महाभारतम्-04-विराटपर्व-024
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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द्रौपदीभीमसंवादः ।। 1 ।।
द्रौपद्या भीमंप्रति हटात्कीचकसंहारचोदना ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-24-1x |
आश्वासयंस्तां पाञ्चालीं भीमसेन उवाच ह। | 4-24-1a 4-24-1b |
त्वं वै सभागतां दृष्ट्वा मात्स्यानां कदनं महत् । | 4-24-2a 4-24-2b |
तत्र मां धर्मराजस्तु कटाक्षेण न्यवारयत्। | 4-24-3a 4-24-3b |
शृणुष्वान्यत्प्रतिज्ञातं यद्वदामीह भामिनि । | 4-24-4a 4-24-4b 4-24-4c |
तदद्य मां तु तपति यत्कृतं न मया पुरा। | 4-24-5a 4-24-5b |
तत्र मे कारणं भाति कौन्तेयो यत्प्रतीक्षते। | 4-24-6a 4-24-6b |
यच्च राज्यात्प्रच्यवनं कुरूणामवधश्च यः। | 4-24-7a 4-24-7b |
दुःशासनस्य पापस्य यन्मया न हृतं शिरः । | 4-24-8a 4-24-8b |
अपि चान्यद्वरारोहे स्मरिष्यसि वचो मम। | 4-24-9a 4-24-9b 4-24-9c |
न चाहमनुगच्छेयं धर्मराजं युधिष्ठिरम्। | 4-24-10a 4-24-10b 4-24-10c |
परुषं वचनं श्रुत्वा मम धर्मात्मजस्तदा। | 4-24-11a 4-24-11b 4-24-11c |
मा रोदी राज्ञि लोकानां सर्वागमगुणान्विता। | 4-24-12a 4-24-12b |
अनुनीतेषु चास्मासु अनुनीता त्वमप्यसि। | 4-24-13a 4-24-13b |
इमं तु समुपालम्भं त्वत्तो राजा युधिष्ठिरः । | 4-24-14a 4-24-14b |
धनञ्जयो वा सुश्रोणि यमौ चापि सुमध्यमे। | 4-24-15a 4-24-15b |
धर्मं शृणुष्व पाञ्चालि यत्ते वक्ष्यामि मानिनि ।। 16 ।। | 4-24-16a |
दुहिता जनकस्यासीद्वैदेही यदि ते श्रुता। | 4-24-17a 4-24-17b |
वसन्ती च महारण्ये रामस्य महिषी प्रिया। | 4-24-18a 4-24-18b 4-24-18c |
लोपामुद्रा तथा भीरु भर्तारमृषिसत्तमम्। | 4-24-19a 4-24-19b |
सुकन्या नाम शर्यातेर्भार्गवच्यवनं वने। | 4-24-20a 4-24-20b |
नालायनी चेन्द्रसेना रूपेणाप्रतिमा भुवि। | 4-24-21a 4-24-21b |
नलं राजानमेवाथ दमयन्ती वनान्तरे। | 4-24-22a 4-24-22b |
यथैताः कीर्तिता नार्यो रूपवत्यः पतिव्रताः। | 4-24-23a 4-24-23b |
मा दीर्घं क्षम कालं त्वं त्रिंशद्रात्रमनिन्दिते। | 4-24-24a 4-24-24b |
सत्येन ते शपे चाहं भविता नान्यथेति च ।। 25 ।। | 4-24-25a |
सर्वासां परमस्त्रीणां प्रामाण्यं कर्तुमर्हसि। | 4-24-26a 4-24-26b |
भर्तृभक्त्या च वृत्तेन भोगानाप्स्यसि दुर्लभान् । | 4-24-27a 4-24-27b |
गुरुभक्तिकृतं ज्ञात्वा राज्ञां मूर्ध्नि स्थिता भवेः ।। 28 ।। | 4-24-28a |
