लघुसिद्धान्तकौमुदी/स्त्रीप्रत्ययप्रकरणम्
← स्वार्थिकप्रकरणम् | लघुसिद्धान्तकौमुदी स्त्रीप्रत्ययप्रकरणम् वरदराजः |
अथ स्त्रीप्रत्ययाः
स्त्रियाम्॥ लसक_१२५१ = पा_४,१.३॥
अधिकारो ऽयम्। समर्थानामिति यावत्॥
अजाद्यतष्टाप्॥ लसक_१२५२ = पा_४,१.४॥
अजादीनामकारान्तस्य च वाच्यं यत् स्त्रीत्वं तत्र द्योत्ये टाप् स्यात्। अजा। एडका। अश्वा। चटका। मूषिका। बाला। वत्सा। होडा। मन्दा। विलाता। इत्यादि॥ मेधा। गङ्गा। सर्वा॥
उगितश्य॥ लसक_१२५३ = पा_४,१.६॥
उगिदन्तात्प्रातिपदिकात्स्त्रियां ङीप्स्यात्। भवती। भवन्ती। पचन्ती। दीव्यन्ती॥
टिड्ढाणञ्द्वयसज्दघ्नञ्मात्रच्तयप्ठक्ठञ्कञ्क्वरपः॥ लसक_१२५४ = पा_४,१.१५॥
अनुपसर्दनं यट्टिदादि तदन्तं यददन्तं प्रातिपदिकं ततः स्त्रियां ङीप्स्यात्। कुरुचरी। नदट् नदी। देवट् देवी। सौपर्णेयी। ऐन्द्री। औत्सी। ऊरुद्वयसी। ऊरुदघ्नी। ऊरुमात्री। पञ्चतयी। आक्षिकी। लावणिकी। यादृशी। इत्वरी। (नञ्स्नञीकक्ख्युंस्तरुणतलुनानामुपसंख्यानम्)। स्त्रैणी। पैंस्नी। शाक्तीकी। याष्टीकी। आढ्यङ्करणी। तरुणी। तलुनी॥
यञश्च॥ लसक_१२५५ = पा_४,१.१६॥
यञन्तात् स्त्रियां ङीप्स्यात्। अकारलोपे कृते - .
हलस्तद्धितस्य॥ लसक_१२५६ = पा_६,१.१५०॥
हलः परस्य तद्धितयकारस्योपधाभूतस्य सोप ईति परे। गार्गी॥
प्राचां ष्फ तद्धितः॥ लसक_१२५७ = पा_४,१.१७॥
यञन्तात् ष्फो वा स्यात्स च तद्धितः॥
षिद्गौरादिभ्यश्च॥ लसक_१२५८ = पा_४,१.४१॥
षिद्भ्यो गौरादिभ्यश्च स्त्रियां ङीष् स्यात्। गार्ग्यायणी। नर्तकी। गौरी। अनुडुही। अनड्वाही। आकृतिगणो ऽयम्॥
वयसि प्रथमे॥ लसक_१२५९ = पा_४,१.२०॥
प्रथमवयोवाचिनो ऽदन्तात् स्त्रियां ङीप्स्यात्। कुमारी॥
द्विगोः॥ लसक_१२६० = पा_४,१.४१॥
अदन्ताद् द्विगोर्ङीप्स्यात्। त्रिलोकी। अजादित्वात्त्रिफला। त्र्यनीका सेना॥
वर्णादनुदात्तात्तोपधात्तो नः॥ लसक_१२६१ = पा_४,१.३९॥
वर्णवाची यो ऽनुदात्तान्तस्तोपधस्तदन्तादनुपसर्जनात्प्रातिपदिकाद्वा ङीप् तकारस्य नकारादेशश्च। एनी, एता। रोहिणी, रोहिता॥
वोतो गुणवचनात्॥ लसक_१२६२ = पा_४,१.४४॥
उदन्ताद् गुणवाचिनो वा ङीष् स्यात्। मृद्वी, मृदुः॥
बह्वादिभ्यश्च॥ लसक_१२६३ = पा_४,१.४५॥
एभ्यो वा ङीष् स्यात्। बह्वी, बहुः। (कृदिकारादक्तिनः)/ रात्री, रात्रिः। (सर्वतो ऽक्तिन्नर्थादित्येके)/ शकटी। शकटिः॥
पुंयोगादाख्यायाम्॥ लसक_१२६४ = पा_४,१.४८॥
या पुमाख्या पुंयोगात् स्त्रियां वर्तते ततो ङीष्। गोपस्य स्त्री गोपी। (पालकान्तान्न) - .
