महाभारतम्-10-सौप्तिकपर्व-007
दिखावट
← सौप्तिकपर्व-006 | महाभारतम् दशमपर्व महाभारतम्-10-सौप्तिकपर्व-007 वेदव्यासः |
सौप्तिकपर्व-008 → |
द्रौणिना शिवस्तुतिः।। 1 ।। द्रौणेः पुरतः काञ्चनवेद्यामग्न्युद्भवः।। 2 ।। द्रौणेः समीपे नानाविधभीषणभूतगणानामागमनम्।। 3 ।। शिवेन आत्मनो हविष्ट्वकल्पनपूर्वकमग्नौ प्रविष्टाय द्रौणये खङ्गदानपूर्वकं तच्छरीरप्रवेशः।। 4 ।। पुनरश्वत्थाम्नः शिबिरगमनम्।। 5 ।।
सञ्जय उवाच। | 10-7-1x |
एवं सञ्चिन्तयित्वा तु द्रोणपुत्रो विशाम्पते। अवतीर्य रथोपस्थाद्दध्यौ स प्रयतः स्थितः।। | 10-7-1a 10-7-1b |
द्रौणिरुवाच। | 10-7-2x |
उग्रं स्थाणुं शिवं रुद्रं शर्वमीशानमीश्वरम्। गिरिशं वरदं देवं भवभावनमव्ययम्।। | 10-7-2a 10-7-2b |
शितिकण्ठमजं रुद्रं दक्षक्रतुहरं हरम्। विश्वरूपं विरूपाक्षं बहुरूपमुमापतिम्।। | 10-7-3a 10-7-3b |
श्मशानवासिनं दृप्तं महागणपतिं विभुम्। खट्वाङ्गधारिणं मुण्डं जटिलं ब्रह्मचारिणम्।। | 10-7-4a 10-7-4b |
मनसा ह्यनुचिन्त्यैनं दुष्करेणाल्पचेतसा। अद्य भूतोपहारेण यक्ष्ये त्रिपुराघातिनम्।। | 10-7-5a 10-7-5b |
xxतुतं स्तुत्यं स्तूयमानममोघं कृत्तिवाससम्। विलोहितं नीलकण्ठमसह्यं दुर्निवारणम्।। | 10-7-6a 10-7-6b |
शुक्रं विश्वसृजं ब्रह्म ब्रह्मचारिणमेव च। व्रतवन्तं तपोनिष्ठमनन्तं तपतां गतिम्।। | 10-7-7a 10-7-7b |
बहुरूपं गणाध्यक्षं त्र्यक्षं पारिषदप्रियम्। धनाध्यक्षप्रियसखं गौरीहृदयवल्लभम्।। | 10-7-8a 10-7-8b |
कुमारपितरं पिङ्गं गोवृषोत्तमवाहनम्। कुत्तिवाससमत्युग्रमातोषणतत्परम्।। | 10-7-9a 10-7-9b |
परं परेभ्यः परमं परं यस्मान्न विद्यते। इष्वस्त्रोत्तमभर्तारं दिगन्तं देशरक्षिणम्।। | 10-7-10a 10-7-10b |
हिरण्यकवचं देवं चन्द्रमौलिविभूषणम्। प्रपद्ये शरणं देवं परमेण समाधिना।। | 10-7-11a 10-7-11b |
इमां चेदापदं घोरां तराम्यद्य सुदुस्तराम्। सर्वभूतोपहारेण यक्ष्येऽहं शुचिना शुचिम्।। | 10-7-12a 10-7-12b |
इति तस्य व्यवसितं ज्ञात्वा योगात्सुकर्मणः। पुरस्तात्काञ्चनी वेदी प्रादुरासीन्महात्मनः।। | 10-7-13a 10-7-13b |
तस्यां वेद्यां तदा राजंश्चित्रभानुरजायत। स दिशो विदिशः खं च ज्वालाभिरिव पूरयन्।। | 10-7-14a 10-7-14b |
दीप्तास्यनयनाश्चात्र नैकपादशिरोधराः। [रत्नचित्राङ्गदधराः समुद्यतकरास्तथाः।।] | 10-7-15a 10-7-15b |
द्विपाः शैलप्रतीकाशाः प्रादुरासन्महागणाः। श्ववराहोष्ट्ररूपाश्च हयगोमायुगोमुखाः।। | 10-7-16a 10-7-16b |
