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पृष्ठम्:भोजप्रबन्धः (विद्योतिनीव्याख्योपेतः).djvu/१५५

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भोजप्रबन्धः


 तक उन जामुनों को 'गुड़ प्-गुड़ प्' करके गिरती देखता राजा थकावट बीत : जाने पर उठकर घोड़े पर चढ़ चला गया।

 ततः सभायां राजा पूर्वानुमतकपिचलितफलपतनरवमनुकुर्वन्समस्यामाह-'गुलुगुगालुगुग्गुलु' ।

 तत आह कालिदासः-

'जम्बूफलानि पक्कानि पतन्ति विमले जले।
कपिकम्पितशाखाभ्यो गुलुगुग्गुलुगुग्गुलु' ।। २६५।।

 तो सभा में . पहिले अनुभूत बंदरों द्वारा झाड़ी जाने से हुए जामुनों के गिरने के ( 'गुड़ प्-गुडप्' ) शब्द का अनुकरण करते हुए 'राजा ने एक समस्या कही-'गुलुगुग्गुलुगुग्गलु' । तो . कालिदास ने कहा-

 वानरदल के द्वारा कंपित शाखाओं से निर्मल जल में--पके हुए गिरते जंबूफल 'गुलु गुग्गुलु-गुग्गुलुगुग्गुलु ।'

 राजा तुष्ट आह-'सुकवे, अदृष्टमपि परहृदयं कथं जानासि । साक्षा- च्छारदासि' इति मुहुर्मुहुः पादयोः पतति स्म ।

 संतुष्ट हो राजा ने कहा--'हे सुकवि, तुम . अनदेखे भी दूसरे के हृदय को कैसे जान लेते हो? तुम साक्षात् शारदा हो,' और पैरों पर गिर पड़ा ।  एकदा धारानगरे प्रच्छन्नवेषो विचरन्कस्यचिद्वृद्धब्राह्मणस्य गृहं राजा मध्याह्नसमये गच्छंस्तत्र तिष्ठति स्म । तदा वृद्धविप्रो वैश्वदेवं कृत्वा काकवलिं गृह्णन्गृहान्निर्गत्यभूमौजलशुद्धायां निक्षिप्य काकमाह्वयति स्म। तत्र हस्तविस्फालनेन हाहेतिशब्देन च काकाः समायाताः । तत्र कश्चित्का- कस्तार रारटीति स्म । तच्छुत्वा तत्पत्नी तरुणी भीतेव हस्तं निजोरसि निधाय 'अये मातः' इति चक्रन्द ।

 एक बार धारा नगर में गुप्त वेष में विचरण करता हुआ राजा किसी ब्राह्मण के घर में दोपहरी के समय जाते हए ठहरा हुआ था। उस समय बूढ़ा ब्राह्मण 'वैश्वदेव' ( देवताओं के निमित्त प्रातः सायम्, विशेषतः मध्याह्न समर्पित खाद्य सामग्री-बलिवैश्वदेव कर्म) करके कौओं के निमित्त बलि लेकर घर से निकला और ( बलि को) जल से स्वच्छ की गई भूमि पर रखकर कौए को बुलाने लगा। तालियां बजाने और