्यन्यानुशासिताम्।
हीनां हस्तिगवाश्वेन किन्नु जीवामि माधव।।
11-17-23a
11-17-23b
इदं कष्टतरं पश्य पुत्रस्यापि वधान्मम।
या इमाः पर्युपासन्ते हताञ्शूरान्रणे स्त्रियः।।
11-17-24a
11-17-24b
प्रकीर्णकेशां सुश्रोणीं दुर्योधनभूजाङ्कगाम्।
रुक्मवेदिनिभां पश्य कृष्ण लक्ष्मणमातरम्।।
11-17-25a
11-17-25b
नूनमेषा पुरा बाला जीवमाने महाभुजे।
भुजावाश्रित्य रमते सुभुजस्य मनस्विनी।।
11-17-26a
11-17-26b
कथं तु शतधा नेदं हृदयं मम दीर्यते।
पश्यन्त्या निहतं पुत्रं पौत्रेण सहितं रणे।।
11-17-27a
11-17-27b
पुत्रं रुधिरसंसिक्तमुपजिघ्रत्यनिन्दिता।
दुर्योधनं तु वामोरूः पाणिना परिमार्जती।।
11-17-28a
11-17-28b
किन्नु शोचति भर्तारं हतपुत्रं मनस्विनी।
तथा ह्यवस्थिता भाति पुत्रं चाप्यभिवीक्ष्य सा।।
11-17-29a
11-17-29b
स्वशिरः पञ्चशाखाभ्यामभिहत्यायतेक्षणा।
पतत्युरसि वीरस्य कुरुराजस्य माधव।।
11-17-30a
11-17-30b
पुण्डरीकनिभा भाति पुण्डरीकान्तरप्रभा।
मुखं प्रमृज्य पुत्रस्य भर्तुश्चैव तपस्विनी।।
11-17-31a
11-17-31b
यदि सत्यागमाः सन्ति यदि वै श्रुतयस्तथा।
ध्रुवं लोकानवाप्तोऽयं नृपो बाहुबलार्जितान्।।
11-17-32a
11-17-32b
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि
स्त्रीविलापपर्वणि सप्तदशोऽध्यायः।। 17 ।।

11-17-27 पुत्रेण सहितं रणे इति झ.पाठः।। 11-17-30 पञ्चशाखाभ्यां पञ्चाङ्गुलिभ्यां पाणिभ्याम्।। 11-17-17 सप्तदशोऽध्यायः।।

स्त्रीपर्व-016 पुटाग्रे अल्लिखितम्। स्त्रीपर्व-018