महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-008
दिखावट
← स्त्रीपर्व-007 | महाभारतम् स्त्रीपर्व महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-008 वेदव्यासः |
स्त्रीपर्व-009 → |
व्यासेन धृतराष्ट्रस्य शोकापनोदनम्।। 1 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 11-8-1x |
विदुरस्य तु तद्वाक्यं निशम्य कुरुसत्तमः। पुत्रशोकाभिसन्तप्तः पपात भुवि मूर्छितः।। | 11-8-1a 11-8-1b |
तं तथा पतितं भूमौ निःसंज्ञं प्रेक्ष्य बान्धवाः। कृष्णद्वैपायनश्चैव क्षत्ता च विदुरस्तथा।। | 11-8-2a 11-8-2b |
सञ्जयः सुहृदश्चान्ये द्वास्था ये चास्य सम्मताः। जलेन सुखशीतेन तालवृन्तैश्च भारत।। | 11-8-3a 11-8-3b |
पस्पर्शुश्च करैर्गात्रं वीजमानाश्च यत्नतः। अन्वासत चिरं कालं धृतराष्ट्रं तथाविधम्।। | 11-8-4a 11-8-4b |
अथ दीर्घस्य कालस्य लब्धस़ञ्ज्ञो महीपतिः। विललाप चिरं कालं पुत्राधिभिरभिप्लुतः।। | 11-8-5a 11-8-5b |
धिगस्तु खलु मानुष्यं मानुष्ये च परिग्रहम्। यतोमूलानि दुःखानि सम्भवन्ति पुनःपुनः।। | 11-8-6a 11-8-6b |
मित्रनाशेऽर्थनाशे च ज्ञातिसम्बन्धिनामपि। प्राप्यते सुमहद्दुःखं विषाग्निप्रतिमं विभो।। | 11-8-7a 11-8-7b |
येन दह्यन्ति गात्राणि येन प्रज्ञा विनश्यति। येनाभिभूतः पुरुषो मरणं प्रतिपद्यते।। | 11-8-8a 11-8-8b |
तदिदं मरणं प्राप्तं मया भाग्यविपर्ययात्। [तस्यान्तं नाधिगच्छामि ऋते प्राणविमोक्षणात्] | 11-8-9a 11-8-9b |
तच्चैवाहं करिष्यामि अद्यैव द्विजसत्तम। इत्युक्त्वा तु महात्मानं पितरं ब्रह्मवित्तमम्।। | 11-8-10a 11-8-10b |
धृतराष्ट्रोऽभवन्मूढः स शोकं परमं गतः। अभूच्च तूष्णीं राजाऽसौ ध्यायमानो महीपतिः।। | 11-8-11a 11-8-11b |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा कृष्णद्वैपायनः प्रभुः। पुत्रशोकाभिसन्तप्तं पुत्रं वचनमब्रवीत्।। | 11-8-12a 11-8-12b |
व्यास उवाच। | 11-8-13x |
धृतराष्ट्र महाबाहो शृणु वक्ष्यामि पुत्रक। श्रुतवानसि मेधावी धर्मार्थकुशलः प्रभो।। | 11-8-13a 11-8-13b |
न तेऽस्त्यविदितं किञ्चिद्वेदितव्यं परन्तप। अनित्यतां हि भूतानां विजानासि न संशयः।। | 11-8-14a 11-8-14b |
अध्रुवे जीवलोके च स्थाने वा शाश्वते सति। जीविते मरणान्ते च कस्माच्छोचसि पुत्रक।। | 11-8-15a 11-8-15b |
प्रत्यक्षं तव राजेन्द्र वैरस्यास्य समुद्भवः। पुत्रं ते कारणं कृत्वा कालयोगेन निर्मितः।। | 11-8-16a 11-8-16b |
अवश्यं भवितव्ये च कुरूणां सङ्क्षये नृप। कस्माच्छोचसि ताञ्शूरान्गतान्परमिकां गतिम्।। | 11-8-17a 11-8-17b |
जानता च महाबाहो विदुरेण महात्मना। यतितं सर्वयत्नेन शमं प्रति जनेश्वर।। | 11-8-18a 11-8-18b |
