लक्ष्मीतन्त्रम्/अध्यायः ९

विकिस्रोतः तः
← अध्यायः ८ लक्ष्मीतन्त्रम्
अध्यायः ९
[[लेखकः :|]]
अध्यायः १० →
लक्ष्मीतन्त्रस्य अध्यायाः

नवमोऽध्यायः - 9
श्रीः{1}---
अहं नारायणी देवी नारायणमनुव्रता।
ज्ञानानन्दक्रियात्मानं ज्ञानानन्दक्रियामयी ।। 1 ।।
1. - - - - - - - - - - - - -
{1. श्रीरुवाच B. }
{2}तस्या मे न विनाभावस्तेन वा तस्य वा मया।
{3}प्रकर्तुं शक्यते काले कस्मिंश्चिद्देश एव वा ।। 2 ।।
2. - - - - - - - - - - - - - -
{2. तस्य A. B. D. }
{3. कर्तुं हि E. F. }
तत्तत्कार्यवशाच्चैवान्यद्भूताद्भुतरूपकौ।
आत्मयोगबलात्तौ स्वः{4} सहैव च विनैव च ।। 3 ।।
3. - - - - - - - - - - - - - -
{4. तु I. }
ब्रह्मादिर्दत्तवान् यादृक्तपोयोगबलात्कृतः।
दैत्यादिभ्यो {5}जगद्‌ध्वंसकरेब्यो वरमुत्तमम् ।। 4 ।।
4. - - - - - - - - - - - - - -
{5. वरानाशु जगद्‌ध्वंसिजिघांसया A. F. }
तादृशं तादृशं रूपमास्थायावां सनातनौ।
तत्तत्प्रीतिचिकीर्षायै चरावौ देवकार्यतः ।। 5 ।।
5. - - - - - - - - - - -
मायया भावमाच्छाद्य परमार्थं स्वतेजसा।
अहमेवावतीर्णा हि तत्तद्ध्वंसिजिघांसया ।। 6 ।।
6. - - - - - - - - - - -
आदौ देवी महालक्ष्मीः स्मृताहं परमेश्वरी।
अभूवं च पुनर्द्वेधा कृष्णा ब्राह्नीति रूपतः ।। 7 ।।
7. - - - - - - - - - - - - -
गुणत्रयविभागेन रूपमेतत्परं मम।
महालक्ष्मीरहं शक्र पुनः स्वायंभुवेऽन्तरे ।। 8 ।।
8. - - - - - - - - - - - -
हिताय सर्वलोकानां{6} जाता महिषमर्दनी।
मदीया शक्तिलेशा ये तत्तद्देवशरीरगाः ।। 9 ।।
9. - - - - - - - - - - -
{6. देवानां A. B. D. F. G. }
संभूय ते ममाभूवन् रूपं परमशोभनम्।
आयुधानि च देवानां यानि यानि सुरेश्वर ।। 10 ।।
10. - - - - - - - - - - - - -
तच्छक्तयस्तदाकारा आयुधानि ममाभवन्।
अभिष्टुता सुरैः साहं महिषं जघ्नुषी क्षणात् ।। 11 ।।
11. - - - - - - - - - - - - -
महिषान्तकरीसूक्तं सर्वसिद्धिप्रदं तदा{7}।
`देव्या यया' दिकं दृष्टं सेन्द्रैर्देवैः {8}सहर्षिभिः ।। 12 ।।
12. इदं च सूक्तं मार्कण्डेयपुराणे देवीमाहात्म्ये चतुर्थाध्याये पठितं द्रष्टव्यम्।
{7. तथा A. B. I. }
{8. महर्षिभिः B. }
{9}उत्पत्तिं युद्धविक्रान्तिं{10} स्तोत्रं चेति सुरेश्वर।
कथयन्ति सुविस्तीर्णं ब्राह्नणा वेदपारगाः ।। 13 ।।
13. - - - - - - - - - - - -
{9. उत्पत्तिः E. I. }
{10. विक्रान्तिः E. I. }
{11}एवंप्रभावां देवीं तां स्तुवन् ध्यायन्नमन्नपि।
लभते च फलं शश्वदाधिपत्यमनश्वरम् ।। 14 ।।
14. - - - - - - - - - - -
{11. A. B. C. D. omit this line. }