ऋक्षमार्जारवदना व्याघ्रद्वीपिमुखास्तथा। काकवक्त्राः प्लुवमुखाः शुकवक्त्रास्तथैव च।। | 10-7-17a 10-7-17b |
महाजगरवक्त्राश्च हंसवक्त्राः शितप्रभाः। दार्वाघाटमुखाश्चापि चाषवक्त्राश्च भारत।। | 10-7-18a 10-7-18b |
कूर्मनक्रमुखाश्चैव शिंशुमारमुखास्तथा। महामकरवक्त्राश्च तिमिवक्त्रास्तथैव च।। | 10-7-19a 10-7-19b |
हरिवक्त्राः क्रौञ्चमुखाः कपोताभमुखास्तथा। पारावतमुखाश्चैव मद्गुवक्त्रास्तथैव च।। | 10-7-20a 10-7-20b |
पाणिकर्णाः सहस्राक्षास्तथैव च महोदराः। निर्मांसाः काकवक्त्राश्च श्येनवक्त्राश्च भारत।। | 10-7-21a 10-7-21b |
तथैवाशिरसो राजन्नृक्षवक्त्राश्च भीषणाः। प्रदीप्तनेत्रजिह्वाश्च ज्वालावर्णास्तथैव च।। | 10-7-22a 10-7-22b |
ज्वालाकेशाश्च राजेन्द्र ज्वलद्रोमचतुर्भुजाः। मेषवक्त्रास्तथैवान्ये तथा छागमुखा नृप।। | 10-7-23a 10-7-23b |
शङ्खाभाः शङ्खवक्त्राश्च शङ्खवर्णास्तथैव च। शङ्खमालापरिकराः शह्खध्वनिसमस्वनाः।। | 10-7-24a 10-7-24b |
जटाधराः प़ञ्चशिखास्तथा मुण्डाः कृशोदराः। चतुर्दंष्ट्राश्चतुर्जिह्वाः शङ्कुकर्णाः किरीटिनः।। | 10-7-25a 10-7-25b |
मौञ्जीधराश्च राजेन्द्र तथा कुञ्चितमूर्धजाः। उष्णीषिणः कुण्डलिनश्चारुवक्त्राः स्वलङ्कृताः।। | 10-7-26a 10-7-26b |
पद्मोत्पलापीडधरास्तथा मुकुटधारिणः। महात्म्येन च संयुक्ताः शतशोऽथ सहस्रशः।। | 10-7-27a 10-7-27b |
शतघ्नीचक्रहस्ताश्च तथा मुसलपाणयः। भुशुण्डीपाशहस्ताश्च दण्डहस्ताश्च भारत।। | 10-7-28a 10-7-28b |
पृष्ठेषु बद्धेषुधयश्चित्रबाणोत्कटास्तथा। सध्वजाः सपताकाश्च सघण्टाः सपरश्वथाः।। | 10-7-29a 10-7-29b |
महापाशोद्यतकरास्तथा लगुडपाणयः। स्थूणाहस्ताः खङ्गहस्ताः सर्पोच्छ्रितकिरीटिनः।। | 10-7-30a 10-7-30b |
महासर्पाङ्गदधराश्चित्राभरणधारिणः। रजोध्वजाः पङ्कदिग्धाः सर्वे चित्राम्बरस्रजः। नीलाङ्गाः पिङ्गलाङ्गाश्च मुण्डवक्तास्तथैव च।। | 10-7-31a 10-7-31b 10-7-31c |
भेरीशङ्खमृदङ्गांश्च झर्झरानकगोमुखान्। अवादयन्पारिषदाः प्रहृष्टाः कनकप्रभाः।। | 10-7-32a 10-7-32b |
गायमानास्तथैवान्ये संहृष्टाः पुरुषर्षभाः। लङ्घयन्तः प्लुवन्तश्च वल्गन्तश्च महारथाः।। | 10-7-33a 10-7-33b |
धावन्तो जवनाश्चण्डाः पावकोद्वूतमूर्धजाः। मत्ता इव महानागा विनदन्तो मुहुर्मुहुः।। | 10-7-34a 10-7-34b |
सुभीमा घोररूपाश्च शूलपट्टसपाणयः। नानाविरागवसनाश्चित्रमाल्यानुलेपनाः।। | 10-7-35a 10-7-35b |
