नानानदीनदशतानि च पूरयित्वा |
तो माघ पंडित को वस्त्रमात्रधारी जानकर एक याचक ने कहा-
ग्रीष्म ऋतु की गर्मी से तपे पर्वतों को दे आश्वासन, |
इत्येतदाकार्ण्य माघः स्वपत्नीमाह--'देवि,
अर्था न सन्ति न च मुञ्चति मां दुराशा |
यह सुनकर माघ ने अपनी पत्नी से कहा--'देवि,
अर्थ नहीं है, पर न छोड़ती मुझे दुराशा, |
हुआ दारिद्रय-अनल का ताप शांत संतो,-शीत जल से |
ततस्तदा माघपण्डितस्य तामवस्थां विलोक्य सर्वे याचका यथा- स्थानं जग्मुः । एवं तेषु याचकेषु यथायथं गच्छत्सु माधः प्राह--
'व्रजत व्रजत प्राणा अर्थिभिव्यर्थतां गतैः। |
इति विलपन्माघपण्डितः परलोकमगात् ।
तो माध पंडित की उस अवस्था को देख उस समय वे सब याचक: चले गये । उन' याचको को यथा स्थान जाते देख माघ ने कहा-