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पृष्ठम्:ब्रह्मसिद्धिः (मण्डनमिश्रः).djvu/२८७

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ब्रह्मसिद्धिकारिकानुक्रमणिका

सवप्रत्ययवद्य व, पू

सर्वात्मना त्वनुगमः, उ

सर्वात्मनाथ ज्ञानेन, पू

सर्वाविद्याप्रविलये, उ

सर्वा आग्रहमाधेन, पू

सापेक्षतायाः को हेतुः, पू

सामानाधिकरण्येन, पू

सामान्यं न हि वस्त्वात्मा, पू

सामान्यदृष्टया रजतात्, पू

सामन्यरूपभूयस्त्वं, पू

सामान्येन पदार्थत्वे, पू

सोपायमन्यत् तद्ददस्, पू .

स्मर्यमाणे प्रचलितम्, उ

स्सृतं प्रत्यक्षतो भिन्नम्, पू

स्मृतद्वयाविवेकोत्थम् , उ

स्मृतिरित्यपि विज्ञानम्, उ

स्यादक्षमपि मापक्षम्, उ

स्याञ्चिङ्गमपि सापेक्षम्, उ

खरूपनिष्ठाच्छब्दातु, पू

सरूपानर्पणादेवम् , पू

वर्गकामो यजेते ति, पू

खसंबन्धितया मानम्, पू

खात्मस्थितिः सुप्रशान्ता, उ

हन्त तर्हि खरूपे तत् , पू ...

हन्तास्य गोचरो नास्मात् उ •

इन्तैकस्यैव तकि न, पू

हेमेव पारित्र्यादि, उ

पुट. काण्ड. कारिका

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