महाभारतम्-04-विराटपर्व-068
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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अर्जुनेनोत्तरंप्रति युधिष्ठिरादितत्वप्रकाशनप्रतिषेधनम् ।। 1 ।। तथा श्मशानमेत्य शमीतरौ गाण्डिवादिनिधानपूर्वकं पुनर्बृहन्नलावेषपरिग्रहेण सारथ्यकरणम् ।। 2 ।। उत्तरेणार्जुनचोदनया स्वजयोद्धोषणाय नगरंप्रति दूतप्रेषणम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-68-1x |
ततो विजित्य संग्रामे कुरुगोवृषभेक्षणः। | 4-68-1a 4-68-1b |
मतषु च प्रभग्नेषु धार्तराष्ट्रेषु सर्वशः। | 4-68-2a 4-68-2b 4-68-2c |
मुक्तकेशाः प्रदृश्यन्ते स्थिताः प्राञ्जलयस्तदा। | 4-68-3a 4-68-3b 4-68-3c |
प्राणानन्तर्मनोयातान्प्रयाचिष्यामहे वयम्। | 4-68-4a 4-68-4b |
अर्जुन उवाच। | 4-68-5x |
अनाथान्दुःखितान्दीनान्कृशान्वृद्धान्पराजितान्। | 4-68-5a 4-68-5b |
भवन्तो यान्तु विस्रब्धा निर्भया अमृता यथा। | 4-68-6a 4-68-6b |
तस्य तामभयां वाचं श्रुत्वा योधाः समागताः । | 4-68-7a 4-68-7b |
ततो निवृत्ताः कुरवो यग्नाश्च दिवमास्थिताः । | 4-68-8a 4-68-8b |
एवं दत्ताभयास्तेन ततो याताः कुरून्प्रति ।। | 4-68-9a |
स कर्म कृत्वा परमार्यकर्मा निहत्य शत्रून्द्विषतां निहन्ता। | 4-68-10a 4-68-10b |
तं मात्स्यपुत्रं द्विषतां निहन्ता वचोऽब्रवीत्संपरिगृह्य राजन् ।। | 4-68-11a |
पितुः सकाशे तव तात सर्वे वसन्ति पार्था विदितं त्वयेति। | 4-68-12a 4-68-12b |
मया जिता सा ध्वजिनी कुरूणां मया हि गावो विजिता द्विषद्भ्यः । | 4-68-13a 4-68-13b |
र उवाच । | 4-68-14x |
यत्ते कृतं कर्म न वारणीयं तत्कर्म कर्तुं मम नास्ति शक्तिः। | 4-68-14a 4-68-14b |
पायन उवाच। | 4-68-15x |
स शत्रुसेनां तरसा विजित्य आच्छिद्य सर्वं तु धनं कुरूणाम्। | 4-68-15a 4-68-15b |
ततः स वह्निप्रतिमो महाकपिः सहैव भूतैर्दिवमुत्पपात। | 4-68-16a 4-68-16b |
निधाय तच्चायुधमाजिमर्दनः कुरूत्तमानामिषुधीन्ध्वजांस्तथा। | 4-68-17a 4-68-17b |
पार्थश्च कृत्वा परमार्यकर्म निहत्य शत्रून्द्विषतां निहन्ता। | 4-68-18a 4-68-18b 4-68-18c |
वैशंपायन उवाच। | 4-68-19x |
ततो निवृत्ताः कुरवः प्रभग्नाः शममास्थिताः । | 4-68-19a 4-68-19b |
पन्थानमुपसंगम्य फल्गुनो वाक्यमब्रवीत्। | 4-68-20a 4-68-20b 4-68-20c |
ततोऽपराह्णे यास्यामो विराटनगरं प्रति। | 4-68-21a 4-68-21b |
गच्छन्तु त्वरितं दूता गोपालाः प्रेषितास्त्वया। | 4-68-22a 4-68-22b |
उत्तरस्त्वरमाणोऽथ दूतानाज्ञापयत्ततः। | 4-68-23a 4-68-23b |
मया जिता सा ध्वजिनी कुरुणं | 4-68-24a 4-68-24b 4-68-24c 4-68-24d |
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