योगनिद्रा हरेरुक्ता या सा देवी दुरत्यया।
{12}महाकालीतनुं विद्धि तां मां देवीं सनातनीम् ।। 15 ।।
15. - - - - - - - - - - - - - - -
{12. महाकाल्यास्तनुं B. C. E. I. }
मधुकैटभनाशे हि मोहितौ तौ{13} तया तदा।
जघ्नाते वरलाभेन देवदेवेन विष्णुना ।। 16 ।।
16. - - - - - - - - - - -
{13. च A. B. D. }
विश्वेस्वर्यादिकं सूक्तं दृष्टं तद्‌ ब्रह्मणा सदा{14}।
स्तुतये योगनिद्राया मम देव्याः पुरंदर ।। 17 ।।
17. इदं चोपाख्यानं मार्कण्डेयपुराणे देवीमाहात्म्ये प्रथमाध्याये पठितम्।
{14. पुरा G. }
एषा सा वैष्णवी माया महाकाली दुरत्यया।
स्तुत्या वशीकृता कुर्याद्वशे स्तोतुश्चराचरम् ।। 18 ।।
18. - - - - - - - - - - - - -
अस्या देव्याः समुत्पत्तिश्चरितं स्तोत्रमित्यपि।
हिताय सर्वभूतानां {15}धार्यन्ते ब्रह्मवादिभिः ।। 19 ।।
19. - - - - - - - - - - - - - -
{15. ध्यायन्ते D. E. }
{16}तामसे त्वन्तरे शक्र महाविद्या {17}हि या परा।
गौरीदेहात्समुद्भूता कौशिकीति {18}तदा ह्यहम् ।। 20 ।।
20. - - - - - - - - - - - - - - - -
{16. तापसे A. B. C. }
{17. मिधा B. I. }
{18. तदाप्यहम् C. }
वधाय दुष्टदैत्यानां तथा{19} सुम्भनिसुम्भयोः।
रक्षणाय च लोकानां देवानामुपकारिणी ।। 21 ।।
21. - - - - - - - - - - -
{19. तदा A. B. C. }
मदीयाः शक्तयो यास्ता देवश्रेष्ठशरीरगाः।
तास्तास्तद्रूपधारिण्यः {20}साहाय्यं विदधुर्हि मे ।। 22 ।।
22. - - - - - - - - - - - - - - -
{20. सहायं A. D. }
ताभिर्निहत्य दैत्येन्द्रान् हन्तव्या ये तथा तथा।
संहृत्यात्मनि ताः सर्वा मदीया विप्रुषोऽखिलाः ।। 23 ।।
23. - - - - - - - - - - - - -
अहं निजघ्नुषी पश्चात्तयोः सुम्भनिसुम्भयोः।
`देवि प्रपन्नादिहरे प्रसीदे' त्यादिकं तथा ।। 24 ।।
24. नारायणीस्तुतिः मार्कण्डेयपुराणे देवीमाहात्म्ये एकादशाद्याये पठीता।
नारायणीस्तुतिर्नाम सूक्तं परमशोभनम्।
स्तुतयो मे {21}तदा दृष्टा देवैर्वह्निपुरोगमैः ।। 25 ।।
25. - - - - - - - - - - - - -
{21. सदा E. }
एषा संपूजिता भक्त्या सर्वज्ञत्वं प्रयच्छति।
कौशिकी सर्वदेवेश{22} बहुकामप्रदा ह्यहम् ।। 26 ।।
26. - - - - - - - - - - - - -
{22. देवेशा A. B. G. }
उत्पत्तिर्युद्धविक्रान्तिः स्तुतिश्चेति पुरातनैः।
{23}पठ्यते त्रितयं विप्रैर्वेदवेदाङ्गपारगैः{24} ।। 27 ।।
27. - - - - - - - - - - - - - -
{23. पाठ्यते F. }
{24. बेदान्तपारगैः E. }
वैवस्वतेऽन्तरे चैतौ{25} पुनः सुम्भनिसुम्भकौ।
उत्पत्स्येते वरोन्मत्तौ देवोपद्रवकारिणौ ।। 28 ।।
{25. शक्र B. }
नन्दगोपकुले जाता यशोदागर्भसंभवा।
