महाभारतम्-04-विराटपर्व-075
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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अर्जुनेन विराटप्रश्नाद्वललादीनां भीमसेनादित्वकथनम् ।। 1 ।। उत्तरेण विराटंप्रति तत्तल्लक्षणाभिधानपूर्वकं युधिष्ठिरादीनां निर्देशः ।। 2 ।। तथाऽर्जुनपराक्रमवर्णनम् ।। 3 ।। ततो विराटेन सप्रणामं युधिष्ठिरादिप्रसादनम् ।। 4 ।।
विराट उवाच। | 4-75-1x |
यद्येष राजा कौरव्यः कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। | 4-75-1a 4-75-1b |
नकुलः सहदेवो वा द्रौपदी वा यशस्विनी । | 4-75-2a 4-75-2b |
अर्जुन उवाच। | 4-75-3x |
य एष बललोऽभूत्ते सूपकारश्च ते नृप। | 4-75-3a 4-75-3b |
एष क्रोधवशान्हत्वा पर्वते गन्धमादने। | 4-75-4a 4-75-4b |
गन्धर्व एष वै हन्ता कीचकानां दुरात्मनाम्। | 4-75-5a 4-75-5b |
हिडिम्बं च बकं चैव किर्मीरं च जटासुरम्। | 4-75-6a 4-75-6b |
यश्चासीदश्वबन्धस्ते नकुलोऽयं परन्तप। | 4-75-7a 4-75-7b |
शृङ्गारवेषारणौ रूपवन्तौ मनस्विनौ । | 4-75-8a 4-75-8b |
एषा पद्मपलाशाक्षी सुमध्या चारुहासिनी । | 4-75-9a 4-75-9b |
द्रुपदस्य प्रिया पुत्री धृष्ट्युम्नस्य चानुजा । | 4-75-10a 4-75-10b |
भीम उवाच। | 4-75-11x |
अस्त्रज्ञो दुर्लभः कश्चित्केवलं पृथिवीमनु। | 4-75-11a 4-75-11b |
एतेन खाण्डवं तस्य ह्यकामस्य शतक्रतोः। | 4-75-12a 4-75-12b |
वर्षं च शरवर्षेण वारितं दुर्जयेन वै। | 4-75-13a 4-75-13b |
स्त्रीवेषं कृतवानेष तव राजन्निवेशने। | 4-75-14a 4-75-14b |
उषिताःस्म सुखं सर्वे तव राजन्निवेशने। | 4-75-15a 4-75-15b |
वैशंपायन उवाच। | 4-75-16x |
यदाऽर्जुनेन ते वीराः कथिताः पञ्च पाण्डवाः। | 4-75-16a 4-75-16b |
उत्तर उवाच। | 4-75-17x |
य एष जाम्बूनदशुद्धगौर- | 4-75-17a 4-75-17b 4-75-17c 4-75-17d |
अयं पुनर्मत्तगजेन्द्रगामी | 4-75-18a 4-75-18b 4-75-18c 4-75-18d |
यस्त्वेव पार्श्वेऽस्य महाधनुष्मा- | 4-75-19a 4-75-19b 4-75-19c 4-75-19d |
राज्ञः समीपे पुरुषोत्तमौ तु | 4-75-20a 4-75-20b 4-75-20c 4-75-20d |
आभ्यां तु पार्श्वे कनकोत्तमाङ्गी | 4-75-21a 4-75-21b 4-75-21c 4-75-21d |
वैशंपायन उवाच। | 4-75-22x |
एवं निवेद्य तान्पार्थान्पाण्डवान्पञ्च भूपतेः। | 4-75-22a 4-75-22b |
अयं स द्विषतां मध्ये मृगाणामिव केसरी। | 4-75-23a 4-75-23b |
अनेन विद्धा मातङ्गा महामेघोपमास्तदा। | 4-75-24a 4-75-24b |
अनेन विजिता गावो निर्जिताः कुरवो युधि। | 4-75-25a 4-75-25b |
जायते रोमर्षो मे संस्मृत्यास्य धनुर्ध्वनिम्। | 4-75-26a 4-75-26b |
नाददानं शरान्घोरान्न मुञ्चन्तं शरोत्करान्। | 4-75-27a 4-75-27b |
एतद्धनुःप्रमुक्ताश्च शराः पुङ्खानुपुङ्खिनः । | 4-75-28a 4-75-28b |
तीक्ष्णनाराचसंकृत्तशिरोबाहूरुवक्षसाम्। | 4-75-29a 4-75-29b |
अनेन तटिनी तत्र शोणिताम्बुप्रवाहिनी। | 4-75-30a 4-75-30b 4-75-30c |
अनेन राजन्वीरेण भीष्मद्रोणमुखा रथाः। | 4-75-31a 4-75-31b |
अयं भीतं द्रवन्तं मां देवपुत्रो न्यवारयत्। | 4-75-32a 4-75-32b |
वैशंपायन उवाच। | 4-75-33x |
तस्य तद्वचनं श्रुत्वा मात्स्यराजः प्रतापवान्। | 4-75-33a 4-75-33b |
धर्मराजं नमस्कृत्य राजा राज्येऽभिषेचितम्। | 4-75-34a 4-75-34b |
अविभक्तं भवद्भिर्मे न सन्देहो नराधिपाः ।। | 4-75-36c |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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