महाभारतम्-10-सौप्तिकपर्व-010
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दैवादुर्वरितेन दृष्टद्युम्नसारथिना युधिष्ठिराय रात्रौ वृत्तशिबिरवृत्तान्तविनेदनम्।। 1 ।। तच्छ्रवणेन द्रौपद्यानयनाय नकुलभादिश्य शिबिरभुवमुपागतवता युधिष्ठिरेण गृतनिजजनावलोकनेन परिदेवनम्।। 2 ।।
वैशम्पायन उवाच। | 10-10-1x |
तस्यां रात्र्यां व्यतीतायां धृष्टद्युम्नस्य सारथिः। गत्वा शशंस पाण्डुभ्यः सौप्तिके कदनं कृतम्।। | 10-10-1a 10-10-1b |
सूत उवाच। | 10-10-2x |
द्रौपदेया हता राजन्द्रुपदस्वात्मजैः सह। प्रमत्ता निशि विश्वस्ताः स्वपन्तः शिबिरे स्वके।। | 10-10-2a 10-10-2b |
गौतमेन नृशंसेन भोजेन कृतवर्मणा। अश्वत्थान्ना च पापेन हतं वः शिबिरं निशि।। | 10-10-3a 10-10-3b |
एतैर्नरगजाश्वानां प्रासशक्तिपरश्वयैः। सहस्रामि विकृन्द्भिर्निः शेषं शिबिरं कृतम्।। | 10-10-4a 10-10-4b |
`xxxxxxविहगफलभारनतस्य ह।' xxxxxxxमहतो वनस्येव परश्वथैः। xxxxxxxx सुमहाञ्शब्दो बलस्य तव भारत।। | 10-10-5a 10-10-5b 10-10-5c |
महमेकोऽबशिष्टस्तु तस्मात्सैन्यामहीपते। मुक्तः कथञ्चिद्धर्मात्मन्व्यग्राच्च कृतवर्मणः।। | 10-10-6a 10-10-6b |
तच्छ्रुत्वा वाक्यमशिवं कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। पपात मह्यां धर्मात्मा पुत्रशोकसमन्वितः।। | 10-10-7a 10-10-7b |
पतन्तं तमतिक्रम्य परिजग्राह सात्यकिः। भीमसेनोऽर्जुनश्चैव माद्रीपुत्रौ च पाण्डवौ।। | 10-10-8a 10-10-8b |
लब्धचेतास्तु कौन्तेयः शोकविह्वलया गिरा। जित्वा शत्रूञ्जितः पश्चात्पर्यदेवयदार्तवत्।। | 10-10-9a 10-10-9b |
`अगम्या गतिरर्थानां कर्मणामीश्वरस्य च'। दुर्विदा गतिरर्थानामपि ये दिव्यचक्षुषः। जीयमाना जयन्त्यन्ये जयमाना वयं जिताः।। | 10-10-10a 10-10-10b 10-10-10c |
हत्वा भ्रातॄन्वयस्यांश्च पितॄन्पुत्रान्सुहृद्गणान्। बन्धूनमात्यान्पौत्रांश्च जित्वा सर्वाञ्जिता वयम्।। | 10-10-11a 10-10-11b |
अनर्थो ह्यर्थसङ्काशस्तथाऽनर्थोऽर्थदर्शनः। जयोऽयमजयाकारो जयस्तस्मात्पराजयः।। | 10-10-12a 10-10-12b |
यज्जित्वा तप्यते पश्चादापन्न इव दुर्मतिः। कथं मन्येत विजयं ततो जिततरः परैः।। | 10-10-13a 10-10-13b |
येषामर्थाय पापं स्याद्विजयस्य सुहृद्वधैः। निर्जितैरप्रमत्तैर्हि विजिता जितकाशिनः।। | 10-10-14a 10-10-14b |
कर्णिनालीकदंष्ट्रस्य स्वङ्गजिह्वस्य संयुगे। चापव्यात्तास्यरौद्रस्य ज्यातलस्वननादिनः।। | 10-10-15a 10-10-15b |
क्रुद्धस्य नरसिंहस्य सङ्ग्रामेष्वपलायिनः। ये व्यमुञ्चन्त कर्णस्य प्रमादात्त इमे हताः।। | 10-10-16a 10-10-16b |
रथहदं शरवर्षोर्मिमन्तं रत्नाचितं वाहनयोधबृन्दम्। शक्त्यृष्टिमीनध्वजनागनक्रं शरासनावर्तमहेषुफेनम्।। | 10-10-17a 10-10-17b 10-10-17c 10-10-17d |
सङ्ग्रामचन्द्रोदयवेगवेलं द्रोणार्णवं ज्यातलनेमिघोषम्। ये तेरुरुच्चावचशस्त्रनौभि-- स्ते राजपुत्रा निहताः प्रमादात्।। | 10-10-18a 10-10-18b 10-10-18c 10-10-18d |
न हि प्रमादात्परमस्ति कश्च-- द्वधो नराणामिह जीवलोके। प्रमत्तमर्था हि नरं समन्ता-- त्त्यजन्त्यनर्थाश्च समाविशन्ति।। | 10-10-19a 10-10-19b 10-10-19c 10-10-19d |