न च दैवकृतो मार्गः शक्यो भूतेन केनचित्। घटताऽपि चिरं कालं नियन्तुमिति मे मतिः।। | 11-8-19a 11-8-19b |
देवतानां हि यत्कार्यं मया प्रत्यक्षतः श्रुतम्। तत्तेऽहं सम्प्रवक्ष्यामि यथा स्थैर्यं भवेत्तव।। | 11-8-20a 11-8-20b |
पुराऽहं परितो यातः सभामैन्द्रीं जितक्लमः। अपश्यं तत्र च सदा समवेतान्दिवौकसः।। | 11-8-21a 11-8-21b |
नारदप्रमुखांश्चापि सर्वान्देवर्षिसत्तमान्। तत्र चापि मया दृष्टा पृथिवी पृथिवीपते।। | 11-8-22a 11-8-22b |
कार्यार्थमुपसम्पन्ना देवतानां समीपतः। उपगम्य तदा धात्री देवानाह समागतान्।। | 11-8-23a 11-8-23b |
यत्कार्यं मम युष्माभिर्ब्रह्मणः सदने तदा। प्रतिज्ञातं महाभागास्तच्छीघ्रं संविधीयताम्।। | 11-8-24a 11-8-24b |
तस्यास्तद्वचनं श्रुत्वा विष्णुर्लोकनमस्कृतः। उवाच वाक्यं प्रहसन्प्रभुस्तां देवसंसदि।। | 11-8-25a 11-8-25b |
धृतराष्ट्रस्य पुत्राणां यस्तु ज्येष्ठः शतस्य वै। दुर्योधन इति ख्यातः स ते कार्यं करिष्यति।। | 11-8-26a 11-8-26b |
तं च प्राप्य महीपालं कृतकृत्या भविष्यसि। तस्यार्थे पृथिवीपालाः कुरुक्षेत्रं समागताः।। | 11-8-27a 11-8-27b |
अन्योन्यं घातयिष्यन्ति दृढैः शस्त्रैः प्रहारिणः। ततस्ते भविता देवि भारस्य युधि नाशनम्।। | 11-8-28a 11-8-28b |
गच्छ शीघ्रं स्वकं स्थानं लोकान्धारय शोभने। स एष ते सुतो राजँल्लोकसंहारकारणात्।। | 11-8-29a 11-8-29b |
कलेरंशः समुत्पन्नो गान्धार्या जठरे नृप। अमर्षी बलवाञ्शूरः क्रोधनो दुष्प्रसाधनः।। | 11-8-30a 11-8-30b |
दैवयोगात्समुत्पन्ना भ्रातरस्तस्य तादृशाः। शकुनिर्मातुलश्चैव कर्णश्च परमः सखा।। | 11-8-31a 11-8-31b |
समुत्पन्ना विनाशार्थं पृथिव्यां सहिता नृपाः। [यादृशो जायते राजा तादृशोऽस्य जनो भवेत्।। | 11-8-32a 11-8-32b |
अधर्मो धर्मतां याति स्वामी चेद्धार्मिको भवेत्। स्वामिनो गुणदोषाभ्यां भृत्याः स्युर्नात्र संशयः।। | 11-8-33a 11-8-33b |
दुष्टं राजानमासाद्य गतास्ते तनया नृप।] एतमर्थं महाबाहो नारदो वेद तत्त्ववित्।। | 11-8-34a 11-8-34b |
आत्मापराधात्पुत्रास्ते विनष्टाः पृथिवीपते। मा ताञ्शोचस्व राजेन्द्र न हि शोकेऽस्ति कारणम्।। | 11-8-35a 11-8-35b |
न हि ते पाण्डवाः स्वल्पमपराध्यन्ति भारत। पुत्रास्तव दुरात्मानो यैरियं घातिता मही।। | 11-8-36a 11-8-36b |
नारदेन च भद्रं ते पूर्वमेव न संशयः। युधिष्ठिरस्य समितौ राजसूये निवेदितम्।। | 11-8-37a 11-8-37b |
पाण्डवाः कौरवाः सर्वे समासाद्य परस्परम्। नभविष्यन्ति कौन्तेय यत्ते कृत्यं तदाचर।। | 11-8-38a 11-8-38b |
नारदस्य वचः श्रुत्वा तथाऽकुर्वत पाण्डवाः। एतत्ते सर्वमाख्यातं देवगुह्यं सनातनम्।। | 11-8-39a 11-8-39b |
