महाभारतम्-04-विराटपर्व-019
← विराटपर्व-018 | महाभारतम् चतुर्थपर्व महाभारतम्-04-विराटपर्व-019 वेदव्यासः |
विराटपर्व-020 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
कीचकगृहंप्रति प्रस्थितया द्रौपद्या तेन स्वस्यादूषणाय सूर्यादिदेवताप्रार्थना ।। 1 ।।
सूर्येण तद्रक्षणाय निगूढस्य रक्षसः प्रेषणम् ।। 2 ।।
कीचकेन द्रौपदींप्रति स्ववशीभवनयाचनम् ।। 3 ।।
तथा तदनङ्गीकाररोषात्तस्याः पादेन ताडनम् ।। 4 ।।
सूर्यदूतेन रक्षसा कीचकस्य भूमौ निपातनम् ।। 5 ।।
युधिष्ठिरेन कीचकजिघांसोर्भीमस्य संकेतेन प्रतिषेधनम् ।। 6 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-19-1x |
अकीर्तयत सुश्रोणी धर्मं शक्रं दिवाकरम्। | 4-19-1a 4-19-1b |
रुद्रमग्निं भगं विष्णुं स्कन्दं पूषणमेव च। | 4-19-2a 4-19-2b |
इत्येवं मृगशवाक्षी सुश्रोणी धर्मचारिणी । | 4-19-3a 4-19-3b |
तदस्यास्तनुमध्यायाः सर्वं सूर्योऽवबुद्धवान्। | 4-19-4a 4-19-4b |
तच्चैनां नाजहात्तत्र सर्वावस्थास्वनिन्दिताम् ।। 5 ।। | 4-19-5a |
प्रतस्थे सा सुकेशान्ता त्वरमाणा पुनःपुनः । | 4-19-6a 4-19-6b |
तां मृगीमिव वित्रस्तां दृष्ट्वा कृष्णां समागताम्। | 4-19-7a 4-19-7b |
श्लक्ष्णं चोवाच वाक्यं स कीचकः काममूर्च्छितः। | 4-19-8a 4-19-8b |
स्वामिनी त्वमनुप्राप्ता चिरस्य भवनं शुभे। | 4-19-9a 4-19-9b |
प्रतिगृह्णीष्व मे भोगांस्त्वदर्थमुपकल्पितान्। | 4-19-10a 4-19-10b |
वासांसि चन्दनं माल्यं धूपशुद्धां च वारुणीम्। | 4-19-11a 4-19-11b 4-19-11c |
स्वास्तीर्णमस्ति शयनं सितसूक्ष्मोत्तरच्छदम्। | 4-19-12a 4-19-12b |
भजस्व मां विशालाक्षि भर्ता ते सदृशोस्म्यहम्। | 4-19-13a 4-19-13b |
वैशंपायन उवाच। | 4-19-14x |
स मूढः कीचकस्तत्र प्राप्तां राजीवलोचनाम्। | 4-19-14a 4-19-14b |
कीचकेनैवमुक्ता सा द्रौपदी वरवर्णिनी। | 4-19-15a 4-19-15b |
नाहं शक्या त्वया स्प्रष्टुं श्वपचेनेव ब्राह्मणी। | 4-19-16a 4-19-16b |
यत्र गच्छन्ति बहवः परदाराभिमर्शकाः। | 4-19-17a 4-19-17b |
अप्रैषीन्मां सुराहारीं सुदेष्णा त्वन्निवेशनम् । | 4-19-18a 4-19-18b |
पिपासिता च कैकेयी तूर्णं मामादिशत्ततः। | 4-19-19a 4-19-19b |
कीचक उवाच। | 4-19-20x |
अन्या भद्रे हरिष्यन्ति राजपुत्र्याः सुरामिमाम्। | 4-19-20a 4-19-20b |
वैशंपायन उवाच। | 4-19-21x |
इत्युक्त्वा दक्षिणे पाणौ सूतपुत्रः परामृशत्। | 4-19-21a 4-19-21b 4-19-21c |
तां कीचकः प्रधावन्तीं केशपक्षे परामृशत्। | 4-19-22a 4-19-22b |
सभायां पश्यतो राज्ञो विराटस्य महात्मनः। | 4-19-23a 4-19-23b |
तस्याः पादाभितप्ताया मुखाद्रुधिरमास्रवत् ।। 24 ।। | 4-19-24a |
ततो दिवाकरेणाशु राक्षसः संनियोजितः। | 4-19-25a 4-19-25b |
स पपात तदा भूमौ रक्षोबलसमीरितः । | 4-19-26a 4-19-26b |
तां दृष्ट्वा तत्र ते सभ्या हाहाभूताः समन्ततः। | 4-19-27a 4-19-27b 4-19-27c |
तस्यामासन्हि ते पार्थाः सभायां भ्रातरस्तथा । | 4-19-28a 4-19-28b |
तां दृष्ट्वा भीमसेनस्य क्रोधादास्रमवर्तत। | 4-19-29a 4-19-29b 4-19-29c |