तावहं नाशयिष्यामि सुनन्दा{26} विन्ध्यवासिनी ।। 29 ।।
{26. सुनन्द्या E. }
पुनश्चाप्यतिरौद्रेण रूपेण पृथिवीतले।
अवतीर्य हनिष्यामि वै प्रचित्तान् महासुरान् ।। 30 ।।
{27}भक्षयन्त्याश्च तानुग्रान् वैप्रचित्तान् महासुरान्।
रक्ता दन्ता भविष्यन्ति दाडिमीकुसुमोपमाः ।। 31 ।।
{27. B. omits this line; भक्षयन्त्यागतानुग्रान् F. }
ततो मां देवताः सर्वे मर्त्यलोके च मानवाः।
स्तुवन्तो व्याहरिष्यन्ति सततं {28}रक्तदन्तिकाम् ।। 32 ।।
{28. रत्न A. C. }
तस्मिन्नेवान्तरे शक्र चत्वारिंशत्तमे युगे।
सर्वतः शतवार्षिक्यामनावृष्ट्यामनम्भसि ।। 33 ।।
मुनिभिः संस्मृता भूमौ संभविष्याम्ययोनिजा।
ततः शतेन नेत्राणां निरीक्षिष्याम्यहं मुनीन्{29} ।। 34 ।।
{29. निरीक्षिष्यामि यन्मुनीन् E. }
कीर्तयिष्यन्ति मां शक्र शताक्षीमिति मानवाः।
तदाहमखिलं लोकमात्मदेहसमुद्भवैः ।। 35 ।।
भरिष्यामि शुभैः शाकैराविष्टैः प्राणधारकैः{30}।
शाकंभरीति मां देवास्तदा स्तोष्यन्ति वासव ।। 36 ।।
{30. धारणैः D. }
तत्रैव च हनिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम्।
दुर्गादेवीति विख्यातिं ततो यास्याम्यहं भुवि ।। 37 ।।
शाकंभरीं स्तुवन् ध्यायन्{31} शक्र संपूजयन्नमन्।
{32}अक्षय्यामश्नुते शीघ्रमन्नपानोद्भवां रतिम् ।। 38 ।।
{31. तु संध्यायां B. }
{32. अक्षया A. B. C. }
चतुर्युगे च पञ्चाशत्तमे मुनिभिरर्थिता।
सुन्दरं चातिभीमं च रूपं कृत्वा हिमाचरे ।। 39 ।।
रक्षांसि भक्षयिष्यामि मुनीनां त्राणकारणात्।
ततो मां मुनयः सर्वे स्तोष्यन्त्यानम्रमूर्तयः ।। 40 ।।
`भीमे देवि प्रसीदे' ति भीमामभयदायिनीम्।
युगे षष्टितमे कश्चिदरुणो नाम दानवः ।। 41 ।।
मनुजानां मुनीनां च महाबाधां करिष्यति।
तत्राहं {33}भ्रामरं रूपं कृत्वासंख्येयषट्‌पदा ।। 42 ।।
{33. भ्रमरं E. F. }
त्रैलोक्यस्य हितार्थाय वधिष्यामि महासुरम्।
भ्रामरीति च मां लोकास्तदा स्तोष्यन्ति {34}सर्वदा ।। 43 ।।
{34. संयताः A. }
28-43. सुनन्दा-रक्तदन्तिका-शताक्षी-शाकंभरी-दुर्गा-भीमा-भ्रामरीणामुपाख्यानानि मार्कण्डेयपुराणे देवी माहात्म्ये एकादशाध्याये द्रष्टव्यानि।
इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं हनिष्यामि महासुरान् ।। 44 ।।
44. - - - - - - - - - - - -
अमी ते लेशतः शक्र दर्शिताः परमाद्भुताः।
अवतारा निरातङ्का मदीयाः केवलाह्वयाः ।। 45 ।।
45. - - - - - - - - - - - - -
एतेषां परमा प्रोक्ता कूटस्था सा महीयसी।
महालक्ष्मीर्महाभागा प्रकृतिः परमेश्वरी ।। 46 ।।
46. - - - - - - - - - - -
अमुष्याः स्तुतये दृष्टं ब्रह्माद्यैः सकलैः सुरैः।
