लघुसिद्धान्तकौमुदी/हलन्तस्त्रीलिङ्गप्रकरणम्
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अथ हलन्तस्त्रीलिङ्गाः
नहो धः॥ लसक_३६१ = पा_८,२.३४॥
नहो हस्य धः स्याज्झलि पदान्ते च॥
नहिवृतिवृषिव्यधिरुचिसहितनिषु क्वौ॥ लसक_३६२ = पा_६,३.११६॥
क्विबन्तेषु पूर्वपदस्य दीर्घः। उपानत्, उपानद्। उपानहौ। उपानत्सु॥ क्विन्नन्तत्वात् कुत्वेन घः। उष्णिक्, उष्णिग्। उष्णिहौ। उष्णिग्भ्याम्॥ द्यौः। दिवौ। दिवः। द्युभ्याम्॥ गीः। गिरौ। गिरः॥ एवं पूः॥ चतस्रः। चतसृणाम्॥ का। के। काः। सर्वावत्॥
यः सौ॥ लसक_३६३ = पा_७,२.११०॥
इदमो दस्य यः इयम्। त्यदाद्यत्वम्। पररूपत्वम्। टाप्। दश्चेति मः। इमे। इमाः। इमाम्। अनया। हलि लोपः। आभ्याम्। आभिः। अस्यै। अस्याः। अनयोः। आसाम्। अस्याम्। आसु॥ त्यदाद्यत्वम्। टाप्। स्या। त्ये। त्याः॥ एवं तद्, एतद्॥ वाक्, वाग्। वाचौ। वाग्भ्याम्। वाक्षु॥ अप्शब्दो नित्यं बहुवचनान्तः। अप्तृन्निति दीर्घः। आपः। अपः॥
अपो भि॥ लसक_३६४ = पा_७,४.४८॥
अपस्तकारो भादौ प्रत्यये। अद्भिः। अद्भ्यः। अद्भ्यः। अपाम्। अप्सु॥ दिक्, दिश्। दिशौ। दिशः। दिग्भ्याम्॥ त्यदादिष्विति दृशेः क्विन्विधानादन्यत्रापि कुत्वम्। दृक्, दृग्। दृशौ। दृग्भ्याम्॥ त्विट्, त्विड्। त्विषौ। त्विड्भ्याम्॥ ससजुषो रुरिति रुत्वम्। सजूः। सजुषौ। सजूर्भ्याम्॥ आशीः। आशिषौ। आशीर्भ्याम्॥ असौ। उत्वमत्वे। अमू। अमूः। अमुया। अमूभ्याम् ३। अमूभिः। अमुष्यै। अमूभ्यः २। अमुष्याः। अमुयोः २। अमूषाम्। अमुष्याम्। अमूषु॥
इति हलन्तस्त्रीलिङ्गाः।