तस्य भीमो वधप्रेप्सुः कीचकस्य दुरात्मनः। | 4-19-30a 4-19-30b |
भूयः संचरितः क्रुद्धः सहसोत्थाय चासनात्। | 4-19-31a 4-19-31b |
वधमाकाङ्क्षमाणं तं कीचकस्य दुरात्मनः। | 4-19-32a 4-19-32b |
तस्य राजा शनैः संज्ञां कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। | 4-19-33a 4-19-33b |
प्रत्याख्यानं तदा चाह कङ्को नाम युधिष्ठिरः ।। 34 ।। | 4-19-34a |
सूद मा साहसं कार्षीः फलितोऽयं वनस्पतिः। | 4-19-35a 4-19-35b |
यदि ते दारुकृत्यं स्यान्निष्क्रम्य नगराद्बहिः। | 4-19-36a 4-19-36b |
यस्य चार्द्रस्य वृक्षस्य शीतच्छायां समाश्रयेत्। | 4-19-37a 4-19-37b |
न क्रोधकालसमयः सूद मा चापलं कृथाः। | 4-19-38a 4-19-38b |
अथाङ्गुष्ठेनावमृद्गादङ्गुष्ठं तत्र धर्मराट्। | 4-19-39a 4-19-39b |
भीमसेनस्तु तद्वाक्यं श्रुत्वा परपुरञ्जयः। | 4-19-40a 4-19-40b 4-19-40c |
भीमस्य च समारम्भं दृष्ट्वा राज्ञोऽस्य चेष्टितम्। | 4-19-41a 4-19-41b |
कीचकेनानुगमनात्कृष्णा ताम्रायतेक्षणा । | 4-19-42a 4-19-42b |
अवेक्षमाणा सुश्रोणी पतींस्तान्दीनचेतसः। | 4-19-43a 4-19-43b 4-19-43c |
प्रजारक्षणशीलानां राज्ञां ह्यमिततेजसाम्। | 4-19-44a 4-19-44b |
स्वप्रजायां प्रजायां च विशेषं नाधिगच्छताम्। | 4-19-45a 4-19-45b |
विवादेषु प्रवृत्तेषु समं कार्यानुदर्शिना। | 4-19-46a 4-19-46b |
राजन्धर्मासनस्थो हि रक्ष मां त्वमनागसम् ।। 47 ।। | 4-19-47a |
अहं त्वनपराध्यन्ती कीचकेन दुरात्मना । | 4-19-48a 4-19-48b |
त्वत्समक्षं नृपश्रेष्ठ निष्पिष्टा वसुधातले । | 4-19-49a 4-19-49b |
रक्ष मां कीचकाद्भीतां धर्मं रक्ष नरेश्वर । | 4-19-50a 4-19-50b |
यस्त्वधर्मेण कार्याणि मोहात्मा कुरुते नृपः। | 4-19-51a 4-19-51b |
मत्स्यानां कुलजस्त्वं हि तेषां सत्यं परायणम्। | 4-19-52a 4-19-52b |
अतस्त्वाहमभिक्रन्दे शरणार्थं नराधिप। | 4-19-53a 4-19-53b |
अनाथामिह मां ज्ञात्वा कीचकः पुरुषाधमः। | 4-19-54a 4-19-54b |
अकार्याणामनारम्भात्कार्याणामनुपालनात्। | 4-19-55a 4-19-55b |
कार्याकार्यविशेषज्ञाः कामकारेण पार्थिवाः। | 4-19-56a 4-19-56b |
नैव यज्ञैर्न वा दानैर्न गुरोरुपसेवनात्। | 4-19-57a 4-19-57b |
अपि चेदं पुरा ब्रह्मा प्रोवाचेन्द्राय पृच्छते। | 4-19-58a 4-19-58b |
धर्माधर्मौ पुनर्द्वन्द्वं विनियुक्तमथापि वा। | 4-19-59a 4-19-59b |
प्रजायां सृज्यमानायां पुरा ह्येतदुदाहृतम्। | 4-19-60a 4-19-60b |
अस्मिन्सुनीते दुर्नीते लभते कर्मजं फलम्। | 4-19-61a 4-19-61b |
तेन गच्छति संसर्गं स्वर्गाय नरकाय वा। | 4-19-62a 4-19-62b 4-19-62c |
एवमुक्त्वा परं वाक्यं विससर्ज शतक्रतुम्। | 4-19-63a 4-19-63b |
यथोक्तं देवराजेन ब्रह्मणा परमेष्ठिना। | 4-19-64a 4-19-64b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
4-19-17 कीटवच्च गुहाश्रया इति कo थo पाठः ।। 17 ।।
विराटपर्व-018 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | विराटपर्व-020 |