महाभारतम्-04-विराटपर्व-078
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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अज्ञातवासपरिसमापनानन्तरमुपप्लाव्यनगरे वसद्भिः पाण्डवैर्दूतमुखेन समाहूतै रामकृष्णादिभिः सुभद्राभिमन्युप्रभृतिभिः सहोपप्लाव्यं प्रत्यागमनम् ।। 1 ।। तथा द्रौपदेयादिभिः सह द्रुपदादिभिरागमनम् ।। 2 ।। तत उत्तरयाऽभिमन्योरुद्वाहः ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-78-1x |
ततस्त्रयोदशे वर्षे निवृत्ते पञ्च पाण्डवाः। | 4-78-1a 4-78-1b |
दूतान्मित्रेषु सर्वेषु ज्ञातिसंबन्धिकेष्वपि। | 4-78-2a 4-78-2b |
तेषु तत्रोपविष्टेषु प्रेषितेषु ततस्ततः । | 4-78-3a 4-78-3b |
तस्मिन्काले निशम्याथ दूतवाक्यं जनार्दनः। | 4-78-4a 4-78-4b 4-78-4c |
सर्वयादवमुख्यैश्च संवृतः परवीरहा। | 4-78-5a 4-78-5b |
कृतवर्मा च हार्दिक्यो युयुधानश्च सात्यकिः। | 4-78-6a 4-78-6b 4-78-6c |
अभिमन्युमुपादाय सह मात्रा परन्तपाः। | 4-78-7a 4-78-7b |
इन्द्रसेनादयश्चैव रथैस्तैः सुसमाहितैः । | 4-78-8a 4-78-8b |
दशनागसहस्राणि हयानां द्विगुणं तथा। | 4-78-9a 4-78-9b |
वृष्ण्यन्धकाश्च शतशो भोजाश्च परमौजसः। | 4-78-10a 4-78-10b |
वासुदेवं तथाऽऽयान्तं श्रुत्वा पाण्डुसुतास्तदा। | 4-78-11a 4-78-11b |
शङ्खदुन्दुभिनिर्घोषैर्मङ्गलैश्च जनार्दनम् । | 4-78-12a 4-78-12b 4-78-12c |
पाण्डवा ऊचुः। | 4-78-13x |
तव कृष्ण प्रसादाद्वै वर्षाण्येतानि सर्वशः। | 4-78-13a 4-78-13b |
उषिताः स्मो जगन्नाथ त्वं नाथो नो जनार्दन। | 4-78-14a 4-78-14b |
वैशंपायन उवाच। | 4-78-15x |
तान्वन्दूमानान्सहसा परिष्वज्य जनार्दनः। | 4-78-15a 4-78-15b |
यथार्हं पूजयामास मुदा परमया युतः। | 4-78-16a 4-78-16b |
कृष्णा च देवकीपुत्रं ववन्दे पादयोस्तथा। | 4-78-17a 4-78-17b 4-78-17c |
मा शोकं कुरु कल्याणि धार्तराष्ट्रान्समाहितान्। | 4-78-18a 4-78-18b |
युधिष्ठिराय दास्यामि यातु ते मानसो ज्वरः। | 4-78-19a 4-78-19b |
सत्यमेतद्वचो मह्यमवैहि त्वमनिन्दिते। | 4-78-20a 4-78-20b 4-78-20c |
काशिराजश्च शैब्यश्च भजमानौ युधिष्ठिरम्। | 4-78-21a 4-78-21b |
अक्षौहिणीभिः पाञ्चालस्तिसृभिश्च महाबलः। | 4-78-22a 4-78-22b |
धृष्टद्युम्नश्च दुर्धर्षः सर्वशस्त्रभृतांवरः। | 4-78-23a 4-78-23b |
ततः शतसहस्राणि प्रयुतान्यर्बुदानि च। | 4-78-24a 4-78-24b |
समुद्रमिव धर्मान्ते स्रोतःश्रेष्ठाः पृथक्पृथक्। | 4-78-25a 4-78-25b 4-78-25c |
तानागतानभिप्रेक्ष्य पार्थो ज्ञानभृतां वरः। | 4-78-26a 4-78-26b |
पारिबर्हं ददौ कृष्णः पाण्डवानां महात्मनाम्। | 4-78-27a 4-78-27b |
