महाभारतम्-04-विराटपर्व-021
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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वैशंपायनेन जनमेजयंप्रति कीचकोत्पत्तिप्रकारादिकथनम् ।। 1 ।।
जनमेजय उवाच। | 4-21-1x |
अहो दुःखतरं प्राप्ता कीचकेन पदा हता। | 4-21-1a 4-21-1b |
दुःशलां स्मारयन्ती सा भर्तॄणां भगिनीं शुभाम्। | 4-21-2a 4-21-2b |
किमर्थमिह संप्राप्ता कीचकेन दुरात्मना । | 4-21-3a 4-21-3b |
तेजोराशिरियं देवी धर्मज्ञा सत्यवादिनी । | 4-21-4a 4-21-4b |
नैतत्कारणमल्पं हि श्रोतुकामोऽस्मि सत्तम। | 4-21-5a 4-21-5b |
कस्य वंशे समुद्भूतः स च दुर्ललितो मुने । | 4-21-6a 4-21-6b |
दृष्ट्वापि तां प्रियां भार्यां सूतपुत्रेण ताडिताम् । | 4-21-7a 4-21-7b |
वैशंपायन उवाच। | 4-21-8x |
त्वदुक्तोऽयमनुप्रश्नः कुरूणां कीर्तिवर्धनः। | 4-21-8a 4-21-8b |
ब्राह्मण्यां क्षत्रियाञ्जातः सूतो भवति पार्थिव । | 4-21-9a 4-21-9b |
रथकारमितीमं हि क्रियायुक्तं द्विजन्मनाम्। | 4-21-10a 4-21-10b |
सह सूतेन संबन्धः कृतः पूर्वं नराधिपैः। | 4-21-11a 4-21-11b |
तेषां तु सूतविषयः सूतानां नामतः कृतः। | 4-21-12a 4-21-12b |
सूतानामधिपो राजा केकयो नाम विश्रुतः। | 4-21-13a 4-21-13b |
पुत्रास्तस्य कुरुश्रेष्ठ मालव्यां जझिरे तदा। | 4-21-14a 4-21-14b |
तेषामासीद्बलश्रेष्ठः कीचकः सर्वजित्प्रभो। | 4-21-15a 4-21-15b |
मालव्या एव कौरव्य तत्र ह्यवरजाऽभवत्। | 4-21-16a 4-21-16b |
तां विराटस्य मात्स्यस्य केकयः प्रददौ मुदा। | 4-21-17a 4-21-17b |
श्वेते विनष्टे शङ्खे च गते मातुलवेश्मनि । | 4-21-18a 4-21-18b |
उत्तरं चोत्तरां चैव विराटात्पृथिवीपते। | 4-21-19a 4-21-19b |
मातृष्वसृसुतां राजन्कीचकस्तामनिन्दिताम्। | 4-21-20a 4-21-20b |
भ्रातरश्चास्य विक्रान्ताः सर्वे च तमनुव्रताः । | 4-21-21a 4-21-21b |
कालेया नाम ते दैत्याः प्रायशो भुवि विश्रुताः। | 4-21-22a 4-21-22b |
स हि सर्वास्रसंपन्नो बलवान्भीमविक्रमः । | 4-21-23a 4-21-23b |
तं प्राप्य बलसंमत्तं विराटः पृथिवीपतिः । | 4-21-24a 4-21-24b |
मेखलांश्च त्रिगर्तांश्च दशार्णांश्च कशेरुकान्। | 4-21-25a 4-21-25b |
करदांश्च निषिद्धांश्च शिवान्मचुलकांस्तथा। | 4-21-26a 4-21-26b |
अन्ये च बहवः शूरा नानाजनपदेश्वराः। | 4-21-27a 4-21-27b |
तमेवंवीर्यसंपन्नं नागायुतसमं बले। | 4-21-28a 4-21-28b |
विराटभ्रातरश्चैव दश दाशरथेः समाः। | 4-21-29a 4-21-29b |
एवंविधबलो भीमः कीचकस्ते च तद्विधाः। | 4-21-30a 4-21-30b |
एतत्ते कथितं सर्वं कीचकस्य पराक्रमम्। | 4-21-31a 4-21-31b |
रक्षन्ति हि तपः क्रोधादृषयो न शपन्ति च। | 4-21-32a 4-21-32b |
क्षमा धर्मः क्षमा दानं क्षमा यज्ञः क्षमा तपः। | 4-21-33a 4-21-33b |
क्षमावतामयं लोकः परश्चैव क्षमावताम्। | 4-21-34a 4-21-34b |
भर्तॄणां मतमाज्ञाय क्षमिणां धर्मचारिणाम्। | 4-21-35a 4-21-35b |
पाण्डवाश्चापि ते सर्वे द्रौपदीं प्रेक्ष्य दुःखिताम्। | 4-21-36a 4-21-36b |
अथ भीमो महाबाहुः मूदयिष्यंस्तु कीचकम्। | 4-21-37a 4-21-37b |
संधार्य मनसा रोषं दिवारात्रं विनिश्वसन्। | 4-21-38a 4-21-38b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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