महाभारतम्-04-विराटपर्व-074
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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कुरुविजयदिनात्परेद्युः प्रभाते युधिष्ठिरादिभी राजलक्षणधारणेन सिंहासनादिषूपवेशनम् ।। 1 ।। ततः सहोत्तरेण सभामागतवता विराटेन युधिष्ठिरंप्रति राजासनोपवेशनाक्षेपः ।। 2 ।। अर्जुनेन तंप्रति युधिष्ठिरस्य याथातथ्यकथनेन तदीयगुणानुवर्णनपूर्वकं तस्य राजासनारोहणार्हत्वप्रतिपादनम् ।। 3 ।।
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वैशंपायन उवाच। | 4-74-1x |
ततो द्वितीये दिवसे भ्रातरः पञ्च पाण्डवाः। | 4-74-1a 4-74-1b |
युधिष्ठिरं पुरस्कृत्य सर्वाभरणभूषिताः। | 4-74-2a 4-74-2b |
विराटस्य सभां प्राप्य भूमिपालासनेषु ते । | 4-74-3a 4-74-3b |
तेषु तत्रोपविष्टेषु विराटः पृथिवीपतिः। | 4-74-4a 4-74-4b |
गोसुवर्णादिकं दत्त्वा ब्राह्मणेभ्यो यथाविधि । | 4-74-5a 4-74-5b |
स तान्दृष्ट्वा महासत्वाञ्ज्वलतः पावकानिव। | 4-74-6a 4-74-6b |
किमिदं को विधिस्त्वेष भयार्त इव पार्थिवः। | 4-74-7a 4-74-7b |
अथ मात्स्योऽब्रवीत्कङ्खं देवराजमिव स्थितम् । | 4-74-8a 4-74-8b |
स किलाक्षनिवापस्त्वं सभास्तारो मया कृतः। | 4-74-9a 4-74-9b |
वैशंपायन उवाच। | 4-74-10x |
परिहासेच्छया राज्ञो विराटस्य निशम्य तत्। | 4-74-10a 4-74-10b |
इन्द्रस्यार्धासनं राजन्नयमारोढुमर्हति। | 4-74-11a 4-74-11b |
एष विग्रहवान्धर्म एष वीर्यवतां वरः। | 4-74-12a 4-74-12b |
एषोऽस्त्रं विविधं वेत्ति त्रैलोक्ये सचराचरे। | 4-74-13a 4-74-13b |
न देवा नासुराः केचिन्न मनुष्या न राक्षसाः। | 4-74-14a 4-74-14b |
दीर्घदर्शी महातेजाः पारैजानपदप्रियः। | 4-74-15a 4-74-15b |
महर्षिकल्पो राजर्षिः सर्वलोकेषु विश्रुतः । | 4-74-16a 4-74-16b |
धनैश्च संचयैश्चैव शक्रवैश्रवणोपमः । | 4-74-17a 4-74-17b 4-74-17c |
अयं कुरूणामृषभः कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः । | 4-74-18a 4-74-18b |
संसरन्ति दिशः सर्वा यशसोस्य गभस्तयः । | 4-74-19a 4-74-19b |
एनं त्रिंशत्सहस्राणि कुञ्जराणां तरस्विनाम् । | 4-74-20a 4-74-20b |
त्रिंशच्चैव सहस्राणि रथानां रथिनां वरम्। | 4-74-21a 4-74-21b |
वाजिनां च शतं राजन्त्सहस्राण्ययुतानि च। | 4-74-22a 4-74-22b 4-74-22c |
इमं नित्यपुमातिष्ठन्कुरवः किंकरास्तदा। | 4-74-23a 4-74-23b |
एष सर्वान्महीपालान्करमाहारयत्तदा। | 4-74-24a 4-74-24b |
अष्टाशीतिसहस्राणि स्नातकानां महात्मनाम्। | 4-74-25a 4-74-25b |
एष वृद्धाननाथांश्च व्यङ्गान्पङ्गूश्चं वामनान् । | 4-74-26a 4-74-26b |
एष धर्मे दमे चैव दाने सत्ये रतः सदा। | 4-74-27a 4-74-27b |
श्रीमत्संपत्प्रभावेन तप्यते यस्य कौरवः । | 4-74-28a 4-74-28b |
गुणा न शक्याः संख्यातुमेतस्यैव नरेश्वर। | 4-74-29a 4-74-29b |
एवं युक्तो महाराजा पाण्डवः पुरुषर्षभः । | 4-74-30a 4-74-30b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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