महाभारतम्-04-विराटपर्व-022
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कीचकं जिघांसन्त्या द्रौपद्या रात्रौ महानसमेत्य स्वपतो भीमस्य प्रबोधनम् ।। 1 ।।
तथा कीचकमारणाभावे स्वप्राणविमोक्षणप्रतिज्ञानम् ।। 2 ।।
तथा युधिष्ठिरादीन्प्रति प्रत्येकं नामनिर्देशपूर्वकमनुशोचनम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-22-1x |
सा सूतपुत्राभिहता राजपुत्री सुदुःखिता। | 4-22-1a 4-22-1b |
जगामावासमेवाथ तदा सा द्रुपदात्मजा। | 4-22-2a 4-22-2b |
गात्राणि वाससी चैव प्रक्षाल्य सलिलेन सा। | 4-22-3a 4-22-3b |
किं करोमि क्व गच्छामि कथं कार्यं भवेन्मम। | 4-22-4a 4-22-4b 4-22-4c |
प्रादुर्भूते क्षणे रात्रौ विहाय शयनं स्वकम्। | 4-22-5a 4-22-5b 4-22-5c |
सा वै महानसं प्राप्य भीमसेनं सुचिस्मिता। | 4-22-6a 4-22-6b |
सर्वश्वेतेव माहेयी वने वृद्धा त्रिहायणी। | 4-22-7a 4-22-7b 4-22-7c |
अभिप्रसार्य बाहुभ्यां पतिं सुप्तं समाश्लिषत् । | 4-22-8a 4-22-8b |
परिस्पृस्य च पाणिभ्यां पतिं सुप्तमबोधयत्। | 4-22-9a 4-22-9b 4-22-9c |
यथा शची देवराजं रुद्राणी शंकरं यथा। | 4-22-10a 4-22-10b |
दिशागजसमाकारं गजं गजवधूरिव । | 4-22-11a 4-22-11b |
वीणेव मधुरालापा स्वरं गान्धारमाश्रिता। | 4-22-12a 4-22-12b |
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ किं शेषे भीमसेन मृतो यथा। | 4-22-13a 4-22-13b |
तस्मिञ्जीवति पापिष्ठे सेनावाहे मम द्विषि । | 4-22-14a 4-22-14b |
वैशंपायन उवाच। | 4-22-15x |
सुखसुप्तश्च तं शब्दं निशम्य स वृकोदरः। | 4-22-15a 4-22-15b |
स वै विहाय शयनं यस्मिन्सुप्तः प्रबोधितः। | 4-22-16a 4-22-16b |
उपवेश्य च दुर्धर्पः पाञ्चालकुलवर्धनीम्। | 4-22-17a 4-22-17b |
केनार्थेन च संप्राप्ता त्वरितेव ममान्तिकम्। | 4-22-18a 4-22-18b |
प्रकाशं यदि वा गुह्यं सर्वमाख्यातुमर्हसि। | 4-22-19a 4-22-19b |
सुखं वा यदि वा दुःखं शुभं वा यदि वाऽशुभम्। | 4-22-20a 4-22-20b |
अहमेव हि ते कृष्णे विश्वास्यः सर्वकर्मसु। | 4-22-21a 4-22-21b |
शीघ्रमुक्त्वा यथाकामं यत्ते कार्यं विवक्षितम्। | 4-22-22a 4-22-22b |
वैशंपायन उवाच। | 4-22-23x |
सा लञ्जमाना भीता च अधोमुखमुखी ततः। | 4-22-23a 4-22-23b |
अथाब्रवीद्भीमपराक्रमो बली वृकोदरः पाण्डवमुख्यसंमतः। | 4-22-24a 4-22-24b |
द्रौपद्युवाच। | 4-22-25x |
अशोच्यता कुतस्तस्या यस्या भर्ता युधिष्ठिरः। | 4-22-25a 4-22-25b |
यन्मां दासीप्रवादेन प्रातिकामी तदाऽनयत्। | 4-22-26a 4-22-26b |
विकृष्टा हास्तिनपुरे सभायां राजसंसदि। | 4-22-27a 4-22-27b |
