महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-012
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कृष्णवाक्याद्रतमन्युना धृतराष्ट्रेण भीमादीनामालिङ्गनम्।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 11-12-1x |
तत एनमुपातिष्ठञ्शौचार्थं परिचारकाः। कृतशौचं पुनश्चैनं ओवाच मधुसूदनः।। | 11-12-1a 11-12-1b |
राजन्नधीता वेदास्ते शास्त्राणि विविधानि च। श्रुतानि च पुराणानि राजधर्माश्च केवलाः।। | 11-12-2a 11-12-2b |
एवं विद्वान्महाप्राज्ञः समर्थः सन्बलाबले। आत्मापराधात्कस्मात्त्वं कुरुषे कोपमीदृशम्।। | 11-12-3a 11-12-3b |
उक्तवांस्त्वां तदैवाहं भीष्मद्रोणौ च भारत। विदुरः सञ्जयश्चैव वाक्यं राजन्न तत्कृथाः।। | 11-12-4a 11-12-4b |
स वार्यमाणो नास्माकमकार्षीर्वचनं तदा। पाण्डवानधिकाञ्चानन्बले शौर्ये च कौरव।। | 11-12-5a 11-12-5b |
राजा हि यः स्थिरप्रज्ञः स्वयं दोषानवेक्षते। देशकालविभागं च परं श्रयेः स विन्दति।। | 11-12-6a 11-12-6b |
उच्यमानस्तु यः श्रेयो गृह्णीते नो हिताहिते। आपदः समनुप्राप्य सोऽभ्येति विलयं किल।। | 11-12-7a 11-12-7b |
ततोऽन्यवृत्तमात्मानं समवेक्षस्व भारत। राजंस्त्वं ह्यविधेयात्मा दुर्योधनवशे स्थितः।। | 11-12-8a 11-12-8b |
आत्मापराधादापन्नस्तत्किं भीमं जिघांससि। तस्मात्संयच्छ कोपं त्वं स्वमनुस्मृत्य दुष्कृतम्।। | 11-12-9a 11-12-9b |
यस्तु तां स्पर्धया क्षुद्रः पाञ्चालीमानयत्समाम्। स हतो भीमसेनेन वैरं प्रतिजिहीर्षता।। | 11-12-10a 11-12-10b |
आत्मनोऽतिक्रमं पश्य पुंत्रस्य च दुरात्मनः। यदनागसि पाण्डूनां परित्यागस्त्वया कृतः।। | 11-12-11a 11-12-11b |
वैशम्पायन उवाच। | 11-12-12x |
एवमुक्तः स कृष्णेन सर्वं सत्यं जनाधिप। उवाच देवकीपुत्रं धृतराष्ट्रो महीपतिः।। | 11-12-12a 11-12-12b |
एवमेतन्महाबाहो यथा वदसि माधव। पुत्रस्नेहस्तु बलवान्धर्मान्मां समचालयत्।। | 11-12-13a 11-12-13b |
दिष्ट्या तु पुरुषव्याघ्रो बलवान्सत्यक्त्रिमः। त्वद्गुप्तो नागमत्कृष्ण भीमो बाह्वन्तरं मम।। | 11-12-14a 11-12-14b |
इदानीं त्वहमव्यग्रो गतमन्युर्गतज्वरः। मध्यमं पाण्डवं वीरं स्पष्टुमिच्छामि माधव।। | 11-12-15a 11-12-15b |
हतेषु पारथिवेन्द्रेषु पुत्रेषु निहतेषु च। पाण्डुपुत्रेषु मे धर्मः प्रीतिश्चाप्यवतिष्ठते।। | 11-12-16a 11-12-16b |
ततः स भीमं च धनञ्जयं च माद्याश्च पुत्रौ पुरुषप्रवीरौ। पस्पर्श गात्रैः प्ररुदन्सुगात्रा-- नाश्वास्य कल्याणमुवाच चैनान्।। | 11-12-17a 11-12-17b 11-12-17c 11-12-17d |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि द्वादशोऽध्यायः।। 12 ।। |
11-12-4 न तत्कृथाः ततन्न कृतवानरी। अडभाव आर्षः।। 11-12-7 श्रेयो हिताहिते उच्यमानो न गृहीत इत्यन्वयः।। 11-12-10 वैरं प्रतिचिकीर्षतेति क.पाठः।। 11-12-11 अनागसि अपराधाभावे। परित्यागो राज्याप्रदानेन तिरस्कारः।। 11-12-12 द्वादशोऽध्यायः।।
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