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सर्गः
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श्लोकः
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वरकुरङ्गसमा |
III |
8
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वर्षाणि षोडशशता |
IV |
83
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वर्षाण्यतीयुर्भगवन् |
XII |
18
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वर्षासु वर्षति हरौ |
IV |
57
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वर्षासु वारितगता |
XI |
12
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वसन्निहैव |
II |
13
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वसुमतीगतमेक |
III |
28
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वसुमती नमति स्म |
III |
31
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वस्तव्यमत्र कति |
VIII |
52
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वस्तुं यदीयं |
VIII |
26
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वात्स्यायन्प्रोदित |
XII |
71
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वात्स्यायनीयमधि |
XII |
72
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वादं करिष्यामि |
VI |
86
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वादित्रातगजेन्द्र |
XII |
35
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वादे कृतेऽस्मिन् |
VI |
95
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वादे हि वादिप्रतिवादि |
VI |
87
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वापाय नीतमपि |
XI |
16
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वामोरु पश्य मृदु |
X |
107
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वातामुपश्रुत्य स |
XII |
33
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विकासि सायन्तन |
X |
71
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विचिक्रियुः केचन |
XI |
71
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विज्ञानवादी क्षणिक |
XII |
50
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विज्ञाय देशमतिम् |
VIII |
104
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वित्तानि चित्तमनिशं |
VI |
38
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विद्याधरा बहु |
X |
25
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विधाधिराजमख |
I |
29
|
विद्याश्चतुष्षष्टि |
XII |
61
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विद्वन्यद्वत्प्रत्ययः |
VII |
54
|
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सर्गः
|
श्लोकः
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विद्वत्सु विद्वत्तरता |
VI |
23
|
विधातुमिष्टं यदिह |
I |
6
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विधिकृतागमनौ |
XI |
146
|
विधिवचः |
III |
48
|
विनाभिसन्धिं |
VIII |
66
|
विनोपदेशं |
XII |
25
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विपक्षचोदी |
V |
27
|
विप्रेषु दूरचरितेषु |
IX |
81
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विमलनीरसरो |
III |
10
|
विरक्तिमूलं मनसो |
VIII |
49
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विरहमाप रथाङ्ग |
X |
102
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विविधपुष्पफला |
III |
114
|
वेिशद्वारि मृदू |
XI |
81
|
विश्वरय मां |
IX |
31
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विश्वस्य शब्दनिचय |
VIII |
129
|
विष्ण्वाद्यसुर |
VIII |
14
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वीक्षे न तौ द्वावपि |
VI |
21
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वृक्षा लताः |
IV |
23
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वृत्तान्त्रिताय |
VI |
34
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वेदं तदा दुर्वसनो |
VI |
10
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वेदान्तेो न प्रमाणं |
VI |
94
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वेदार्णवाः प्रतियुगं |
IV |
73
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वेदाष्षडङ्गा |
IV |
76
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वेदे च शास्त्रे च |
I |
22
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वेदे पदक्रम |
I |
20
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वेदेष्वधीतेषु |
I |
4
|
वेदोऽप्रमाणं |
V |
23
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व्यसनकालवहिः |
III |
42
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