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सर्गः
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श्लोकः
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यस्येक्षणेनैव |
VIII |
118
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यस्सार्वलौकिक |
VII |
38
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यगैरनेकैः |
I |
33
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यागोऽपि नाकफ |
I |
14
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याचावहे तव सुतां |
VI |
31
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या चौषधीरभि |
VIII |
131
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या द्वित्वसङ्खया |
XII |
41
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यान्वेति सन्तत |
VI |
37
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यावत्सु सत्सु |
I |
16
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या वेदभाषित |
VIII |
132
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या सर्वमूत |
VIII |
130
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युनक्तिः कालः |
V |
18
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युवजनेऽपि |
X |
116
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युवतयो युवभिः |
X |
87
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युवसु लव्धपदा |
III |
37
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योगिन् न्यसेविषि |
IX |
34
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योगेन गच्छन्स |
IV |
94
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योग्यत्वधर्मविरहो |
IX |
7
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योवताप्यवनता |
VIII |
22
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योऽपालयत् |
XII |
73
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योऽयं प्रयत्नः क्रियते |
VII |
37
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यो वा प्रतिश्रुत्य |
VII |
141
|
र
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रथ्यापणाङ्गण |
XI |
46
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रम्याणि गन्धकुसुम |
IV |
14
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राजन्यकं |
IX |
70
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राजा जनाना |
XII |
74
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राजापि दुर्गनिलया |
XI |
37
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सर्गः
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श्लोकः
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राजेव धर्मी |
X |
39
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राजेव वारण |
X |
13
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राज्ञां विजेतुमनसां |
XI |
51
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राज्ञी नृपं नृपति |
XI |
50
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रात्रौ वराङ्गि |
X |
112
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रामसेतुगमनाय |
VIII |
20
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रामेत्युदीर्य |
IX |
28
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रामे प्ल्वङ्ग |
IX |
11
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रुरोद कश्चिन्मुमुदे |
VIII |
38
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रुषितं हनुमन्तम् |
VIII |
110
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रुष्टे धवे |
VI |
70
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रूपण मारः क्षम |
I |
36
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रौप्यं पात्रं दीप्यमानं |
VI |
6
|
ल
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लझे शुमे |
IV |
20
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लिखितमेतदनल्प |
XI |
143
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लोको विषण्णवदनो |
XI |
9
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लोप्यो हि लोप |
VII |
2
|
व
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वंशद्वयं सुतनु |
X |
110
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वंशो महान्मे |
VIII |
85
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वक्ष्यामि गोप्यमपरं |
X |
122
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वत्से त्वम्द्यः |
VI |
69
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वनगजा बहुबृंहित |
III |
20
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वपुः कृशं ते |
VI |
20
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वपुर्धरन्ते |
IX |
41
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वपुषि वत्स गते |
III |
86
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