क्षत्रियैस्तत्र कर्णाद्यैर्दृष्टा दुर्योधनेन च। | 4-22-28a 4-22-28b 4-22-28c |
साऽहं श्वशुरयोर्मध्ये भ्रातृमध्ये च पाण्डव। | 4-22-29a 4-22-29b |
विप्रयुक्ता ततश्चाहं वने राज्याद्वनं गता। | 4-22-30a 4-22-30b 4-22-30c |
पार्थिवस्य सुता नाम कानु जीवेन मादृशी । | 4-22-31a 4-22-31b |
वनवासगता चाहं सैन्धवेन दुरात्मना। | 4-22-32a 4-22-32b |
पद्भ्यां पर्यचरं चाहं देशान्विषमसंस्थितान् । | 4-22-33a 4-22-33b |
ततोऽहं द्वादशे वर्षे वन्यमूलफलाशना। | 4-22-34a 4-22-34b 4-22-34c |
गोशीर्षकं पद्मकं च हरिश्यामं च चन्दनम्। | 4-22-35a 4-22-35b |
साऽहं बहूनिः दुःखानि गणयामि न ते कृते ।। 36 ।। | 4-22-36a |
मत्स्यराजसमक्षं तु तस्य धूर्तस्य पश्यतः। | 4-22-37a 4-22-37b |
एवं बहुविधैर्दुःखैः क्लिश्यमाना च पाण्डव । | 4-22-38a 4-22-38b |
द्रुपदस्य सुता चाहं धृष्टद्युम्नस्य चानुजा। | 4-22-39a 4-22-39b |
कीचकं चेन्न हन्यास्त्वं ग्रीवां बद्ध्वा जले म्रिये। | 4-22-40a 4-22-40b |
आत्मानं नाशयिष्यामि वृक्षमारुह्य वा पते । | 4-22-41a 4-22-41b |
योऽयं राज्ञो विराटस्य कीचको नाम भारत। | 4-22-42a 4-22-42b |
स मां सैरन्ध्रिवेषेण वसन्तीं राजवेश्मनि। | 4-22-43a 4-22-43b |
तेनैवमुच्यमानाया वधार्हेणारिसूदन। | 4-22-44a 4-22-44b |
शरणं भव कौन्तेय मा स्म गच्छे युधिष्ठिरम्। | 4-22-45a 4-22-45b |
मा स्म सीमन्तिनी काचिञ्जनयेत्पुत्रमीदृशम् ।। 46 ।। | 4-22-46a |
विजानामि तवामर्षं बलं वीर्यं च पाण्डव। | 4-22-47a 4-22-47b |
यथा यूथपतिर्मत्तः कुञ्जरः षाष्टिहायनः। | 4-22-48a 4-22-48b |
तथैव च शिरस्तस्य निपात्य धरणीतले। | 4-22-49a 4-22-49b |
स चेदुद्यन्तमादित्यं प्रातरुत्थाय पश्यति। | 4-22-50a 4-22-50b |
शापितोसि मम प्राणैः सुकृतेनार्जुनस्य च। | 4-22-51a 4-22-51b 4-22-51c |
भ्रात च विगर्हस्व ज्येष्ठं दुर्द्यूतदेविनम्। | 4-22-52a 4-22-52b |
येषां मुख्यतमो ज्येष्ठो भवेत्तु कुलपांसनः। | 4-22-53a 4-22-53b |
को हि राज्यं परित्यज्य सपुत्रपशुबान्धवम् । | 4-22-54a 4-22-54b |
यदि निष्कसहस्राणि यद्वाऽन्यत्सारवद्धनम् । | 4-22-55a 4-22-55b |
रुक्मं हिरण्यं वासांसि यानं युग्यमजाविकम् । | 4-22-56a 4-22-56b |
सोयं द्यूतप्रवादेन श्रियश्चैवावरोपितः। | 4-22-57a 4-22-57b |
पुरा दशसहस्राणि दन्तिनां वाजिनामपि। | 4-22-58a 4-22-58b |
तथा शतसहस्राणि स्त्रीणाममिततेजसाम्। | 4-22-59a 4-22-59b |
शतं दासीसहस्राणां यस्य नित्यं महानसे। | 4-22-60a 4-22-60b |
एष निष्कसहस्राणि दत्त्वा प्रातर्दिनेदिने । | 4-22-61a 4-22-61b |
एनं सुस्वरसंपन्ना बहवः सूतमागधाः। | 4-22-62a 4-22-62b |
