पुटमेतत् सुपुष्टितम्
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सर्गसङ्ख्या | विषयः | पुटसङ्ख्या |
४५ | क्षीरार्णवमथनम् | .... .... ३४१ |
४६ | दितिगर्भभेदनम् | .... .... ३४८ |
४७ | विशालागमनम् | .... .... ३५३ |
४८ | अहल्याचरितम् | .... .... ३५७ |
४९ | अहल्याशापनिवृत्तिः | .... .... ३६४ |
श्लोकसङ्ख्या | ४५ | |
६४ गङ्गां तीर्त्वा ततस्ताभ्यां विशालामाप कौशिकः । | .... | ३४१ |
रामेण पृष्टः प्रोवाच विशालाचरितं मुनिः ॥ | .... | ३४३ |
६५ पूर्वं ममन्थुः क्षीरोदं अमृताय सुरासुराः । | .... | ३४५ |
तदा वृत्ते रणे घोरे देवा दैत्यानसूदयन् ॥ | .... | ३४७ |
४६ | ||
६६ दितिस्तेपे तपस्तीव्रं शक्रहन्तृसुतेप्सया । | .... | ३४९ |
प्राप्य शक्रोऽन्तरं तस्याः गर्भ चिच्छेद सप्तधा ॥ | .... | ३५१ |
४७ | ||
६७ शक्रस्य वचनात्ते तु बभूवुस्सप्त मारुताः । | .... | ३५३ |
दित्याश्रमप्रदेशेऽस्मिन् विशाला निर्मिता पुरी ॥ | .... | ३५५ |
६८ तदा तत्र वसन् राजा सुमतिस्तानपूजयत् । | .... | ३५७ |
४८ | ||
स्थित्वा तत्र निशामेकां जग्मुस्ते मिथिलां ततः ॥ | .... | ३५९ |
६९ मिथिलोपवने ते तु गौतमाश्रममाप्नुवन् । | .... | ३६१ |
अहल्याचरितं तत्र प्रोवाच मुनिपुङ्गवः ॥ | .... | ३६३ |
४९ | ||
७० अहल्याशक्रयोश्शापप्राप्तिं चोवाच कौशिकः। | .... | ३६५ |
रामो मुनिवचः श्रुत्वा प्रविवेश तमाश्रमम् ॥ | .... | ३६७ |
७१ रामपादरजस्स्पर्शात् अहल्या स्वं वपुर्दधौ । | .... | ३६९ |