महाभारतम्-04-विराटपर्व-001
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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युधिष्ठिरेण ब्राह्मणाय मृगापहृतारणिभाण्डप्रत्यर्पणम् ।। 1 ।।
धौम्येन ब्राह्मणमध्ये दुर्योधनापनयादिकथनेन शोचतो युधिष्ठिरस्य दुःखानुभवविषये देवादिनिदर्शनप्रदर्शनेन परिसान्त्वनम् ।। 2 ।।
पाण्डवैः स्वसहचरब्राह्मणाभ्यनुज्ञानसंपादनेन तद्वितर्जनपूर्वकं धौम्येनसह मन्त्राय क्वचिदुपवेशनम् ।। 3 ।।
।। श्रीवेदव्यासाय नमः ।। | 4-1-1x |
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमम्। | 4-1-1a 4-1-1b |
।। जनमेजय उवाच । | 4-1-2x |
कथं विराटनगरे मम पूर्वपितामहाः । | 4-1-1c 4-1-1d |
पतिव्रता महाभागा सततं सुखभागिनी । | 4-1-2a 4-1-2b |
ते च ब्राह्मणमुख्याश्च सूतपौरोगवैः सह। | 4-1-3a 4-1-3b |
वैशंपायन उवाच। | 4-1-4x |
यथा विराटनगरे तव पूर्वपितामहाः । | 4-1-4a 4-1-4b |
तथा स तान्वराँल्लब्ध्वा धर्मराजो युधिष्ठिरः। | 4-1-5a 4-1-5b |
कथयित्वा च तत्सर्वं ब्राह्मणेभ्यो युधिष्ठिरः। | 4-1-6a 4-1-6b |
ततो युधिष्ठिरो राजा कुन्तीपुत्रो दृढव्रतः। | 4-1-7a 4-1-7b |
द्वादशेमानि वर्षाणि राष्ट्राद्विप्रोषिता वयम्। | 4-1-8a 4-1-8b |
उषिताश्च वने वासं यथा द्वादश वत्सरान्। | 4-1-9a 4-1-9b |
वैशंपायन उवाच। | 4-1-10x |
धर्मेण तेऽभ्यनुज्ञाताः पाण्डवाः सत्यविक्रमाः। | 4-1-10a 4-1-10b |
उपोपविश्य विद्वांसः स्नातकाः संशितव्रताः । | 4-1-11a 4-1-11b 4-1-11c |
तानब्रुवन्महात्मानो हृष्टाः प्राञ्जलयः स्थिताः । | 4-1-12a 4-1-12b |
विदितं भवतां सर्वं धार्तराष्ट्रैर्यथा वयम् । | 4-1-13a 4-1-13b |
उषिताश्च वने वासं यथा द्वादशवत्सरान् । | 4-1-14a 4-1-14b |
अज्ञातवाससमयं शेषं वर्षं त्रयोदशम्। | 4-1-15a 4-1-15b |
सुयोधनश्च दुष्टात्मा कर्णश्च सहसौबलः । | 4-1-16a 4-1-16b |
युक्तचाराश्च यत्ताश्च दाये स्वस्य जनस्य च । | 4-1-17a 4-1-17b |
अपि नस्तद्भवेद्भूयो यद्वयं ब्राह्मणैः सह। | 4-1-18a 4-1-18b |
इत्युक्त्वा दुःखशोकार्तः शुचिर्धर्मसुतस्तदा। | 4-1-19a 4-1-19b |
तमथाश्वासयन्सर्वे ब्राह्मणा भ्रातृभिः सह ।। | 4-1-20a |
प्रबुध्य दुःखमोहार्तो धौम्यं धर्मभृतांवरम् । | 4-1-21a 4-1-21b |
अथ धौम्योऽब्रवीद्वाक्यं महार्थं नृपतिं तदा। | 4-1-22a 4-1-22b |
