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सर्गः
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श्लोकः
|
अ
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अखण्डमूर्धन्य |
IX |
38
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अगस्त्यमृग्यो |
VIII |
82
|
अगस्त्यवाचा |
VIII |
111
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अग्रीनथाधित |
I |
32
|
अङ्गुष्ठमारभ्य |
XII |
66
|
अजगवं कुलिशा० |
III |
81
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अजनि दुःखकरः |
XI |
115 |
अज्ञात गोत्राः |
VIII |
50
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अटत गेहम् || XI || 98
अटव्यमानो महतः || IV || 91
|
अत्यन्तमेतद्भवता |
VI |
85
|
अत्रान्तरेऽपि |
IV |
93
|
अत्रापि तत्रापि |
II |
14
|
अत्रोभयत्र |
VII |
69
|
अथ गिरं गृहिंराजः |
V |
43
|
अथ जपं विरहय्य |
III |
25
|
अथ तरक्षु |
III |
18
|
अथ प्रतस्थे |
VI |
1
|
अथ. ययू |
VII |
119
|
अथ रविश्वरमाद्रिम् |
X |
97
|
अथ विचारयितुं |
XI |
107
|
|
|
सर्गः
|
श्लोकः
|
अथ सुरभिः |
X |
41
|
अथागमद्राह्मणः |
IV |
87
|
अथागमच्छिष्यः |
VII |
31
|
अथापसस्राः |
VII |
118
|
अथाब्रवीद्दिवसना |
XII |
51
|
अथाब्रवीद्वादिगणः |
XII |
37
|
अथाब्रवीत्सङ्कटम् |
VIII |
107
|
अथारुरुक्षौ |
XII |
56
|
अथाविरासीत् |
VIII |
109
|
अष्टपूर्वं |
V |
11
|
अद्यापि केरलजनाः |
IV |
41
|
अद्यापि तत्प्रकरणं |
IX |
96
|
अद्राक्षीत्सुभगा |
VII |
100
|
अद्वैतवादि |
IV |
24
|
अधिजगे निगमान् |
XI |
121
|
अधीयमानेषु |
XII |
5
|
अध्यापकान्वेदचणान् |
XII |
6
|
अनयैव दिशा |
VII |
7
|
अनाप्नुवन् दुःखम् |
VIII |
48
|
अनारतं क्षोभम् |
X |
34
|
अनीनमत्तं |
XII |
16
|
अनुदितांस्तमितम् |
VIII |
17
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अनुनीय सः |
III |
1
|
अनुयतोऽपि निवर्त्य |
III |
4
|
अनेकजन्मप्रदकर्म |
VII |
104
|
अनेकपादैः |
X |
22
|
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