महाभारतम्-04-विराटपर्व-026
← विराटपर्व-025 | महाभारतम् चतुर्थपर्व महाभारतम्-04-विराटपर्व-026 वेदव्यासः |
विराटपर्व-027 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
भीमेन कीचकागमनात्पूर्वमेव नर्तनागारमेत्य शय्यायां शयनम् ।। 1 ।।
पश्चात्समागतेन कीचकेन भीमंप्रति द्रौपदी बुद्ध्या संस्पर्शनपूर्वकं संभाषणम् ।। 2 ।।
भीमेन नियुद्धेन कीचकमारणम् ।। 3 ।।
पश्चाद्द्रौपद्या समाह्वानादुपकीचकानां तत्र समागमनम् ।। 4 ।।
भीम उवाच। | 4-26-1x |
तथा भद्रे करिष्यामि यथा त्वं भीरु भाषसे। | 4-26-1a 4-26-1b |
नागो बिल्वमिवाक्रम्य पोथयिष्यामि तच्छिरः। | 4-26-2a 4-26-2b |
मया यदुक्तं पाञ्चालि धर्मराजसुतं प्रति। | 4-26-3a 4-26-3b |
वैशंपायन उवाच। | 4-26-4x |
एवमुक्तवा महाबाहुस्तत्र पाण्डवनन्दनः। | 4-26-4a 4-26-4b |
अवदातेन मृदुना पटेनाच्छादितस्तथा । | 4-26-5a 4-26-5b |
स भीमः प्रथमं गत्वा तमिस्रायामुपाविशत् । | 4-26-6a 4-26-6b |
कीचकस्तु शिरःस्नातो निशायां समलंकृतः। | 4-26-7a 4-26-7b |
तदेव नर्तनागारं पाञ्चाली यदभाषत। | 4-26-8a 4-26-8b |
प्रविश्य नर्तनागारं ततस्तं पुरुषर्षभम्। | 4-26-9a 4-26-9b |
शयानं शयने तत्र मृत्युं मूढः परामृशत्। | 4-26-10a 4-26-10b |
एकान्ते भीममासाद्य कीचकः कालचोदितः। | 4-26-11a 4-26-11b |
प्रहितं ते मया भद्रे बहुवित्तं शुचिस्मिते। | 4-26-12a 4-26-12b |
अकस्मान्मां प्रशंसन्ति सदा गृहगताः स्त्रियः। | 4-26-13a 4-26-13b |
अहं रूपेण संपन्नः स्नातो गुरुविभूषितः। | 4-26-14a 4-26-14b 4-26-14c |
भीम उवाच। | 4-26-15x |
दिष्ट्या त्वं दर्शनीयोसि दिष्ट्याऽऽत्मानं प्रशंससि।। 15 ।। | 4-26-15a |
त्वयाऽपीदृग्गुणा नारी रूपशीलसमन्विता। | 4-26-16a 4-26-16b 4-26-16c |
उपरंस्यसि कामाच्च शीघ्रं त्वं स्प्रष्टुमर्हसि । | 4-26-17a 4-26-17b |
स्पर्शं वेत्सि विदग्धस्त्वं कामधर्मविचक्षणः। | 4-26-18a 4-26-18b |
वैशंपायन उवाच। | 4-26-19x |
इत्युक्त्वा तं महाबाहुर्भीमो भीमपराक्रमः। | 4-26-19a 4-26-19b |
अद्य त्वां भगिनी पापं कृष्यमाणं मया भुवि । | 4-26-20a 4-26-20b |
निराबाधा त्वयि हते सैरन्ध्री विचरिष्यति। | 4-26-21a 4-26-21b |
ततो जग्राह केशेषु माल्यवत्सु सुगन्धिषु ।। 22 ।। | 4-26-22a |
गृहीत्वा कीचकं भीमो विरराज महाबलः। | 4-26-23a 4-26-23b |
स केशेषु परामृष्टो बलेन बलिनां वरः। | 4-26-24a 4-26-24b |