राजन्विद्वान्भवान्दान्तः सत्यसन्धो जितेन्द्रियः। | 4-1-23a 4-1-23b |
देवैरप्यापदः प्राप्ताश्छन्नैश्च बहुभिस्तदा। | 4-1-24a 4-1-24b |
दितिपुत्रैर्हृते राज्ये देवराजः सुदुःखितः। | 4-1-25a 4-1-25b |
इन्द्रेण निषधं प्राप्य गिरिप्रस्थाह्वये पुरे। | 4-1-26a 4-1-26b |
प्रसादाद्ब्रह्मणो राजन्दितेः पुत्रान्महाबलान् । | 4-1-27a 4-1-27b |
विष्णुनाऽश्मगिरिं प्राप्य तदा दित्यां निवत्स्यता। | 4-1-28a 4-1-28b |
प्रोष्य वामनरूपेण च्छन्नेन ब्रह्मचारिणा। | 4-1-29a 4-1-29b |
और्वेण वसता छन्नमूरौ ब्रह्मर्षिणा तदा। | 4-1-30a 4-1-30b |
प्रच्छन्नेनापि सर्वत्र हरिणा वृत्रनिग्रहे। | 4-1-31a 4-1-31b |
हुताशनेन यच्चापः प्रविश्य च्छन्नमूषितम्। | 4-1-32a 4-1-32b |
यथा विवस्वता तात छन्नेनोत्तमतेजसा। | 4-1-33a 4-1-33b |
विष्णुना वसता चात्र गृहे दशरथस्य वै। | 4-1-34a 4-1-34b |
एवमेते महात्मानः प्रच्छन्नास्तत्रतत्र हि। | 4-1-35a 4-1-35b |
वैशंपायन उवाच। | 4-1-36x |
इति धौम्येन धर्मज्ञो वाक्यैः स परिहर्षितः। | 4-1-36a 4-1-36b |
अथाब्रवीन्महाबाहुर्भीमसेनो महाबलः। | 4-1-37a 4-1-37b |
अवेक्षय महाराज तव गाण्डीवधन्वना। | 4-1-38a 4-1-38b |
सहदेवो मया नित्यं नकुलश्च निवारितौ । | 4-1-39a 4-1-39b |
न वयं वर्त्म हास्यामो यस्मिन्योक्ष्यति नो भवान् । | 4-1-40a 4-1-40b |
इत्युक्तो भीमसेनेन धर्मराजो युधिष्ठिरः । | 4-1-41a 4-1-41b |
ये तद्भक्त्याऽभवंस्तस्मिन्वनवासे तपस्विनः । | 4-1-42a 4-1-42b 4-1-42c |
विदितं भवतां सर्वे र्धार्तराष्ट्रैर्यथा वयम्। | 4-1-43a 4-1-43b 4-1-43c |
अज्ञातचर्यासमयं शेषं वर्षं त्रयोदशम्। | 4-1-44a 4-1-44b |
इत्युक्ता धर्मराजेन ब्राह्मणाः परमाशिषः । | 4-1-45a 4-1-45b |
सर्वे वेदविदो मुख्या यतयो मुनयस्तदा। | 4-1-46a 4-1-46b |
ते तु भृत्याश्च दूताश्च शिल्पिनः परिचारकाः। | 4-1-47a 4-1-47b |
सह धौम्येन विद्वांसस्तथा ते पञ्च पाण्डवाः। | 4-1-48a 4-1-48b |
क्रोशमात्रमतिक्रम्य तस्माद्वासान्निमित्ततः । | 4-1-49a 4-1-49b |
पृथक् शास्त्रविदः सर्वे सर्वे मन्त्रविशारदाः । | 4-1-50a 4-1-50b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
4-1-1अयमध्यायो झo पुस्तके वनपर्वान्तिमाध्यायतया वर्तते। विराटo।
विराटपर्व | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | विराटपर्व-002 |