ध्वजोत्तमाग्रोच्छ्रितधूमकेतुं शरार्चिषं दीप्तमहापताकम्। महाधनुर्ज्यातलनेमिघोषं तनुत्रनानाविधशस्त्रहोमम्।। | 10-10-20a 10-10-20b 10-10-20c 10-10-20d |
महाचमूकक्षदवाभिपन्नं महाहवे भीष्ममहादवाग्निम्। ये तेरुरुच्चावचशस्त्रवेगै-- स्ते राजपुत्रा निहताः प्रमादात्।। | 10-10-21a 10-10-21b 10-10-21c 10-10-21d |
न हि प्रमत्तेन नरेण शक्य-- माप्तुं वसु श्रीर्विपुलं यशो वा। पश्याप्रमादेन निहत्य शत्रू-- न्सर्वान्महेन्द्रं सुखमेधमानम्।। | 10-10-22a 10-10-22b 10-10-22c 10-10-22d |
इन्द्रोपमान्पार्थिवपुत्रपौत्रा-- न्पश्याविशेषेण हतान्प्रमादात्। तीर्त्वा समुद्रं जणिजः समृद्वा। मग्नाः कुनद्यामिव सीदमानाः।। | 10-10-23a 10-10-23b 10-10-23c 10-10-23d |
अमर्षितैर्ये निहता नरेन्द्रा निःसंशयं ते त्रिदिवं प्रपन्नाः। कृष्णां तु शोचामि कथं नु साध्वी शोकार्णवं सा विषहिष्यतीति।। | 10-10-24a 10-10-24b 10-10-24c 10-10-24d |
भातृंश्च पुत्रांश्च हतान्निशम्य पाञ्चालसराजं पितरं च वृद्वम्। ध्रुवं विसञ्ज्ञा पतिता पृथिव्यां सा शोष्यते शोककृशाङ्गयष्टिः।। | 10-10-25a 10-10-25b 10-10-25c 10-10-25d |
तच्छोकजं दुःखमपारयन्ती कथं भविष्यत्युचिता सुखानाम्। रोरूयते ज्ञातिवधाभितप्ता प्रदह्वमानेव हुताशनेन।। | 10-10-26a 10-10-26b 10-10-26c 10-10-26d |
इत्येवमार्तः परिदेवयन्स राजाज कुरूणां नकुलं बभाषे। गच्छान्यैनामिह मन्दभाग्यां समातृपक्षामिति राजपुत्रीम्।। | 10-10-27a 10-10-27b 10-10-27c 10-10-27d |
माद्रीसुतस्तत्परिगृह्य वाक्यं धर्मेण धर्मप्रथमस्य राज्ञः। ययौ रथेनालयमाशुदेव्याः पाञ्चालराजस्य च यत्र दाराः।। | 10-10-28a 10-10-28b 10-10-28c 10-10-28d |
प्रस्थाप्य माद्रीसुतमाजमीढः शोकार्दितस्तैः सहितः सुहृद्भिः। रोरूयमाणः प्रययौ सुताना-- मायोधनं भूतगणानुकीर्णम्।। | 10-10-29a 10-10-29b 10-10-29c 10-10-29d |
स तत्प्रविश्याशिवमुग्ररूपं ददर्श पुत्रान्सुहृदः सखींश्च। भूमौ शयानान्रुधिरार्द्रगात्रा-- न्विभिन्नदेहान्प्रहृतोत्तमाङ्गान्।। | 10-10-30a 10-10-30b 10-10-30c 10-10-30d |
स तांस्तु दृष्ट्वा भृशमार्तरूपो युधिष्ठिरो धर्मभृतां वरिष्ठः। उच्चैः प्रचुक्रोश च कौरवाग्र्यः पपात चोर्व्यां सगणो विसंज्ञः।। | 10-10-31a 10-10-31b 10-10-31c 10-10-31d |
।। इति श्रीमन्महाभारते सौप्तिकपर्वणि ऐषीकपर्वणि दशमोऽध्यायः।। 10 ।। |
10-10-8 xxxxxxxxत्यक्त्वा पतन्तम्।। 10-10-10 अन्ये शत्रवः। जयमानाः जयन्तः। जितानां जयो जयतां पराजयः फलतोऽभूदिति महदाश्चर्यमित्यर्थः।। 10-10-13 पश्चात्स पाप इव दुर्मतिरिति क.पाठः।। 10-10-16 व्यमुञ्चन्त मुक्ताः। कर्णस्य कर्णात्। प्रमादादस्मत्कृतादसान्निध्यात्।। 10-10-17 वाहनवाजियुक्तमिति झ.पाठः।। 10-10-20 तनुत्राणि नानाषिधानि शस्कराणि च तेषां होमः प्रक्षेपो यत्र तं तनुत्रनानाविधशस्त्रहोमम्।। 10-10-21 भीष्ममयं भीष्मप्रधानं अग्निदाहम्। भीष्मरूपेण अग्निना दाहमित्यर्थः।। 10-10-24 निहताः शयाना इति झ.पाठः।। 10-10-10 दशमोऽध्यायः।।
सौप्तिकपर्व-009 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सौप्तिकपर्व-011 |