रत्नचित्राङ्गदधराः समुद्यतकरास्तथा। हन्तारो द्विषतां शूराः प्रसह्यासह्यविक्रमाः।। | 10-7-36a 10-7-36b |
पातारोऽसृग्वसाज्यानां मांसान्त्रकृतभोजनाः। चूडालाः कर्णिकाराश्च प्रहृष्टाः पिठरोदराः।। | 10-7-37a 10-7-37b |
अतिहस्वातिदीर्घाश्च प्रलम्बाश्चातिभैरवाः। विकटाः काललंबोष्ठा बृहच्छेफाण्डपिण्डिकाः।। | 10-7-38a 10-7-38b |
महार्हनानाविकटा मुण्डाश्च जटिलाः परे। सार्केन्दुग्रहनक्षत्रां द्यां कुर्युस्ते महीतले।। | 10-7-39a 10-7-39b |
उत्सहेरंश्च ये हन्तुं भूतग्रामं चतुर्विधम्। ये च वीतभया नित्यं हरस्य भ्रुकुटीसहाः।। | 10-7-40a 10-7-40b |
कामकारकरा नित्यं त्रैलोक्यस्येश्वरेश्वराः। नित्यानन्दप्रमुदिता वागीशा वीतमत्सराः।। | 10-7-41a 10-7-41b |
प्राप्याष्टगुणमैश्वर्यं ये न यास्यन्ति वै स्मयम्। येषां विस्मयते नित्यं भगवान्कर्मभिर्हरः।। | 10-7-42a 10-7-42b |
मनोवाक्कर्मभिर्युक्तैर्नित्यमाराधितश्च यैः। मनोवाक्कर्मभिर्भक्तान्पाति पुत्रानिवौरसान्।। | 10-7-43a 10-7-43b |
पिबन्तोऽसृग्वसाश्चान्ये क्रुद्धा ब्रह्मद्विषां सदा। चतुर्विधात्मकं सोमं ये पिबन्ति च सर्वदा।। | 10-7-44a 10-7-44b |
श्रुतेन ब्रह्मचर्येण तपसा च दमेन च। ये समाराध्य शूलाङ्कं भवसायुज्यमागताः।। | 10-7-45a 10-7-45b |
यैरात्मभूतैर्भगवान्पार्वत्या च महेश्वरः। महाभूतगणैर्भुङ्क्ते भूतभव्यभवत्प्रभुः।। | 10-7-46a 10-7-46b |
नानावादित्रहसितक्ष्वेडितोत्कृष्टगर्जितैः। सन्त्रासयन्तस्ते विश्वमश्वत्थामानमभ्ययुः।। | 10-7-47a 10-7-47b |
संस्तुवन्तो महादेवं भाः कुर्वाणाः सुवर्चसः। विवर्धयिषवो द्रौणेर्महिमानं महात्मनः।। | 10-7-48a 10-7-48b |
जिज्ञासमानास्तत्तेजः सौप्तिकं च दिदृक्षवः। भीमोग्रपरिघालातशूलपट्टसपाणयः। घोररूपाः समाजग्मुर्भूतसङ्घाः सहस्रशः।। | 10-7-49a 10-7-49b 10-7-49c |
जनयेयुर्भयं ये स्म त्रैलोक्यस्यापि दर्शनात्। न च तान्प्रेक्षमाणोऽपि व्यथामुपजगाम ह।। | 10-7-50a 10-7-50b |
अथ द्रौणिर्धनुष्पाणिर्बद्धगोधाङ्गुलित्रवान्। स्वयमेवात्मनात्मानमुपहारमुपाहरत्।। | 10-7-51a 10-7-51b |
धनूंषि समिधस्तत्र पवित्राणि सिताः शराः। हविरात्मवतश्चात्मा तस्मिन्भारत कर्मणि।। | 10-7-52a 10-7-52b |
ततः सौम्येन मन्त्रेण द्रोणपुत्रः प्रतापवान्। उपहारं महामन्युरथात्मानमुपाहरत्।। | 10-7-53a 10-7-53b |
तं रुद्रं रौद्रकर्माणं रौद्रैः कर्मभिरच्युतम्। अभिष्टुत्य महात्मानमित्युवाच कृताञ्जलिः।। | 10-7-54a 10-7-54b |