[सहस्रं वालखिल्यानां सहस्रमुदवासिनाम्। | 4-22-63a 4-22-63b |
सहस्रं मुनिपत्नीनां सहस्रं ब्रह्मचारिणाम्। | 4-22-64a 4-22-64b |
हंसाः परमहंसाश्च योगिनश्च द्विजातयः। | 4-22-65a 4-22-65b |
संविभक्तात्मकाश्चैव बहवश्चोर्ध्वरेतसः । | 4-22-66a 4-22-66b 4-22-66c |
सहस्रमृषयो यस्य नित्यमासन्सभासदः। | 4-22-67a 4-22-67b |
अन्धान्वृद्धाननाथांस्तु सर्वराष्ट्रेषु दुःखितान्। | 4-22-68a 4-22-68b |
स एष निलयं प्राप्तो मत्स्यस्य परिचारकः। | 4-22-69a 4-22-69b |
इन्द्रप्रस्थे निवसतः समये यस्य पार्थिवाः। | 4-22-70a 4-22-70b |
पार्थिवाः पृथिवीपाला यस्यासन्वशवर्तिनः। | 4-22-71a 4-22-71b |
संप्राप्य पृथिवीं कृत्स्नां रश्मिवानिव तेजसा। | 4-22-72a 4-22-72b |
यमुपासत राजानं सभायामृषिसत्तमाः। | 4-22-73a 4-22-73b |
अनवद्यं महाप्राज्ञं जीवितार्थेन संवृतम् । | 4-22-74a 4-22-74b |
उपास्ते स्म सभायां यं कृत्स्नाऽपि च वसुन्धरा। | 4-22-75a 4-22-75b |
एवं बहुविदैर्दुःखैः पीड्यमानामनाथवत्। | 4-22-76a 4-22-76b |
इदं तु मे दुःखतरं यत्त्वां वक्ष्यामि भारत। | 4-22-77a 4-22-77b |
शार्दूलैर्महिषैर्नागौरगारे योत्स्यसे सदा। | 4-22-78a 4-22-78b |
हसन्त्यन्तःपुरे नार्यो मम चेष्टां निरीक्ष्य च ।। 79 ।। | 4-22-79a |
तत उत्थाय कैकेयी सर्वास्ताः प्रत्यभाषत। | 4-22-80a 4-22-80b |
स्नेहात्संवासजादेव तदा वै चारुहासिनी । | 4-22-81a 4-22-81b |
कल्याणरूपा सैरन्ध्री वललश्चापि सुन्दरः। | 4-22-82a 4-22-82b |
सैरन्ध्री प्रियसंवासान्नित्यं करुणवादिनी। | 4-22-83a 4-22-83b |
इति ब्रुवाणा वाक्यानि सा मां नित्यमजीजपत् । | 4-22-84a 4-22-84b |
तस्यां तथा ब्रुवन्त्यां तु भीमो भीमपराक्रमः। | 4-22-85a 4-22-85b |
ज्ञात्वा-तु रुषितं भीमं द्रौपदी पुनरब्रवीत्। | 4-22-86a 4-22-86b |
यंस्तु देवान्मनुष्यांश्च सर्वानेकरथोऽजयत्। | 4-22-87a 4-22-87b 4-22-87c |
योऽतर्पयदमेयात्मा खाण्डवे जातवेदसम्। | 4-22-88a 4-22-88b |
यस्माद्भयममित्राणां सदैव पुरुषर्षभात्। | 4-22-89a 4-22-89b |
यस्यं ज्यातलनिर्घोषात्समकम्पन्त शत्रवः। | 4-22-90a 4-22-90b 4-22-90c |
स्त्रियो गीतस्वरात्तस्य मुदिताः पर्युपासते ।। 91 ।। | 4-22-91a |
किरीटं सूर्यसंकाशं यस्य मूर्धन्यशोभत। | 4-22-92a 4-22-92b |
यस्मिन्नस्त्राणि दिव्यानि समस्तानि महात्मनि । | 4-22-93a 4-22-93b |
यं वै राजसहस्राणि तेजसाऽप्रतिमं भुवि । | 4-22-94a 4-22-94b |
सोयं राज्ञो विराटस्य कन्यानां नर्तको युवा। | 4-22-95a 4-22-95b |
यस्य स्म रथनिर्घोषात्समकम्पत मेदिनी। | 4-22-96a 4-22-96b |
यस्मिञ्जाते महेष्वासे कुन्त्याः प्रीतिरवर्धत। | 4-22-97a 4-22-97b |