बाहुयुद्धं तयोरासीत्क्रुद्धयोर्नरसिंहयोः। | 4-26-25a 4-26-25b |
कीचकानां तु मुख्यस्य नराणामुत्तमस्य च। | 4-26-26a 4-26-26b |
शार्दूलाविव गर्जन्तौ तार्क्ष्यनागाविवोद्यतौ। | 4-26-27a 4-26-27b |
गजाविव मदोन्मत्तौ नदन्तौ पतितौ क्षितौ। | 4-26-28a 4-26-28b |
ईषदागलितं चापि क्रोधाच्चावाङ्मुखं स्थितम् । | 4-26-29a 4-26-29b |
पातितो भीमसेनस्तु कीचकेन बलीयसा। | 4-26-30a 4-26-30b |
स्पर्धया च बलोन्मत्तौ तावुभौ भीमकीचकौ। | 4-26-31a 4-26-31b |
ततस्तद्भवनश्रेष्ठं प्राकम्पत तदा भृशम्। | 4-26-32a 4-26-32b |
तलाभ्यां भीमसेनेन वक्षस्यभिहतो बली। | 4-26-33a 4-26-33b |
मुहूर्तमशकत्सोढुं वेगं तस्य महात्मनः। | 4-26-34a 4-26-34b |
तं हीयमानं विज्ञाय भीमसेनो महाबलः । | 4-26-35a 4-26-35b |
क्रोधाविष्टो विनिश्चस्य पुनश्चैनं वृकोदरः । | 4-26-36a 4-26-36b |
गृहीत्वा कीचकं भीमो विरराज महाबलः । | 4-26-37a 4-26-37b |
पुनश्चातिबलस्तत्र कीचको बलदर्पितः । | 4-26-38a 4-26-38b |
मुष्टिना भीमसेनेन शिरस्यभिहतो भृशम्। | 4-26-39a 4-26-39b |
आस्ये पाणी च पादौ च शिरोग्रीवां सकुण्डलाम् । | 4-26-40a 4-26-40b |
स तं मथितसर्वाङ्गं मांसपिण्डमथाकरोत् ।। 41 ।। | 4-26-41a |
तत्राग्निं स्वयमुज्ज्वाल्य पाणिसंघर्षजं बली। | 4-26-42a 4-26-42b |
उवाच च महातेजा द्रौपदीं योषितां वराम्। | 4-26-43a 4-26-43b 4-26-43c |
प्रार्थयन्ते सुकेशान्ते ये त्वां शीलसमन्विताम् । | 4-26-44a 4-26-44b 4-26-44c |
एवमुक्त्वा महाबाहुर्गन्धर्वेण हतं तदा। | 4-26-45a 4-26-45b |
तथा स कीचकं हत्वा गत्वा रोषस्य निष्कृतिम्। | 4-26-46a 4-26-46b |
स्नात्वाऽनुलेपनं कृत्वा व्यापूर्य च मनोरथम्। | 4-26-47a 4-26-47b |
ततः कृष्णा यदा मेने गतं भीमं महानसम् । | 4-26-48a 4-26-48b 4-26-48c |
कीचको निहतः शेते गन्धर्वैः पतिभिर्मम। | 4-26-49a 4-26-49b |
तच्छ्रुत्वा भाषितं तस्या नर्तनागाररक्षिणः । | 4-26-50a 4-26-50b |
तस्यास्तं निहतं श्रुत्वा कीचकस्य सहोदराः। | 4-26-51a 4-26-51b 4-26-51c |
पार्ष्णिपामिशिरोहीनं दृष्ट्वा ते विस्मिताऽभवन् ।। 52 ।। | 4-26-52a |
क्वास्य ग्रीवा क्व चरमौ क्व पामी क्व शिरः क्व दृक् । | 4-26-53a 4-26-53b |
अमानुषं कृतं कर्म तं दृष्ट्वा विनिपातितम् । | 4-26-54a 4-26-54b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
विराटपर्व-025 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | विराटपर्व-027 |