महाभारतम्-04-विराटपर्व-002
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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युधिष्ठिरेण भ्रातृभिः सह मन्त्रणेन विराटनगरे निवासनिर्धारणम् ।। 1 ।।
तथा स्वस्य यतिवेपपरिग्रहेण विराटसभास्तारीभवनकथनम् ।। 2 ।।
वैशंपायन उवाच । | 4-2-1x |
निवृत्तवनवासास्ते सत्यसन्धा मनस्विनः। | 4-2-1a 4-2-1b |
अथाब्रवीद्धर्मराजः कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। | 4-2-2a 4-2-2b |
द्वादशेमानि वर्षाणि राज्याद्विप्रोषिता वयम्। | 4-2-3a 4-2-3b 4-2-3c |
त्रयोदशमिदं प्राप्तं क्वनु वत्स्यामहेऽर्जुन। | 4-2-4a 4-2-4b |
अर्जुन उवाच। | 4-2-5x |
तस्यैव वरदानेन धर्मस्य मनुजाधिप। | 4-2-5a 4-2-5b |
यानि राष्ट्राणि वासाय कीर्तयिष्यामि कानिचित् । | 4-2-6a 4-2-6b |
रम्या जनपदाः सन्ति बहवस्त्वभितः कुरून् । | 4-2-7a 4-2-7b 4-2-7c |
विराटनगरं चापि श्रूयते शत्रुसूदन । | 4-2-8a 4-2-8b |
नानाराष्ट्राणि चान्यानि श्रूयन्ते सुबहूनि च । | 4-2-9a 4-2-9b |
कतमस्मिञ्जनपदे महाराज निवत्स्यसि । | 4-2-10a 4-2-10b |
युधिष्ठिर उवाच। | 4-2-11x |
एवमेतन्महाबाहो यथा स भगवान्प्रभुः। | 4-2-11a 4-2-11b |
अवश्यं त्वेव वासार्थं रमणीयं शिवं सुखम्। | 4-2-12a 4-2-12b |
मात्स्यो विराटो बलवानभिरक्तोथ पाण्डवान्। | 4-2-13a 4-2-13b |
गुणवाँल्लोकविख्यातो दृढभक्तिर्जितेन्द्रियः । | 4-2-14a 4-2-14b |
विराटनगरे तात मासान्द्वादशसंमितान्। | 4-2-15a 4-2-15b |
यानियानि च कर्माणि तस्य शक्ष्यामहे वयम्। | 4-2-16a 4-2-16b |
अर्जुन उवाच ।। | 4-2-16x |
नरदेव कथं कर्म तस्य राष्ट्रे करिष्यसि । | 4-2-17a 4-2-17b |
अक्लिष्टवेषधारी च धार्मिको ह्यनसूयकः । | 4-2-18a 4-2-18b |
सत्यवागसि याज्ञीको लोभक्रोधविवर्जितः । | 4-2-19a 4-2-19b |
स राजंस्तपसा क्लिष्टः कथं तस्य करिष्यसि। | 4-2-20a 4-2-20b 4-2-20c |
वैशंपायन उवाच। | 4-2-21x |
अर्जुनेनैवमुक्तस्तु प्रत्युवाच युधिष्ठिरः । | 4-2-21a 4-2-21b |
विराटं समनुप्राप्य राजानं मात्स्यनन्दनम् । | 4-2-22a 4-2-22b |
कङ्को नाम ब्रुवाणोऽहं मताक्षः साधुदेविता। | 4-2-23a 4-2-23b |
कृष्णाक्षाँल्लोहिताक्षांश्च निवप्स्यामि मनोरमान्। | 4-2-24a 4-2-24b |
लोहिताश्चाश्मगर्भाश्च सन्ति तात धनानि मे। | 4-2-25a 4-2-25b |
अप्येतान्पाणिना स्पृष्ट्वा संप्रहृष्यन्ति मानवाः ।। 26 ।। | 4-2-26a |
तान्विकीर्य समे देशे रमणीये विपांसुले। | 4-2-27a 4-2-27b |
कङ्को नाम्ना परिव्राट् च विराटस्य सभासदः। | 4-2-28a 4-2-28b 4-2-28c |
धर्मकामार्थमोक्षेषु नीतिशास्त्रेषु पारगः। | 4-2-29a 4-2-29b |
आसं युधिष्ठिरस्याहं पुरा प्राणसमः सखा। | 4-2-30a 4-2-30b |
विराटनगरे छन्न एवं युक्तः सदा वसे। | 4-2-31a 4-2-31b |
इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
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