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सर्गः
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श्लोकः
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व्याधिर्द्विधा नः |
X |
8
|
व्याधिर्हि जन्मान्तर |
X |
7
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व्यापद्गतोऽथ् |
VII |
112
|
व्यासः पराशर |
IV |
63
|
व्यासाचलेन रचिते |
III |
117
|
व्रजसि कुत्र वटो |
III |
6
|
श
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शतयोजनदूरगो |
VIII |
15
|
शनै रुदन्ती तनयं |
II |
6
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शप्त्वा द्विजातीन् |
IV |
103
|
शय्या तदीया |
VII |
27
|
शरीरमूलं पुरुषा |
VIII |
64
|
शान्तः पुमानिति |
IX |
14
|
शान्ते प्रवाहे |
X |
68
|
शाखेषु सर्वेष्वपि |
XII |
55
|
शिरः कपालं केिल |
IX |
35
|
शिवचरणसरोज |
VII |
132
|
शिवमुदीक्ष्य तपः |
III |
34
|
शिव शिवेति वदन् |
VII |
128
|
शिवस्य नाट्यश्रम |
VIII |
7
|
शिवाज्ञयाभूदिति |
VIII |
6
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शिशुमवोचत |
III |
85
|
शिशुमुदीक्ष्य युवापेि |
XI |
125
|
शिशुरथो नयने |
III |
94
|
शिशुरपूर्वजनोदय |
III |
102
|
शिष्या विदन्ति यदि |
IX |
43
|
शिष्येषु शिष्टष्वपि |
IX |
46
|
शिष्यैः प्रशिष्यै |
XII |
14
|
|
|
सर्गः
|
श्लोकः
|
शीघ्रं पलायत |
X |
14
|
शुक्ले च कृष्णे च |
XII |
85
|
शुचिः स्वयं |
X |
62
|
शुद्धाः कुलीना |
XII |
79
|
शुश्राव तं |
VIII |
37
|
शुश्राव तस्य निकटे |
IV |
64
|
शुश्राव तां चापि |
VI |
17
|
शुश्रूषमाणेन |
VII |
74
|
शूलीं त्रिपुण्ड्री |
IX |
45
|
शेतेऽसकृतुहिन |
XI |
64
|
शोकस्पदं समकलं |
XI |
55
|
शेोणस्य तीरमुपयात |
VI |
49
|
२यामच्छदान्मृदु |
XI |
40
|
श्रद्धालवस्तपसि |
XI |
72
|
श्रीकालहस्तिप |
VII |
102
|
श्रीगन्धमाद्नगिरिः |
IX |
1
|
श्रीगन्धमादनगिरौ किल |
IX |
19
|
श्रीगन्धमादनगिरौ भगवन् |
VIII |
99
|
श्रीगोकर्णं यातु |
XII |
1
|
श्रीगोकुलं वनमुवि |
XI |
7
|
श्रीदेशिकाय |
IX |
86
|
श्रीनैष्ठिकाश्रम |
I |
12
|
श्रामङ्गलायाः करुणा |
VIII |
121
|
श्रीमच्छङ्करदेशिके |
XII |
87
|
श्रीमज्जटायु |
IX |
73
|
श्रीमदुरोः |
IX |
94
|
श्रीविश्वरूपगुरु |
VI |
30
|
श्रीविश्वरूपेण |
VI |
89
|
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