महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-103
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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नारदेन मातलिं भोगवतीं नीत्वा वरान्वेषणचोदनम् ।। 1 ।।
तत्र सुमुखं नाम कंचन भुजगराजमभिरोचमानेन मातलिना नारदंप्रति तस्य जन्मकर्मादिप्रश्नः ।। 2 ।।
नारदेन तस्य आर्यकनाम्नो भोगिनः पौत्रत्वे कीर्तिते मातलिना नारदंप्रति तद्धटनाभ्यर्थना ।। 3 ।।
नारद उवाच। | 5-103-1x |
इयं भोगवती नाम पुरी वासुकिपालिता। | 5-103-1a 5-103-1b |
एष शेषः स्थितो नागो येनेयं धार्यते सदा। | 5-103-2a 5-103-2b |
श्वेताचलनिभाकारो दिव्याभरणभूषितः । | 5-103-3a 5-103-3b |
इह नानाविधाकारा नानाविधविभूषणाः। | 5-103-4a 5-103-4b |
मणिस्वस्तिकचक्राङ्काः कमण्डलुकलक्षणाः। | 5-103-5a 5-103-5b |
सहस्रशिरसः केचित्केचित्पञ्चशताननाः । | 5-103-6a 5-103-6b |
द्विपञ्चशिरसः केचित्केचित्सप्तसुखास्तथा। | 5-103-7a 5-103-7b |
बहूनीह सहस्राणि प्रयुतान्यर्बुदानि च। | 5-103-8a 5-103-8b |
वासुकिस्तक्षकश्चैव कर्कोटकधनञ्जयौ। | 5-103-9a 5-103-9b |
बाह्यकुण्डो मणिर्नागस्तथैवापूरणः खगः। | 5-103-10a 5-103-10b |
आर्यको नन्दकश्चैव तथा कलशपोतकौ । | 5-103-11a 5-103-11b |
सुमनोमुखो दधिमुखः शङ्खो नन्दोपनन्दकौ । | 5-103-12a 5-103-12b |
तित्तिरिर्हस्तिभद्रश्च कुमुदो माल्यपिण्डकः। | 5-103-13a 5-103-13b |
करवीरः पीठरकः संवृत्तो वृत्त एव च। | 5-103-14a 5-103-14b |
दिलीपः शङ्खशीर्षश्च ज्योतिष्कोऽथापराजितः । | 5-103-15a 5-103-15b |
विरजा धारणश्चैव सुबाहुर्मुखरो जयः । | 5-103-16a 5-103-16b |
एते चान्ये च बहवः कश्यपस्यात्मजाः स्मृताः । | 5-103-17a 5-103-17b |
कण्व उवाच। | 5-103-18x |
मातलिस्त्वेकमव्यग्रः सततं संनिरीक्ष्य वै। | 5-103-18a 5-103-18b |
मातलिरुवाच। | 5-103-19x |
स्थितो य एष पुरतः कौरव्यस्यार्यकस्य तु। | 5-103-19a 5-103-19b |
कः पिता जननी चास्य कतमस्यैष भोगिनः। | 5-103-20a 5-103-20b |
प्रणिधानेन धैर्येण रूपेण वयसा च मे। | 5-103-21a 5-103-21b |
कण्व उवाच। | 5-103-22x |
मातलिं प्रीतमनसं दृष्ट्वा सुमुखदर्शनात्। | 5-103-22a 5-103-22b |
नारद उवाच। | 5-103-23x |
ऐरावतकुले जातः सुमुखो नाम नागराट्। | 5-103-23a 5-103-23b |
एतस्य हि पिता नागश्चिकुरो नाम मातले। | 5-103-24a 5-103-24b |
ततोऽब्रवीत्प्रीतमना मातलिर्नारदं वचः । | 5-103-25a 5-103-25b |
क्रियतामत्र यत्नो वै प्रीतिमानस्म्यनेन वै। | 5-103-26a 5-103-26b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
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