राजानो राजपुत्राश्च निवृत्ते समये तथा। | 4-78-28a 4-78-28b 4-78-28c |
सर्वेषु समवेतेषु राजभिर्वृष्णिभिः सह। | 4-78-29a 4-78-29b |
ततः शङ्खा मृदङ्गाश्च गोमुखा डिण्डिमास्तदा। | 4-78-30a 4-78-30b |
उच्चावचान्मृगाञ्जघ्नुर्मेध्यांश्च शतशस्तथा। | 4-78-31a 4-78-31b |
गायनाख्यानशीलाश्च नटा वैतालिकास्तथा। | 4-78-32a 4-78-32b |
स्त्रियो वृद्धास्तरुण्यश्च उत्सवे तस्य मङ्गले। | 4-78-33a 4-78-33b |
सुदेष्णां तु पुरस्कृत्य मत्स्यानामपि च स्त्रियः। | 4-78-34a 4-78-34b |
वर्णोपपन्नास्ता नार्यो रूपवन्तयः स्वलंकृताः। | 4-78-35a 4-78-35b |
परिवार्योत्तरां श्लाघ्यां राजपुत्रीमलंकृताम्। | 4-78-36a 4-78-36b |
भृङ्गारुं तु समादाय सौवर्णं जलपूरितम्। | 4-78-37a 4-78-37b 4-78-37c |
तां प्रत्यगृह्णाकौन्तेयः सुतस्यार्थे महामनाः । | 4-78-38a 4-78-38b |
तत्रातिष्ठद्गृहीत्वा तु रूपमिन्द्रास्य धारयन्। | 4-78-39a 4-78-39b |
द्रुपदश्च विराटश्च शिखण्डी च महाबलः । | 4-78-40a 4-78-40b |
सप्तैतेऽक्षौहिणीपाला यज्वानो भूरिदक्षिणाः । | 4-78-41a 4-78-41b |
तत्रस्थायां तु सेनायां मात्स्यो धर्मभृतांवरः । | 4-78-42a 4-78-42b |
प्रतिगृह्योत्तरां पार्थः पुरस्कृत्य जनार्दनम् । | 4-78-43a 4-78-43b |
ततो विवाहो ववृधे स्फीतः सर्वगुणान्वितः । | 4-78-44a 4-78-44b |
धौम्यः शिष्यैः परिवृतो जुहावाग्नौ विधानतः । | 4-78-45a 4-78-45b |
ततः पार्थाय संहृष्टो मात्स्यराजो धनं महत्। | 4-78-46a 4-78-46b |
द्वे च नागशते मुख्ये धनं बहुविधं तदा। | 4-78-47a 4-78-47b |
पारिबर्हं च पार्थेभ्यः प्रददौ मत्स्यपुङ्गवः । | 4-78-48a 4-78-48b |
कृते विवाहे तु तदा धर्मपुत्रो युधिष्ठिरः। | 4-78-49a 4-78-49b |
गोसहस्राणि वस्त्राणि रत्नानि विविधानि च। | 4-78-50a 4-78-50b |
नागरान्प्रीतिभिर्दिव्यैस्तर्पयामास भूपतिः ।। | 4-78-51a |
तन्महोत्सवसंकाशं हृष्टपुष्टजनाकुलम्। | 4-78-52a 4-78-52b |
पुरोहितैरमात्यैश्च पौरैर्जानपदैः सह। | 4-78-53a 4-78-53b 4-78-53c |
जनमेजय उवाच। | 4-78-54x |
वृत्ते विवाहे हृष्टात्मा यदुवाच युधिष्ठिरः। | 4-78-54a 4-78-54b |
।। इति श्रीमन्महाभारते शतसाहस्त्रिकायां संहितायां वैयासिक्यां विराटपर्वणि वैवाहिकपर्वणि अष्टसप्ततितमोऽध्यायः ।। |
।। वैवाहिकपर्व समाप्तम् ।। 5 ।। ।। समाप्तं च विराटपर्व ।। 4 ।।
अतः परमुद्योगपर्व भविष्यति। तस्यायमाद्यः श्लोकः । कृत्वा विवाहं तु कुरुप्रवीरा। स्तदाऽभिमन्योर्मुदिताः सपक्षाः। विश्रम्य रात्रावुषसि प्रतीताः। सभां विराटस्य ततोऽभिजग्मुः ।।
विराटपर्व-077 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व |