येन सवैर्मनोभि: । नानात्म्यं चाप्रमाणं गदसि
यदि तनूपाधिभिस्त्वं व्यवस्थां सिद्धेऽसिद्धेऽपि
भेदे यत इह विफलाः कल्पनीया विशेषाः ।।३९ ।।
जीवात्मा यादि ब्यापक है तो शरीर, प्रयत्न, प्रारब्ध
श्रादि सबको समान होने से भोग की व्यवस्था नहीं होगी
क्योंकि मन का भी सब श्रात्माश्रों के साथ संबंध होता
है । यदि देह रूप उपाधि से व्यवस्था हो सकेगी ऐसा
कहेगा ता श्रनक श्रात्मा हा श्रप्रमाण हाग । इस कारण
से श्रात्मा का नानात्व सिद्ध हो अथवा प्रसिद्ध हो
विशेष की कल्पना तो निष्फल ही है ॥३९॥
(जीवानां वैभवं चेत्) यदि जीवात्माओं को व्यापकता है
तो सर्व शरीरों में सब जीवों की श्रहंता और ममता अनिवार्य
होने से भोग व्यवस्था नहीं होगी । अर्थात् यह भोग उसका
और यह भोग इसका है और यह भोग मेरा है, इस प्रकार
भोग की व्यवस्था नहीं हो सकेगी किंतु सब भोग सभी जीवों
को प्राप्त होंगे । (तनु कृति करणाद्यष्ट साधारणत्वात् )
यह शरीर, प्रयत्न, इन्द्रिय और श्रदृष्टरूप प्रारब्ध किसी एक
आत्मा के हैं, इसमें कोई कारण न होने से शरीर, इन्द्रिय और
प्रारब्ध ये सर्व जीवों में समान है अर्थात् जीवों को सर्व शरीर
प्रयत्न श्रादिकों में ममता समान है । इसलिये जिस मन के
साथ जिस आत्मा का संयोग है उस मन से उस श्रात्मा
को ही भोग होता है इस प्रकार (भोग व्यवस्था न वै स्यात्)
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स्वाराज्य सिद्धिः