`नमो देव्या'दिकं सूक्तं सर्वकामप्रदं {35}वरम् ।। 47 ।।
47. इदं च मार्कण्डेयपुराणे देवीमाहात्म्ये पञ्चमाध्याये पठितम्।
{35. परम् B. }
इमां देवीं स्तुवन्नित्यं स्तोत्रेणानेन मामिह।
{36}क्लेशानतीत्य सकलानैश्वर्यं महदश्नुते ।। 48 ।।
48. - - - - - - - - - - - - -
{36. B. F. omit this line. }
अमुष्याः सावताराया महालक्ष्म्या ममानघ।
जन्मानि चरितैः सार्धं स्तोत्रैर्वैभववादिभिः{37} ।। 49 ।।
49. - - - - - - - - - - - - - -
{37. कारिभिः E. }
कथितानि पुरा शक्र वसिष्ठेन महात्मना।
स्वारोचिषेऽन्तरे राज्ञे सुरथाय महात्मने ।। 50 ।।
50. इदं चोपाख्यानं मार्कण्डेयपुराणे देवीमाहात्म्ये प्रथमाध्याये दृस्यते।
समाधये च {38}वैश्याय प्रणतायावसीदते।
भक्तिश्रद्धावता नित्यं वसिष्ठेन कृतेति मे ।। 51 ।।
51. - - - - - - - - - - - - -
{38. वश्याय B. }
हृदि स्थिता सदा सेयं जन्मकर्मावलिस्तुतिः।
एतां द्विजमुखाच्छ्रुत्वा ह्यधीयानो नरः सदा ।। 52 ।।
52. - - - - - - - - - - - - -
{39}विधूय निखिलां मायां सम्यग्ज्ञानं समश्नुते।
{40}सर्वां संपदमाप्रोति धुनोति सकलापदः ।। 53 ।।
53. - - - - - - - - - - - - -
{39. C. omits this line. }
{40. सर्व E. I. }
मम प्रभावात् सौभाग्यं कीर्ति चैव समश्नुते।
{41}केवला अपि यद्येते मदीया विष्णुना विना ।। 54 ।।
54. - - - - - - - - - - - - - -
{41. केवलाः कथयन्त्येते A. B. C. }
न मेऽस्ति संभवः सोऽयमहंभूतः स्थितोऽत्र तु।
अन्योन्येनाविनाभावादन्योन्येन समन्वयात् ।। 55 ।।
55. - - - - - - - - - - - - -
{42}मय्ययं देवदेवेशस्तत्राहं च सनातनी।
इत्येते लेशतः शक्र दर्शिताः सप्रकारकाः ।। 56 ।।
56. - - - - - - - - - - - -
{42. मय्येवं वर्तते देवः E. }
अवतारा मदीयास्ते संभूताः कोशपञ्चके।
शुद्धे कोशे समुद्भूता भवद्भावात्मकाः परे{43} ।। 57 ।।
57. - - - - - - - - - - - - - - -
{43. भावात्मकात्मके A. B. C. }
तत्राप्येषा स्थितिर्ज्ञेया विष्णोर्मम सह स्थितिः।
एवंप्रकारां{44} मां ज्ञात्वा प्रत्यक्षां सर्वसंमताम् ।। 58 ।।
58. - - - - - - - - - - - - - -
{44. प्रकारं E. F. }
उपायैर्विविधैः शश्वदुपास्य {45}बहुधात्मिकाम्।
क्लेशकर्माशयातीतो मद्भावं प्रतिपद्यते ।। 59 ।।
59. - - - - - - - - - - -
{45. विविधा B. }
इति {46}श्रीपाञ्चरात्रसारे लक्ष्मीतन्त्रे {47}केवलावतारप्रकाशो नाम नवमोऽध्यायः।
{46. श्रीपञ्चरात्र A.; पाञ्चरात्र B.; श्रीपाञ्चरात्रे I.}
{47. भगवदविनामावकथनं नाम A. G.; I. omits the title. }
********इति नवमोऽध्यायः********