पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२८७

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति
36
ब्रह्मसिद्धिकारिकानुक्रमणिका

सवप्रत्ययवद्य व, पू

सर्वात्मना त्वनुगमः, उ

सर्वात्मनाथ ज्ञानेन, पू

सर्वाविद्याप्रविलये, उ

सर्वा आग्रहमाधेन, पू

सापेक्षतायाः को हेतुः, पू

सामानाधिकरण्येन, पू

सामान्यं न हि वस्त्वात्मा, पू

सामान्यदृष्टया रजतात्, पू

सामन्यरूपभूयस्त्वं, पू

सामान्येन पदार्थत्वे, पू

सोपायमन्यत् तद्ददस्, पू .

स्मर्यमाणे प्रचलितम्, उ

स्सृतं प्रत्यक्षतो भिन्नम्, पू

स्मृतद्वयाविवेकोत्थम् , उ

स्मृतिरित्यपि विज्ञानम्, उ

स्यादक्षमपि मापक्षम्, उ

स्याञ्चिङ्गमपि सापेक्षम्, उ

खरूपनिष्ठाच्छब्दातु, पू

सरूपानर्पणादेवम् , पू

वर्गकामो यजेते ति, पू

खसंबन्धितया मानम्, पू

खात्मस्थितिः सुप्रशान्ता, उ

हन्त तर्हि खरूपे तत् , पू ...

हन्तास्य गोचरो नास्मात् उ •

इन्तैकस्यैव तकि न, पू

हेमेव पारित्र्यादि, उ

पुट. काण्ड. कारिका

157 4 97 82 141 8 1B8 12B 107 142 3 142 79 15 144 8 150 68 2 21 142 3 145 98 68 156 4 115 101 88 B9 1B8 124 189 8 12b 140 8 13B 81 18 86 3B 153 - 8 - 181 146 108 1463 75 86 B2 16 108 9 112 94 88 25 61 14