कथं ते शोकनाशः स्यात्प्राणेषु च दया प्रभो। स्नेहश्च पाण्डुपुत्रेषु ज्ञात्वा दैवकृतं विधिम्।। | 11-8-40a 11-8-40b |
एष चार्थो महाबाहो पूर्वमेव मया श्रुतः। कथितो धर्मराजस्य राजसूये कुरूत्तम।। | 11-8-41a 11-8-41b |
यतितं धर्मपुत्रेण मया गुह्ये निवेदिते। अविग्रहे कौरवाणां दैवं तु बलवत्तरम्।। | 11-8-42a 11-8-42b |
अनतिक्रमणीयो हि विधी राजन्कथञ्चन। कृतान्तस्य तु भूतेन स्थावरेण चरेण च।। | 11-8-43a 11-8-43b |
भवान्धर्मपरो यत्र बुद्धिश्रेष्ठश्च भारत। मुह्यते प्राणिनां ज्ञात्वा गतिं चागतिमेव च।। | 11-8-44a 11-8-44b |
त्वां तु शोकेन सन्तप्तं मुह्यमानं मुहुर्मुहुः। ज्ञात्वा युधिष्ठिरो राजा प्राणानपि परित्यजेत्।। | 11-8-45a 11-8-45b |
कृपालुर्नित्यशो वीरस्तिर्यग्योनिगतेष्वपि। स कथं त्वयि राजेन्द्र कृपां नैव करिष्यति।। | 11-8-46a 11-8-46b |
मम चैव नियोगेन विधेश्चाप्यनिवर्तनाम्। पाण्डवानां च कारुण्यात्प्राणान्धारय भारत।। | 11-8-47a 11-8-47b |
एवं ते वर्तमानस्य लोके कीर्तिर्भविष्यति। धर्मार्थः सुमहांस्तात तप्तं स्याच्च तपश्चिरात्।। | 11-8-48a 11-8-48b |
पुत्रशोकं समुत्पन्नं हुताशं ज्वलितं यथा। प्रज्ञाम्भसा महाराज निर्वापय सदा सता।। | 11-8-49a 11-8-49b |
वैशम्पायन उवाच। | 11-8-50x |
तच्छ्रुत्वा तस्य वचनं व्यासस्यामिततेजसः। मुहूर्तं समनुध्यायन्धृतराष्ट्रोऽभ्यभाषत।। | 11-8-50a 11-8-50b |
महता शोकजालेन प्रणुन्नोऽस्मि द्विजोत्तम। नात्मानमवबुध्यामि मुह्यमानो मुहुर्मुहुः।। | 11-8-51a 11-8-51b |
इदं तु वचनं श्रुत्वा तव देवनियोगजम्। धारयिष्याम्यहं प्राणान्यतिष्ये च न शोचितुं।। | 11-8-52a 11-8-52b |
एतच्छ्रुत्वा तु वचनं व्यासः सत्यवतीसुतः। धृतराष्ट्रस्य राजेन्द्र तत्रैवान्तरधीयत।। | 11-8-53a 11-8-53b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि अष्टमोऽध्यायः।। 8 ।।* |
गते भगवति व्यासे धृतराष्ट्रो महीपतिः। किमचेष्टत विप्रर्षे तन्मे व्याख्यातुमर्हसि।। | 11-8-1a 11-8-1b |
तथैव कौरवो राजा धर्मपुत्रो महामनाः। कृपप्रभृतयश्चैव किमकुर्वत ते त्रयः।। | 11-8-2a 11-8-2b |
अश्वत्थाम्नः श्रुतं कर्म शापश्चान्योन्यकारितः। वृत्तान्तमुत्तरं ब्रूहि यदभाषत सञ्जयः।। | 11-8-3a 11-8-3b |
वैशम्पायन उवाच। | 11-8-4x |
हते दुर्योधने चैव हते सैन्ये च सर्वशः। सञ्जयो विगतप्रज्ञो धृतराष्ट्रमुपस्थितः।। | 11-8-4a 11-8-4b |
सञ्जय उवाच। | 11-8-5x |
आगम्य नानादेशेभ्यो नानाजनपदेश्वराः। पितृलोकं गता राजन्सर्वे तव सुतैः सह।। | 11-8-5a 11-8-5b |
