महाभारतम्-04-विराटपर्व-031
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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द्रोणेन दुर्योधनंप्रति पाण्डवानां धार्मिकत्वादिगुणशालितया विनाशाभावनिर्धारणेन तदन्वेषणविधानम् ।। 1 ।।
भीष्मेण पाण्डवावासदेशस्य लक्षणाभिधानपूर्वकं तेषां दुर्ज्ञेयत्वस्यापि कथनेन तैः सह सन्धिविधानम् ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-31-1x |
अथाऽब्रवीत्सभामध्ये द्रोणः सूक्ष्मार्थदर्शिवान्। | 4-31-1a 4-31-1b |
शूराश्च कृतविद्याश्च बुद्धिमन्तो जितेन्द्रियाः। | 4-31-2a 4-31-2b |
नीतिधर्मार्थतत्वज्ञं पितृवच्च समाहितम्। | 4-31-3a 4-31-3b |
अनुव्रता महात्मानो भ्रातरो भ्रातरं प्रियम् । | 4-31-4a 4-31-4b |
तेषां तथाविधेयानां निभृतानां महात्मनाम् । | 4-31-5a 4-31-5b |
तस्माद्यत्नात्परीक्षध्वं न तावत्समयो गतः। | 4-31-6a 4-31-6b |
चिन्त्यतां चैव यत्कार्यं तच्च क्षिप्रमकालिकम् । | 4-31-7a 4-31-7b |
यथा च पाण्डुपुत्राणां सर्वार्थेषु धृतात्मनाम् । | 4-31-8a 4-31-8b |
सर्वोपायैर्यतस्व त्वं यथा पश्यसि पाण्डवान् । | 4-31-9a 4-31-9b |
शुद्धात्मा मानवान्पार्थः सत्यवान्नीतिमाञ्शुचिः । | 4-31-10a 4-31-10b |
तस्माद्यत्नश्च क्रियतां भूयश्च मृगयामहे। | 4-31-11a 4-31-11b |
विविधैस्तत्परैः सम्यङ्विर्भीकैस्तज्ज्ञसंमतैः । | 4-31-12a 4-31-12b |
ततः शान्तनवो धीमान्भारतानां पितामहः । | 4-31-13a 4-31-13b |
तस्मिन्नुपरते वाक्ये आचार्यस्य महात्मनः । | 4-31-14a 4-31-14b |
युधिष्ठिरे समायुक्तां धर्मज्ञे धर्मसंहिताम्। | 4-31-15a 4-31-15b |
असत्सु दुर्लभां नित्यं सतां चाभिमतां सद। | 4-31-16a 4-31-16b |
यथा नो ब्राह्मणोऽवादीदाचार्यः सर्वधर्मवित्। | 4-31-17a 4-31-17b |
सर्वलक्षणसंपन्नाः साधुवृत्तसमन्विताः। | 4-31-18a 4-31-18b |
समयं समयज्ञास्ते पालयन्तः शुभव्रताः। | 4-31-19a 4-31-19b |
तपसा चैव गुप्तास्ते स्ववीर्येण च पाण्डवाः। | 4-31-20a 4-31-20b |
क्षत्रधर्मरता नित्यं केशवानुगताः सदा। | 4-31-21a 4-31-21b |
तत्र बुद्धिं प्रवक्ष्यामि पाण्डवान्वेषणे शृणु। | 4-31-22a 4-31-22b |
यत्तु शक्यमिहास्माभिस्तान्वै संचिन्त्य पाण्डवान्। | 4-31-23a 4-31-23b |
न त्वियं साधु वक्तव्या तस्य नीतिः कथंचन । | 4-31-24a 4-31-24b |
अयुक्तं तु मया वक्तुं तुल्या मे कुरुपाण्डवाः। | 4-31-25a 4-31-25b 4-31-25c |
अवश्यं तु नियुक्तेन सभामध्ये विवक्षता। | 4-31-26a 4-31-26b |
यत्र नाहं तथा मन्ये यथाऽन्ये मेनिरे जनाः। | 4-31-27a 4-31-27b |
[भ्रातृभिः सहितो वीरैः कृष्णया च महायशाः। | 4-31-28a 4-31-28b |
पाण्डवो निकृतः पूर्वं यथावद्विदितं तव। | 4-31-29a 4-31-29b 4-31-29c |
वर्षमेकं सुसंच्छन्नमुष्य वासमनुत्तमम्। | 4-31-30a 4-31-30b |
सोदरैः सहितं वीरं द्रौपद्या च परंतप। | 4-31-31a 4-31-31b |
यस्मिन्स राजा वसति च्छन्नः सत्त्वभृतांवरः। | 4-31-32a 4-31-32b |
नाधयो हि महाराज न व्याधिः क्षत्रियर्षभ]। | 4-31-33a 4-31-33b |
दानशीलो वदान्यश्च निभृतो ह्रीनिषेवकः। | 4-31-34a 4-31-34b 4-31-34c |
नासूयको न चापीर्ष्युर्नाभिमानी न मत्सरी। | 4-31-35a 4-31-35b |
ब्रह्मघोषाश्च भूयांसः पुण्यशब्दास्तथैव च। | 4-31-36a 4-31-36b |
सदा च तत्र पर्जन्यः सम्यग्वर्षी न संशयः । | 4-31-37a 4-31-37b |
रसवन्ति च धान्यानि गुणवन्ति फलानि च। | 4-31-38a 4-31-38b |
वायुश्च सुखसंस्पर्शो यत्र राजा युधिष्ठिरः । | 4-31-39a 4-31-39b |
न चोरा न च दण्डाश्च न च बाधा भवन्त्युत। | 4-31-40a 4-31-40b |
भयं च नाविशेत्तत्र निष्प्रतीपं च दर्शनम्। | 4-31-41a 4-31-41b |
पयांसि दधिसर्पीषि रसवन्ति हितानि च । | 4-31-42a 4-31-42b |
गुणवन्ति च पानानि भोज्यानि विविधानि च। | 4-31-43a 4-31-43b |
रसाः स्पर्शाश्च गन्धाश्च शब्दाश्चापि गुणान्विताः। | 4-31-44a 4-31-44b |
धर्माश्च तत्र सर्वैस्तु सेविताश्च द्विजातिभिः। | 4-31-45a 4-31-45b 4-31-45c |
संप्रीतिमाञ्जनस्तत्र संतुष्टः शुचिरव्ययः। | 4-31-46a 4-31-46b |
इष्टदानमहोत्साहा नित्यं धर्मपरायणाः । | 4-31-47a 4-31-47b |
शुभत्विषः शुभेच्छाश्च नित्यतुष्टाः श्रियाऽन्विताः । | 4-31-48a 4-31-48b |
नित्योत्सवप्रमुदितो नित्यहृष्टः श्रिया वृतः। | 4-31-49a 4-31-49b |
धर्मज्ञः स तु दुर्ज्ञेयः सर्वज्ञैश्च द्विजातिभिः। | 4-31-50a 4-31-50b |
यस्मिन्सत्यं धृतिर्दानं परा शान्तिर्ध्रुवा क्षमा। | 4-31-51a 4-31-51b |
तस्मान्निवासः पार्थानां चिन्त्यतां यद्ब्रवीमि वः । | 4-31-52a 4-31-52b |
एवमेतत्तु संचिन्त्य यत्कृत्यं साधु मन्यसे। | 4-31-53a 4-31-53b 4-31-53c |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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