द्रौणिरुवाच। | 10-7-55x |
इममात्मानमद्याहं जातमाङ्गिरसे कुले। स्वग्नौ जुहोमि भगवन्प्रतिगृह्णीष्व मां बलिम्।। | 10-7-55a 10-7-55b |
भवद्भक्त्या महादेव पस्मेण समाधिना। अस्यामापदि विश्वात्मन्नुपाकुर्मी तवाग्रतः।। | 10-7-56a 10-7-56b |
त्वयि सर्वाणि भूतानि सर्वभूतेषु चासि वै। गुणानां हि प्रधानानां कैवल्यं त्वयि तिष्ठति।। | 10-7-57a 10-7-57b |
सर्वभूताश्रय विभो हविर्भूतमवस्थितम्। प्रतिगृहाण मां देव यद्यशक्याः परे मया।। | 10-7-58a 10-7-58b |
इत्युक्त्वा द्रौणिरास्थाय तां देवीं दीप्तपावकाम्। सन्त्यज्यात्मानमारुह्य कृष्णवर्त्मन्युपाविशत्।। | 10-7-59a 10-7-59b |
तमूर्ध्वबाहुं निश्चेष्टं दृष्ट्वा हविरुपस्थितम्। अब्रवीद्भगवान्साक्षान्महादेवो हसन्निव।। | 10-7-60a 10-7-60b |
सत्यशौचार्जवत्यागैस्तपसा नियमेन च। क्षान्त्या भक्त्या च धृत्या च कर्मणा मनसा गिरा।। | 10-7-61a 10-7-61b |
यथावदहमाराद्वः कृष्णेनाक्लिष्टकर्मणा। तस्मादिष्टतमः कृष्णादन्यो मम न विद्यते।। | 10-7-62a 10-7-62b |
कुर्वता तात सम्मानं त्वां च जिज्ञासता मया। पाञ्चालाः सर्वदा गुप्ता मायाश्च बहुशः कृताः।। | 10-7-63a 10-7-63b |
कृतस्तस्यैव सम्मानं पाञ्चालान्रक्षता मया। अभिभूतास्तु कालेन नैषामद्यास्ति जीवितम्।। | 10-7-64a 10-7-64b |
एवमुक्त्वा महात्मानं भगवानात्मनस्तनुम्। आविवेश ददौ चास्मै विमलं खङ्गमुत्तमम्।। | 10-7-65a 10-7-65b |
अथाविष्टो भगवता भूयो जज्वाल तेजसा। वेगवांश्चाभवद्युद्धे देवसृष्टेन तेजसा।। | 10-7-66a 10-7-66b |
तं दृष्ट्वा तानि भूतानि रक्षांसि च समाद्रवन्। अभितः शिबिरं यान्तं द्रोणपुत्रं महारथम्। देवदेवं हरं स्थाउं यान्तं साक्षादिवेश्वरम्।। | 10-7-67a 10-7-67b 10-7-67c |
।। इति श्रीमन्महाभारते सौप्तिकपर्वणि सप्तमोऽध्यायः।। 7 ।। |
10-7-1 रथोपस्थाद्दध्यौ स प्रयतः स्थितः इति क.पाठः।। 10-7-5 सोऽहमात्मोपहारेणेति झ.पाठः।। 10-7-9 उमाभूषणतत्परमिति झ.पाठः।। 10-7-11 हिरण्यदण्डकवचं चारुमौलिविभूषणमिति क.पाठः।। 10-7-17 प्लुवमुखाः मण्डूकवक्ताः।। 10-7-18 दार्वाघाटः पक्षिविशेषः। महागजसवकाश्चेति क.पाठः।। 10-7-38 पिण्डिका जानुनोरधः---पश्चाद्भागः।। 10-7-53 सौम्येन सोमदैवत्येन मन्त्रेण।। 10-7-7 सप्तमोऽध्यायः।।
सौप्तिकपर्व-006 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | सौप्तिकपर्व-008 |