विभूषितमलंकारैः कुण्डलैः परिपातुकैः। | 4-22-98a 4-22-98b |
वेणीविकृतकेशान्तं भीमधन्वानमर्जुनम्। | 4-22-99a 4-22-99b |
यदा ह्येनं परिवृतं कन्याभिर्देवरूपिणम्। | 4-22-100a 4-22-100b |
मात्स्यं पार्थं च गायन्तं विराटं समुपस्थितम्। | 4-22-101a 4-22-101b |
नूनमार्या न जानाति कृच्छ्रं प्राप्तं धनंजयम्। | 4-22-102a 4-22-102b |
ऐन्द्रवारुणवायव्यब्रह्माग्नेयैः सवैष्णवैः । | 4-22-103a 4-22-103b 4-22-103c |
कौबेरं वैष्णवं शैवमस्त्राण्यन्यानि भारत। | 4-22-104a 4-22-104b |
दिव्यं गान्धर्वमस्त्रं च वायव्यमथ वैष्णवम्। | 4-22-105a 4-22-105b |
पौलोमान्कालकेयांश्च इन्द्रशत्रून्महाबलान्। | 4-22-106a 4-22-106b 4-22-106c |
यो वै महातपः कुर्वन्महाबलपराक्रमः । | 4-22-107a 4-22-107b |
कन्यापुरगतं दृष्ट्वा गोष्ठेष्विव महावृषम्। | 4-22-108a 4-22-108b |
यः स्त्रीभिर्नित्यसंपन्नो रूपेणास्त्रेण मेधया । | 4-22-109a 4-22-109b |
राजकन्याश्च वेश्याश्च विशां दुहितरश्च याः। | 4-22-110a 4-22-110b 4-22-110c |
विराटमुपतिष्ठन्तं दर्शयन्तं च वाजिनम्। | 4-22-111a 4-22-111b 4-22-111c |
किंनु मां मन्यसे पार्थ सुखितेति परन्तप। | 4-22-112a 4-22-112b |
तं दृष्ट्वा गोषु गोसङ्ख्यं वत्सचर्मक्षितीशयम्। | 4-22-113a 4-22-113b |
सहदेवस्य वृत्तानि चिन्तयन्ती पुनःपुनः । | 4-22-114a 4-22-114b 4-22-114c |
दूयामि भरतश्रेष्ठ दृष्ट्वा ते भ्रातरं प्रियम्। | 4-22-115a 4-22-115b |
संरब्धतररक्ताक्षं गोपालानां पुरोगमम्। | 4-22-116a 4-22-116b |
सहदेवं हि मे नित्यं वीरमार्या प्रशंसति। | 4-22-117a 4-22-117b |
हीनिषेवो ह्यनवमो धार्मिकश्च प्रियश्च मे। | 4-22-118a 4-22-118b |
सुकुमारश्च शूरश्च राजानं चाप्यनुव्रतः। | 4-22-119a 4-22-119b |
इत्युवाच हि मां कुन्ती रुदती पुत्रगृद्धिनी। | 4-22-120a 4-22-120b |
तं दृष्ट्वा गोषु गोपालवेषमास्थाय धिष्ठितम्। | 4-22-121a 4-22-121b |
एवं दुःखशताविष्टा युधिष्ठिरनिमित्ततः ।। 122 ।। | 4-22-122a |
पुनः प्रतिविशिष्टानि दुःखानि शृणु भारत। | 4-22-123a 4-22-123b |
युष्मासु ध्रियमाणेषु दुःखानि विविधान्युत। | 4-22-124a 4-22-124b |
एकभर्ता तु या नारी सा सुखेनैव वर्तते। | 4-22-125a 4-22-125b |
4-22-7 सर्वश्वेता बकी इति नीलकण्ठः ।। 7 ।। 4-22-10 तथा इति खo पाठः ।। 10 ।। 4-22-13 नाभृतस्य हि पापीयान्भार्यामालभ्य जीवतीति झo पाठः ।। 13 ।। 4-22-54 महारण्यमनुजैः परिवारितः इति खo पाठः ।। 54 ।।( इमे चत्वारः श्लोकाः धo पुस्तक एव वर्तन्ते ।।)
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