महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-009
दिखावट
← स्त्रीपर्व-008 | महाभारतम् स्त्रीपर्व महाभारतम्-11-स्त्रीपर्व-009 वेदव्यासः |
स्त्रीपर्व-010 → |
धृतराष्ट्रेण गान्धरीप्रभृतिभिः स्त्रीभिः सह मृतजनावलोकनाय रणाङ्कणम्प्रति प्रयाणम्।। 1 ।।
`जनमेजय उवाच। | 11-9-1x |
गते व्यासे तु धर्मात्मा धृतराष्ट्रो महीपतिः। किमचेष्टत विप्रर्षे तन्मे व्याख्यातुमर्हसि।। | 11-9-1a 11-9-1b |
वैशम्पायन उवाच। | 11-9-2x |
एतच्छ्रुत्वा नरश्रेष्ठश्चिरं ध्यात्वा त्वचेतनः। सञ्जयं योजयेत्युक्त्वा विदुरं प्रत्यभाषत।। | 11-9-2a 11-9-2b |
क्षिप्रमानय गान्धारीं सर्वाश्च भरतस्त्रियः। कुन्तीं चैव तथा क्षत्तः समानय ममाऽन्तिकम्'।। | 11-9-3a 11-9-3b |
एवमुक्त्वा स धर्मात्मा विदुरं धर्मवित्तमम्। शोकविप्रहतज्ञानो यानमेवान्वरोहत।। | 11-9-4a 11-9-4b |
गान्धारी पुत्रशोकार्ता भर्तुर्वचननोदिता। सह कुन्त्या यतो राजा सह स्त्रीभिरुपाद्रवत्।। | 11-9-5a 11-9-5b |
ताः समासाद्य राजानं भृशं शोकसमन्विताः। आमन्त्र्यान्योन्यमायस्ता भृशमुच्चुक्रुशुस्ततः।। | 11-9-6a 11-9-6b |
ताः समाश्वासयत्क्षत्ता ताभ्यश्चार्ततरः स्वयम्। अश्रुकण्ठीः समारोप्य ततोऽसौ निर्ययौ पुरात्।। | 11-9-7a 11-9-7b |
ततः प्रणादः सञ्जज्ञे सर्वेषु कुरुवेश्मसु। आकुमारं पुरं सर्वमभवच्छोककर्शितम्।। | 11-9-8a 11-9-8b |
अदृष्टपूर्वा या नार्यः पुरा देवगणैरपि। पृथग्जनेन दृश्यन्ते तास्तदा निहतेश्वराः।। | 11-9-9a 11-9-9b |
प्रकीर्य केशान्सुशुभान्भूषणान्यवमुच्य च। एकवस्त्रधरा नार्यः परिपेतुरनाथवत्।। | 11-9-10a 11-9-10b |
श्वतेपर्वतरूपेभ्यो गृहेभ्यस्ता निराक्रमन्। गुहाभ्य इव शैलानां पृषत्यो हतयूथपाः।। | 11-9-11a 11-9-11b |
तान्युदीर्णानि नारीणां तदा वृन्दान्यनेकशः। शोकार्तान्यद्रवन्राजन्किशोरीणामिवाङ्गणे।। | 11-9-12a 11-9-12b |
प्रगृह्य बाहून्क्रोशन्त्यः पुत्रान्भ्रातॄन्पितॄनपि। दर्शयन्ति हता हि स्म युगान्ते लोकसङ्क्षयम्।। | 11-9-13a 11-9-13b |
विलपन्त्यो रुदन्त्यश्च धावमानास्ततस्ततः। शोकेनोपहतज्ञाताः कर्तव्यं न प्रजज्ञिरे।। | 11-9-14a 11-9-14b |
व्रीडां जग्मुः पुरा याः स्म सखीनामपि योषितः। ता एकवस्त्रा निर्लज्जाः श्वश्रूणां पुरतोऽभवन्।। | 11-9-15a 11-9-15b |
परस्परं सुसूक्ष्मेषु शोकेष्वाश्वासयन्ति याः। ताः शोकविह्वला राजन्नवैक्षन्त परस्परम्।। | 11-9-16a 11-9-16b |
ताभिः परिवृतो राजा रुदतीभिः सहस्रशः। निर्ययौ नगराद्दीनस्तूर्णमायोधनं प्रति।। | 11-9-17a 11-9-17b |
शिल्पिनो वणिजो वैश्याः सर्वे कर्मोपजीविनः। ते पार्थिवं पुरस्कृत्य निर्ययुर्नगराद्बहिः।। | 11-9-18a 11-9-18b |
तेषां विक्रोशमानानामार्तानां कुरुसङ्क्षये। प्रादुरासीन्महाञ्शब्दो व्यथयन्भुवनान्युत।। | 11-9-19a 11-9-19b |
युगान्तकाले सम्प्राप्ते भूतानां दह्यतामिव। अभावस्योदयः प्राप्त इति भूतानि मेनिरे।। | 11-9-20a 11-9-20b |
भृशमुद्विग्नमनसस्ते पौराः कुरुसङ्क्षये। प्राक्रोशन्त महाराज स्वनुरक्तास्तदा भृशम्।। | 11-9-21a 11-9-21b |
।। इति श्रीमन्महाभारते स्त्रीपर्वणि जलप्रदानिकपर्वणि नवमोऽध्यायः।। 9 ।। |
वैशम्पायन उवाच। 11-9-1x
विदुरस्य तु तद्वाक्यं श्रुत्वा तु पुरुषर्षभः।
युज्यतां यानमित्युक्त्वा पुनर्वचनमव्रवीत्।। 11-9-1a
11-9-1b
धृतराष्ट्र उवाच। 11-9-2x
शीघ्रमानय गान्धारीं सर्वाश्च भरतस्त्रियः।
वधूं कुन्तीमुपादाय याश्चान्यास्तत्र योषितः।। 11-9-2a
11-9-2b
11-9-4 विगता प्रज्ञा व्यासदत्तं दिव्यज्ञानं यस्य स विगतप्रज्ञः।। 11-9-7 समारोप्य वाहनेष्विति शेषः।। 11-9-11 शोकस्यातिगाढत्वात्पुनर्विदुरेणोक्तं अभावदीनीत्यादि।। 11-9-15 संवर्तयति वर्तुलयति कम्पयति वा।। 11-9-21 आचक्षे कथयामि।। 11-9-23 कार्यं अवश्यकर्तव्यमुदकदानादि।। 11-9-11 पृषत्यश्चित्रहरिण्यः।। 11-9-12 अङ्गमे नृत्यशिक्षाभूमौ।। 11-9-9 नवमोऽध्यायः।।
स्त्रीपर्व-008 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | स्त्रीपर्व-010 |