तक उन जामुनों को 'गुड़ प्-गुड़ प्' करके गिरती देखता राजा थकावट बीत :
जाने पर उठकर घोड़े पर चढ़ चला गया।
ततः सभायां राजा पूर्वानुमतकपिचलितफलपतनरवमनुकुर्वन्समस्यामाह-'गुलुगुगालुगुग्गुलु' ।
तत आह कालिदासः-
'जम्बूफलानि पक्कानि पतन्ति विमले जले। |
तो सभा में . पहिले अनुभूत बंदरों द्वारा झाड़ी जाने से हुए जामुनों के गिरने के ( 'गुड़ प्-गुडप्' ) शब्द का अनुकरण करते हुए 'राजा ने एक समस्या कही-'गुलुगुग्गुलुगुग्गलु' । तो . कालिदास ने कहा-
वानरदल के द्वारा कंपित शाखाओं से निर्मल जल में--पके हुए गिरते जंबूफल 'गुलु गुग्गुलु-गुग्गुलुगुग्गुलु ।'
राजा तुष्ट आह-'सुकवे, अदृष्टमपि परहृदयं कथं जानासि । साक्षा- च्छारदासि' इति मुहुर्मुहुः पादयोः पतति स्म ।
संतुष्ट हो राजा ने कहा--'हे सुकवि, तुम . अनदेखे भी दूसरे के हृदय को कैसे जान लेते हो? तुम साक्षात् शारदा हो,' और पैरों पर गिर पड़ा । एकदा धारानगरे प्रच्छन्नवेषो विचरन्कस्यचिद्वृद्धब्राह्मणस्य गृहं राजा मध्याह्नसमये गच्छंस्तत्र तिष्ठति स्म । तदा वृद्धविप्रो वैश्वदेवं कृत्वा काकवलिं गृह्णन्गृहान्निर्गत्यभूमौजलशुद्धायां निक्षिप्य काकमाह्वयति स्म। तत्र हस्तविस्फालनेन हाहेतिशब्देन च काकाः समायाताः । तत्र कश्चित्का- कस्तार रारटीति स्म । तच्छुत्वा तत्पत्नी तरुणी भीतेव हस्तं निजोरसि निधाय 'अये मातः' इति चक्रन्द ।
एक बार धारा नगर में गुप्त वेष में विचरण करता हुआ राजा किसी ब्राह्मण के घर में दोपहरी के समय जाते हए ठहरा हुआ था। उस समय बूढ़ा ब्राह्मण 'वैश्वदेव' ( देवताओं के निमित्त प्रातः सायम्, विशेषतः मध्याह्न समर्पित खाद्य सामग्री-बलिवैश्वदेव कर्म) करके कौओं के निमित्त बलि लेकर घर से निकला और ( बलि को) जल से स्वच्छ की गई भूमि पर रखकर कौए को बुलाने लगा। तालियां बजाने और