महाभारतम्-04-विराटपर्व-023
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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द्रौपद्या भीमंप्रति स्ववैभवानुस्मारणेन परिशोचनपूर्वकं कीचकहननचोदना ।। 1 ।।
द्रौपद्युवाच। | 4-23-1x |
अहं सैरन्ध्रिवेषेण वसन्ती राजवेश्मनि। | 4-23-1a 4-23-1b |
विक्रियां पश्य मे तीव्रां राजपुत्र्याः परन्तप। | 4-23-2a 4-23-2b |
अनित्याः खलु मर्त्यानामर्थाश्च व्यसनानि च। | 4-23-3a 4-23-3b |
चक्रवत्परिवर्तन्ते ह्यर्थाश्च व्यसनानि च । | 4-23-4a 4-23-4b |
य एव हेतुर्भवति पुरुषस्य जयावहः। | 4-23-5a 4-23-5b |
दत्त्वा याचन्ति पुरुषा हत्वा हन्यन्त एव ते। | 4-23-6a 4-23-6b |
न दैवस्यातिभारोस्ति न चैवास्यातिवर्तनम्। | 4-23-7a 4-23-7b |
स्थितं पूर्वं जलं यत्र न पुनस्तत्र तिष्ठति । | 4-23-8a 4-23-8b |
दैवेन किल यस्यार्थः सुनीतोपि विपद्यते। | 4-23-9a 4-23-9b |
किंनु मे वचनस्याद्य कथितस्य प्रयोजनम् । | 4-23-10a 4-23-10b |
महिषी पाण्डुपुत्राणां दुहिता द्रुपदस्य च । | 4-23-11a 4-23-11b |
कुरून्परिहरन्सर्वान्पाञ्चालानपि भारत। | 4-23-12a 4-23-12b |
भ्रातृभिः श्वशुरैः पुत्रैर्बहुभिः परिवारिता। | 4-23-13a 4-23-13b |
नूनं बालतया धातुर्मया वै विप्रियं कृतम्। | 4-23-14a 4-23-14b |
वर्णं विकारमपि मे पश्य पाण्डव यादृशम् । | 4-23-15a 4-23-15b |
त्वमेव भीम जानीषे यन्मे पार्थ सुखं पुरा। | 4-23-16a 4-23-16b |
तद्दैविकमिदं मन्ये यत्र पार्थो धनञ्जयः। | 4-23-17a 4-23-17b |
अशक्या वेदितुं पार्थ प्राणिनां वै गतिर्नरैः । | 4-23-18a 4-23-18b |
यस्या मम मुखप्रेक्षा यूयमिन्द्रसमाः सदा। | 4-23-19a 4-23-19b |
पश्य पाण्डव मेऽवस्थां यथा नार्हामि वै तथा । | 4-23-20a 4-23-20b |
यस्याः सागरपर्यन्ता पृथिवी वशवर्तिनी। | 4-23-21a 4-23-21b |
यस्याः पुरश्चरा ह्यासन्पृष्ठतश्चानुगामिनः। | 4-23-22a 4-23-22b |
इदं तु दुःखं कौन्तेय ममासह्यं निबोध तत्। | 4-23-23a 4-23-23b 4-23-23c |
पश्य कौन्तेय पाणी मे नैवं वै भवतः पुरा। | 4-23-24a 4-23-24b |
बिभेमि कुन्त्या या नाऽहं युष्माकं वा कदाचन। | 4-23-25a 4-23-25b |
किंनु वक्ष्यति सम्राण्मां वर्णकः सुकृतो न वा। | 4-23-26a 4-23-26b |
वैशंपायन उवाच। | 4-23-27x |
सा कीर्तयन्ती दुःखानि भीमसेनस्य भामिनी। | 4-23-27a 4-23-27b |
सा बाष्पकलया वाचा निश्वसन्ती पुनःपुनः । | 4-23-28a 4-23-28b |
नाल्पं कृतं मया भीम देवानां किल्बिषं पुरा। | 4-23-29a 4-23-29b |
कीचकं चेन्न हन्यास्त्वं स्वात्मानं नाशयाम्यहम्। | 4-23-30a 4-23-30b 4-23-30c |
पापे निपतितायाश्च किं फलं जीवितेन मे। | 4-23-31a 4-23-31b |
ततस्तस्याः करौ पीनौ किणबद्धौ वृकोदरः। | 4-23-32a 4-23-32b |
तौ गृहीत्वा च कौन्तेयो बाष्पमुत्सृज्य वीर्यवान् । | 4-23-33a 4-23-33b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि कीचकवधपर्वणि त्रयोविंशोऽध्यायः ।। 23 ।। |
4-23-6 मानयित्वा च मान्यन्ते नरा दैवविपर्यये इति थo पाठः ।। 6 ।।
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