यजुर्वेदभाष्यम् (दयानन्दसरस्वतीविरचितम्)/अध्यायः ३/मन्त्रः २०
← मन्त्रः १९ | यजुर्वेदभाष्यम् (दयानन्दसरस्वतीविरचितम्) अध्यायः ३ दयानन्दसरस्वती |
मन्त्रः २१ → |
सम्पादकः — डॉ॰ ज्ञानप्रकाश शास्त्री, जालस्थलीय-संस्करण-सम्पादकः — डॉ॰ नरेश कुमार धीमान् |
अन्धस्थेत्यस्य याज्ञवल्क्य ऋषिः। आपो देवता। भुरिग्बृहती छन्दः। मध्यमः स्वरः॥
अथ यज्ञेन कृतशुद्धय ओषध्यादयः पदार्था उपदिश्यन्ते॥
अब अगले मन्त्र में यज्ञ से शुद्ध किये ओषधी आदि पदार्थों का उपदेश किया है॥
अन्ध॒ स्थान्धो॑ वो भक्षीय॒ मह॑ स्थ॒ महो॑ वो भक्षी॒योर्ज॒ स्थोर्जं॑ वो भक्षीय रा॒यस्पोष॑ स्थ रा॒यस्पोषं॑ वो भक्षीय॥२०॥
पदपाठः—अन्धः॑। स्थ॒। अन्धः॑। वः॒। भ॒क्षी॒य॒। महः॑। स्थ॒। महः॑। वः॒। भ॒क्षी॒य॒। ऊ॒र्जः॑। स्थ॒। ऊर्ज्ज॑म्। वः॒। भ॒क्षी॒य॒। रा॒यः। पोषः॑। स्थ॒। रा॒यः। पोष॑म्। वः॒। भ॒क्षी॒य॒॥२०॥
पदार्थः—(अन्धः) अन्नम्। अन्ध इत्यन्ननामसु पठितम्। (निघं॰ २.७) अदेर्नुम् धौ च उणा॰ ४.२०६। अनेनाऽदेरसुन् प्रत्ययो नुमागमो धकारादेशश्च। वा शर्प्रकरणे खर्परे लोपो वक्तव्यः [अष्टा॰ भा॰ वा॰ ८.३.३६] इति विसर्जनीयलोपः। (स्थ) सन्ति। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः। (अन्धः) प्राप्तुं योग्यो रसः। अन्ध इति पदनामसु पठितम्। (निघं॰ ४.२) अनेन प्राप्तव्यो रसो गृह्यते। (वः) सर्वेषामोषध्यादिपदार्थानाम् (भक्षीय) सेवेय (महः) महांसि (स्थ) सन्ति (महः) महागुणसमूहम् (वः) महतां पदार्थानाम् (भक्षीय) स्वीकुर्याम् (ऊर्जः) पराक्रमः (स्थ) सन्ति (ऊर्जम्) पराक्रमम् (वः) बलवतां पदार्थानाम् (भक्षीय) सेवेय (रायस्पोषः) या बहुगुणभोगेन पुष्टयः। भूमा वै रायस्पोषः शत॰ ३.१.१.१२। (स्थ) सन्ति (रायस्पोषम्) उत्तमानां धनानां भोगम् (वः) चक्रवर्त्तिराज्यश्रियादिपदार्थानाम् (भक्षीय) अद्याम्। अयं मन्त्रः (शत॰ २.३.४.२५) व्याख्यातः॥२०॥
अन्वयः—येऽन्धः स्थान्धो वीर्यवन्तो वृक्षौषध्यादयः पदार्थाः सन्ति, वस्तेषां सकाशादहमन्धोवीर्य-कराण्यन्नानि भक्षीय स्वीकुर्य्याम्। ये महः स्थ महो महान्तो वाय्वग्न्यादयो विद्यादयो वा सन्ति, वस्तेषां सकाशान्महांसि क्रियासिद्धिकराण्यहं भक्षीय। य ऊर्ज्जः स्थोर्ज्जोः रसवन्तो जलदुग्धघृतमधुफलादयः सन्ति, वस्तेषां सकाशादूर्जं रसमहं भक्षीय भुञ्जीय। ये रायस्पोषः स्थ रायस्पोषो बहुगुणसमूहयुक्ताः पदार्थाः सन्ति, वस्तेषां सकाशादहं रायस्पोषं बहुशुभगुणैः पोषं भक्षीय सेवेय॥२०॥
भावार्थः—मनुष्यैर्जगत्स्थानां पदार्थानां गुणज्ञानपुरःसरं क्रियाकौशलेनोपकारं सङ्गृह्य सर्वं सुखं भोक्तव्यमिति॥२०॥
पदार्थः—जो (अन्धः) बलवान् वृक्ष वा ओषधि आदि पदार्थ (स्थ) हैं (वः) उनके प्रकाश से मैं (अन्धः) वीर्य को पुष्ट करने वाले अन्नों को (भक्षीय) ग्रहण करूँ। जो (महः) बड़े-बड़े वायु अग्नि आदि वा विद्या आदि पदार्थ (स्थ) हैं (वः) उनसे मैं (महः) बड़ी-बड़ी क्रियाओं को सिद्धि करने वाले कर्मों का (भक्षीय) सेवन करूँ। जो (ऊर्जः) जल, दूध, घी, मिष्ट वा फल आदि रसवाले पदार्थ (स्थ) हैं (वः) उनसे मैं (ऊर्जम्) पराक्रमयुक्त रस का (भक्षीय) भोग करूँ और जो (रायस्पोषः) अनेक गुणयुक्त पदार्थ (स्थ) हैं (वः) उन चक्रवर्तिराज्य और श्री आदि पदार्थों के मैं (रायस्पोषम्) उत्तम-उत्तम धनों के भोग का (भक्षीय) सेवन करूँ॥२०॥
भावार्थः—मनुष्यों को जगत् के पदार्थों के गुणज्ञानपूर्वक क्रिया की कुशलता से उपकार को ग्रहण करके सब सुखों का भोग करना चाहिये॥२०॥