द्रौपद्युवाच। | 4-24-29x |
आर्तप्रलापा कौन्तेय न राजानमुपालभे। | 4-24-29a 4-24-29b |
इदं तु दुःखं कौन्तेय ममासद्यं निबोध तत् ।। 30 ।। | 4-24-30a |
योऽयं राज्ञो विराटस्य सूतपुत्रस्तु कीचकः। | 4-24-31a 4-24-31b |
त्यक्तधर्मो नृशंसश्च सर्वार्थेषु च वल्लभः । | 4-24-32a 4-24-32b 4-24-32c |
किमुक्तेन व्यतीतेन भीमसेन महाबल। | 4-24-33a 4-24-33b |
ममेह भीम कैकेयी रूपाद्धि भयशङ्किता। | 4-24-34a 4-24-34b |
तस्या विदित्वा तं भावं स्वयं चानृतदर्शनः । | 4-24-35a 4-24-35b |
तमहं कुपिता भीम पुनः कोपं नियम्य च। | 4-24-36a 4-24-36b |
गन्धर्वाणामहं भार्या पञ्चानां महिषी प्रिया । | 4-24-37a 4-24-37b |
एवमुक्तस्तु दुष्टात्मा कीचकः प्रत्युवाच ह। | 4-24-38a 4-24-38b |
शतं सहस्रमपि वा गन्धर्वाणामहं रणे। | 4-24-39a 4-24-39b |
इत्युक्ता चाब्रवं सूतं कामातुरमहं पुनः। | 4-24-40a 4-24-40b |
धर्मे स्थिताऽस्मि सततं कुलशीलसमन्विता। | 4-24-41a 4-24-41b |
एवमुक्तस्तु दुष्टात्मा प्रहस्य स्वनवत्ततः। | 4-24-42a 4-24-42b |
पापात्मा पापकारी च कामराजवशानुगः । | 4-24-43a 4-24-43b |
दर्शनेदर्शने हन्याद्यदि जह्यां च जीवितम्। | 4-24-44a 4-24-44b |
समयं रक्षमाणानां दारा वो न भवन्ति च । | 4-24-45a 4-24-45b 4-24-45c |
वंदतां वर्णधर्मांश्च ब्राह्मणानां च मे श्रुतम् । | 4-24-46a 4-24-46b |
पश्यतो धर्मराजस्य कीचको माऽन्वधावत । | 4-24-47a 4-24-47b |
त्वया चाहं परित्राता भीम तस्माञ्जटासुरात् ।। 48 ।। | 4-24-48a |
जयद्रथं तथैव त्वमजैषीर्भ्रातृभिः सह। | 4-24-49a 4-24-49b 4-24-49c |
कीचकं कामसन्तप्तं भिन्धि कुम्भमिवाश्मनि । | 4-24-50a 4-24-50b |
तं चेञ्जीवन्तमादित्यः प्रातरभ्युदयिष्यति । | 4-24-51a 4-24-51b |
श्रेयो हि मरणं मह्यं भीमसेन तवाग्रतः । | 4-24-52a 4-24-52b |
भीमश्च तां परिष्वज्य महत्सान्त्वं प्रयुज्य च। | 4-24-53a 4-24-53b |
आश्वासयित्वा बहुशो भृशमार्तां सुमध्यमाम्। | 4-24-54a 4-24-54b |
प्रमृज्य वदनं तस्याः पाणिनाऽश्रुसमाकुलम्। | 4-24-55a 4-24-55b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि कीचकवधपर्वणि चतुर्विशोऽध्यायः ।। 24 ।। |
4-24-24 मा दीर्घं क्षम कालं त्वं मासमर्धं च संमितमिति झo पाठः ।। 24 ।। 4-24-26 प्राधान्यं कर्तुमर्हसि इति खo पाठः ।। 26 ।। 4-24-33 दुःखस्यान्तकरो भवेति धo पाठः ।। 33 ।।
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