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भोजप्रवन्धः


जाओ-जाओ मेरे प्राणो, याचक खाली हाथ गये;
- फिर पीछे भी जाना होगा, तब क्या होगा व्यर्थ गये ?
इस प्रकार विलाप करते-करते माघ पंडित परलोक गये ।

ततो माघपत्नी स्वामिनि परलोकं गते सति प्राह--
'सेवन्ते स्म गृहं यस्य दासवद्भूभुजः सदा ।
स स्वभार्यासहायोऽयं म्रियते माघपण्डितः ॥ २८४ ॥

 तव स्वामी के परलोक जाने पर माघ पत्नी ने कहा-- जिनके घर सदा राजागण दास के समान सेवा करते थे, वे माघ पंडित केवल पत्नी को सहायिका रूप में प्राप्त कर मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं।

 ततो राजा माघं विपन्नं ज्ञात्वा निजनगराद्विप्रशतावृतो मौनी रात्रावेव तत्रागात् । ततो माधपत्नी राजानं वीक्ष्य प्राह-'राजन्, यतः पण्डितवरस्त्वदेशं प्रातः परलोकमगात् , ततोऽस्य कृत्यशेषं सम्यगाराधनीयं भवता' इति । ततो राजा माघं विपन्नं नर्मदातीरं नीत्वा यथोक्तेन विधिना संस्कारमकरोत् । तत्र च माधपत्नी वह्नौ प्रविष्टा । तयोश्च पुत्रवत्सर्व चक्र भोजः ।

 तो माघ को विपद्-ग्रस्त ( मृत ) जानकर सो ब्राह्मणों के साथ मौन धारण किये राजा अपने नगर से रात में ही वहाँ पहुँचा। तो माघ की पत्नी ने राजा को देखकर कहा--'हे राजा. क्योंकि पंडितवर ( माघ ) आपके देश में आकर ही परलोक सिधारे, सो इनका शेष कर्म आपको ही भली भांति करना चाहिए।' सो राजा ने मृत माघ को नर्मदा के किनारे ले जाकर शास्त्रोक्त विधि के अनुसार संस्कार किया। तदनंतर माघ की पत्नी भी अग्नि में प्रविष्ट हो गयीं। उन दोनों के सब संस्कार पुत्र की भांति भोज ने किये !

 ततो माघे दिवं गते राजा शोकाकुलो विशेषेण कालिदासवियोगेन च पण्डितानां प्रवासेन कृशोऽभूद्दिने दिने बहुलपक्षशशीव । ततोऽमात्यैमिलित्वा चिन्तितम्-'बल्लालदेशे कालिदासो वसति । तस्मिन्नांगते

 १० भोज०