महाभारतम्-04-विराटपर्व-029
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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पाण्डवान्वेषणाय क्रमेण विराटपुरमागतैश्चारैर्हास्तिनपुरमेत्य दुर्योधनंप्रति स्वेषां पाण्डवानवगतिनिवेदनपूर्वकं कीचकवधनिवेदनम् ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-29-1x |
कीचके तु हते राजा विराटः परवीरहा। | 4-29-1a 4-29-1b |
कीचकस्य वधं घोरं सानुजस्य विशांपते । | 4-29-2a 4-29-2b |
तस्मिन्पुरे जनपदे जजल्पुश्चापि सर्वशः । | 4-29-3a 4-29-3b |
सांपराये परिक्रुष्टो बलवान्दुर्जयो रणे। | 4-29-4a 4-29-4b 4-29-4c |
इत्यजल्पन्महाराज कीचकस्य विनाशनम् । | 4-29-5a 4-29-5b |
अथ वैः धार्तराष्ट्रेण प्रयुक्ता ये बहिश्चराः । | 4-29-6a 4-29-6b |
संविधाय यथाऽऽदिष्टं यथादेशं प्रदर्शकाः । | 4-29-7a 4-29-7b |
आगम्य हास्तिनपुरं धार्तराष्ट्रमरिन्दमम्। | 4-29-8a 4-29-8b |
द्रोणकर्णकृपैः सार्धं भीष्मेण च महात्मना। | 4-29-9a 4-29-9b |
प्रणम्य शिरसा भूमौ वर्धयित्वा जयाशिषा। | 4-29-10a 4-29-10b |
उपास्यमानं सचिवैर्मरुद्भिरिव वासवम् । | 4-29-11a 4-29-11b |
अनेकैरपि राजन्यैः सेवितं सपरिच्छदैः। | 4-29-12a 4-29-12b |
कृतोऽस्माभिः परो यत्नस्तेषामन्वेषणे सदा । | 4-29-13a 4-29-13b |
निर्जने व्यालसंकीर्णे नानाभ्रमरसंकुले । | 4-29-14a 4-29-14b |
न च विद्मो गता येन पार्थाः सुदृढविक्रमाः । | 4-29-15a 4-29-15b |
गिरिकूटेषु तुङ्गेषु नानाजनपदेषु च। | 4-29-16a 4-29-16b |
नरेन्द्र सहसा नष्टान्नैव विद्म च पाण्डवान्। | 4-29-17a 4-29-17b |
गिरीणां कूटकुञ्जेषु कन्दरोदरसानुषु। | 4-29-18a 4-29-18b |
गह्वरेषु च दुर्गेषु ग्रामेषू पवनेषु च। | 4-29-19a 4-29-19b 4-29-19c |
वत्मन्यन्विच्छमानास्तु रथानां रथिसत्तम। | 4-29-20a 4-29-20b |
मृगयित्वा यथान्यायं विदितार्थाश्च तत्वतः। | 4-29-21a 4-29-21b |
न तत्र कृष्णा राजेन्द्र पाण्डवाश्च महाव्रताः। | 4-29-22a 4-29-22b |
निर्वृतो भव नष्टास्ते स्वस्थो भव परंतप । | 4-29-23a 4-29-23b |
सर्वा च पृथिवी कृत्स्ना सशैलवनकानना । | 4-29-24a 4-29-24b 4-29-24c |
पुनः शाधि मनुष्येन्द्र अत ऊर्ध्वं विशांपते। | 4-29-25a 4-29-25b |
इमां च नः प्रियां वीर वाचं भद्रवतीं शृणु ।। 26 ।। | 4-29-26a |
येन त्रिगर्ता निहता बलेन बहुशो नृप। | 4-29-27a 4-29-27b 4-29-27c |
स्यालो राज्ञो विराटस्य सेनापतिरुदारधीः। | 4-29-28a 4-29-28b |
उत्साहवान्महावीर्यो नीतिमान्बलवानपि । | 4-29-29a 4-29-29b |
प्रजारक्षणदक्षश्च शत्रुग्रहणशक्तिमान्। | 4-29-30a 4-29-30b |
नरनारीमनोह्लादी धीरो वाग्मी रणप्रियः। | 4-29-31a 4-29-31b |
स हतो निशि गन्धैर्वः स्त्रीनिमित्तं नराधिप। | 4-29-32a 4-29-32b 4-29-32c |
गन्धर्वाणां च महिषी काचिदस्ति नितम्बिनी। | 4-29-33a 4-29-33b |
इत्येवं श्रुतमस्माभिर्गन्धर्वैर्निहतो निशि ।। 34 ।। | 4-29-34a |
बान्धवैर्बहुभिः सार्धं कीचको निहतो यतः। | 4-29-35a 4-29-35b 4-29-35c |
निहतो निशि गन्धर्वैर्दुष्टात्मा भ्रातृभिः सह । | 4-29-36a 4-29-36b |
प्रियमेतदुपश्रुत्य शत्रूणां च पराभवम् । | 4-29-37a 4-29-37b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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