पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
४० | सगरपुत्राणां भस्मीभावः | .... .... ३२५ |
४१ | सगरयज्ञसमापनम् | .... .... ३२० |
४२ | भगीरथतपः | .... .... ३२४ |
४३ | गङ्गावतरणम् | .... .... ३२९ |
४४ | सगरपुत्रोद्धारः | .... .... ३३७ |
श्लोकसङ्ख्या | ४० | |
अन्विष्यन्तस्ततस्सर्वे रसातलमथाद्रवन् ॥ | .... | ३१५ |
५८ ददृशुस्तत्र तेऽश्वं तं कपिलस्य समीपतः । | .... | ३१७ |
कपिलं हिंसयन्तस्ते भस्मराशीकृतास्तदा ॥ | .... | ३१९ |
४१ | ||
५९ तान् मार्गयन्तं गरुडस्त्वंशुमन्तमथाब्रवीत् । | .... | ३२१ |
गङ्गासलिलसेकेन प्राप्नुयुत्सद्गतिं त्विमे ॥ | .... | ३२३ |
४२ | ||
६० उपायं नाध्यगच्छंस्ते गङ्गां प्राप्तुं सुरापगाम् । | .... | ३२५ |
तद्वंश्योऽथ तपस्तेपे गङ्गां प्राप्तुं भगीरथः ॥ | .... | ३२७ |
४३ | ||
६१ ततो व्योम्नोऽपतद्गङ्गा वेगेन शिवमूर्धनि । | .... | ३२९ |
निर्गता शिवजूटातः साऽन्वगच्छद्भगीरथम् ॥ | .... | ३३१ |
६२ यज्ञवाटं प्लावयन्तीं तां जह्नुरपिबत्तदा । | .... | ३३३ |
ततस्तुतो मुनिर्गङ्गां श्रोत्राभ्यामत्यजत्पुनः ॥ | .... | ३३५ |
४४ | ||
६३ निनाय गङ्गां पातालं पुनस्स तु भगीरथः । | .... | ३३७ |
तया संप्लावितास्सर्वे सागरा सद्गतिं ययुः ॥ | .... | ३३९ |