प्रत्ययस्थात्कात्पूर्वस्यात इदाप्यसुपः॥ लसक_१२६५ = पा_७,३.४४॥
प्रत्ययस्थात्कात्पूर्वस्याकारस्येकारः स्यादापि स आप्सुपः परो न चेत्। गोपालिका। अश्वपालिका। सर्विका। कारिका। अतः किम् ? नौका। प्रत्ययस्थात्किम् ? शक्नोतीति शका। असुपः किम् ? बहुपरिव्राजका नगरी। (सूर्याद्देवतायां चाब्वाच्यः)। सूर्यस्य स्त्री देवता सूर्या। देवतायां किम् ? (सूर्यागस्त्ययोश्छे च ङ्यां च)। यलोपः। सूरी - कुन्ती॑ मानुषीयम्॥
इन्द्रवरुणभवशर्वरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलचार्याणामानुक् लसक_१२६६ = पा_४,१.४९॥
एषामानुगागमः स्यात् ङीष् च। इन्द्रस्य स्त्री - इन्द्राणी। वरुणानी। भवानी। शर्वाणी। रुद्राणी। मृडानी। (हिमारण्ययोर्महत्त्वे)। महद्धिमं हिमानी। महदरण्यमरण्यानी। (यवाद्दोषे)। दुष्टो यवो यवानी। (यवनाल्लिप्याम्)। यवनानां लिपिर्यवनानी। (मातुलोपाध्याययोरानुग्वा)। मातुलानी, मातुली। उपाध्यायानी, उपाध्यायी। (आचार्यादणत्वं च)। आचार्यस्य स्त्री आचार्यानी। (अर्यक्षत्रियाभ्यां वा स्वार्थे), अर्याणी, अर्या। क्षत्रियाणी, क्षत्रिया॥
क्रीतात्करणपूर्वात्॥ लसक_१२६७ = पा_४,१.५०॥
क्रीतान्ताददन्तात् करणादेः स्त्रियां ङीष्स्यात्। वस्त्रक्रीती। क्वचिन्न। धनक्रीता॥
स्वाङ्गाच्चोपसर्जनादसंयोगोपधात्॥ लसक_१२६८ = पा_४,१.५४॥
असंयोगोपधमुपसर्जनं यत् स्वाङ्गं तदन्ताददन्तान् ङीष्वा स्यात्। केशानतिक्रान्ता - अतिकेशी, अतिकेशा। चन्द्रमुखी चन्द्रमुखा। असंयोगोपधात्किम् ? सुगुल्फा। उपसर्जनात्किम् ? शिखा॥
न क्रोडादिबह्वचः॥ लसक_१२६९ = पा_४,१.५६॥
क्रोडादेर्बह्वचश्च स्वाङ्गान्न ङीष्। कल्याणक्रोडा। आकृतिगणो ऽयम्। सुजघना॥
नखमुखात्संज्ञायाम्॥ लसक_१२७० = पा_४,१.५८॥
न ङीष्॥
पूर्वपदात्संज्ञायामगः॥ लसक_१२७१ = पा_८,४.३॥
पूर्वपदस्थान्निमित्तात्परस्य नस्य णः स्यात् संज्ञायां न तु गकारव्यवधाने। शूर्पणखा। गौरमुखा। संज्ञायां किम् ? ताम्रमुखी कन्या॥
जातेरस्त्रीविषयादयोपधात्॥ लसक_१२७२ = पा_४,१.६३॥
जातिवाचि यन्न च स्त्रियां नियतमयोपधं ततः स्त्रियां ङीष् स्यात्। तटी। वृषली। कठी। बह्वृची। जातेः किम् ? मुण्डा। अस्त्रीविषयात्किम् ? बलाका। अयोपधात्किम् ? क्षत्रिया। (योपधप्रतिषेधे हयगवयमुकयमनुष्यमत्स्यानामप्रतिषेधः)। हयी। गवयी। मुकयी। हलस्तद्धितस्येति यलोपः। मनुषी। (मत्स्यस्य ङ्याम्)। यलोपः। मत्सी॥
इतो मनुष्यजातेः॥ लसक_१२७३ = पा_४,१.६५॥
ङीष्। दाक्षी॥
ऊङुतः॥ लसक_१२७४ = पा_४,१.६६॥
उदन्तादयोपधान्मनुष्यजातिवाचिनः स्त्रियामूङ् स्यात्। कुरूः। अयोपधात्किम् ? अध्वर्युर्ब्राह्मणी॥
पङ्गोश्च॥ लसक_१२७५ = पा_४,१.६८॥
पङ्गूः। (श्वशुरस्योकाराकारलोपश्च)। श्वश्रूः॥
ऊरूत्तरपदादौपम्ये॥ लसक_१२७६ = पा_४,१.६९॥
उपमानवाची पूर्वपदमूरूत्तरपदं यत्प्रातिपदिकं तस्मादूङ् स्यात्। करभोरूः॥
संहिताशफलक्षणवामादेश्च॥ लसक_१२७७ = पा_४,१.७०॥
अनौपम्यार्थं सूत्रम्। संहितोरूः। शफोरूः। लक्षणोरूः। वामोरूः॥
शार्ङ्गरवाद्यञो ङीन्॥ लसक_१२७८ = पा_४,१.७३॥
शार्ङ्गरवादेरञो यो ऽकारस्तदन्ताच्च जातिवाचिनो ङीन् स्यात्/ शार्ङ्गरवी/ बैदी। ब्राह्मणी। (नृनरयोर्वृद्धिश्च)/ नारी॥
यूनस्तिः॥ लसक_१२७९ = पा_४,१.७७॥
युवञ्छब्दात् स्त्रियां तिः प्रत्ययः स्यात्। युवतिः॥