याच्यमानेन सततं तव पुत्रेण भारत। घातिता पृथिवी सर्वा वैरस्यान्तं विधित्सता।। | 11-8-6a 11-8-6b |
पुत्राणामथ पौत्राणां पितॄणां च महीपते। आनुपूर्व्येण सर्वेषां प्रेतकार्याणि कारय।। | 11-8-7a 11-8-7b |
वैशम्पायन उवाच। | 11-8-8x |
तच्छ्रुत्वा वचनं घोरं सञ्जयस्य महीपतिः। गतासुरिव निश्चेष्टो न्यपतत्पृथिवीतले।। | 11-8-8a 11-8-8b |
तं शयानमुपागम्य पृथिव्यां पृथिवीपतिम्। विदुरः सर्वधर्मज्ञ इदं वचनमब्रवीत्।। | 11-8-9a 11-8-9b |
उत्तिष्ठ राजन्किं शेषे मा शुचो भरतर्षभ। एषा वै सर्वसत्वानां लोकेश्वर परा गतिः।। | 11-8-10a 11-8-10b |
अभावादीनि भूतानि भावमध्यानि भारत। अभावनिधनान्येव तत्र का परिदेवना।। | 11-8-11a 11-8-11b |
न शोचन्मृतमन्वेति न शोचन्म्रियते नरः। एवं सांसिद्धिके लोके किमर्थमनुशोचसि।। | 11-8-12a 11-8-12b |
अयुध्यमानो म्रियते युध्यमानस्तु जीवति। कालं प्राप्य महाराज न कश्चिदतिवर्तते।। | 11-8-13a 11-8-13b |
कालः कर्षति भूतानि सर्वाणि विविधानि च। न कालस्य प्रियः कश्चिन्न द्वेष्यः कुरुसत्तम।। | 11-8-14a 11-8-14b |
यथा वायुस्तृणाग्राणि संवर्तपति सर्वतः। तथा कालवशं यान्ति भूतानि भरतर्षभ।। | 11-8-15a 11-8-15b |
एकसार्थप्रयातानां सर्वेषां तत्र गामिनाम्। यस्य कालः प्रयात्यग्रे तत्र का परिदेवना।। | 11-8-16a 11-8-16b |
यांश्चापि निहतान्युद्धे राजंस्त्वमनुशोचसि। न शोच्या हि माहत्मानः सर्वे ते त्रिदिवं गताः।। | 11-8-17a 11-8-17b |
न यज्ञैर्दक्षिणावद्भिर्न तपोभिर्न विद्यया। तथा स्वर्गमुपायान्ति यथा शूरास्तनुत्यजः।। | 11-8-18a 11-8-18b |
सर्वे वेदविदः शूराः सर्वे सुचरितव्रताः। सर्वे चाभिमुखाः क्षीणास्तत्र का परिदेवना।। | 11-8-19a 11-8-19b |
शरीराग्निषु शूराणां जुहुवुस्ते शराहुतीः। हूयमानाञ्शरांश्चैव सेहुरुत्तमपूरषाः।। | 11-8-20a 11-8-20b |
एवं राजंस्तवाचक्षे स्वर्ग्यं पन्थानमुत्तमम्। न युद्धादधिकं किञ्चित्क्षत्रियस्येह विद्यते।। | 11-8-21a 11-8-21b |
क्षत्रियास्ते महात्मानः शूराः समितिशोभनाः। आशिषं परमां प्राप्ता न शोच्याः सर्व एव हि।। | 11-8-22a 11-8-22b |
आत्मनाऽऽत्मानमाश्वास्य मा शुचः पुरुषर्षभ। नाद्य शोकाभिभूतस्त्वं कार्यमुत्स्नष्टुमर्हसि।। | 11-8-23a 11-8-23b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि अध्यायः।। |
11-8-29 कालः संहारकारणादिति क.छ.ठ.पाठः।। 11-8-37 नारदेन समाख्यातमिति क.छ.ठ.पाठः।। 11-8-39 तदाऽशोचन्त पाण्डवा इति झ.पाठः।। 11-8-48 धर्मश्च सुमहास्तात तप्तस्य तपसश्चिरादिति क.छ.ठ.पाठः।। 11-8-8 अष्टमोऽध्यायः।।
स्त्रीपर्व-007 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | स्त्रीपर्व-009 |