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पृष्ठम्:Advaita Siddhi with Guru Chandrika vyakhya.djvu/११९८

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सं. पु. 1 1 - 2 323 विधिना त्वेकवाक्यत्वात् — जै सू. 1-1-7 325 विधौ विधायके शब्दे - अध्यासभा. व्या. कल्प. 270 विनञ्भ्यां नानाजौ-पा. सू. विपर्ययेण तु क्रमः- -ब्रह्म. सू. विप्रतिषिद्धधर्माणाम् – जै. सू. विप्रतिषेधाद्विकल्पः – जै. सू. 2 201 2 266 1 :329 1 2 295 2 110 2 431 1 185 1 329 विभागश्रुतः प्रायश्चित्तम् जै. विभूतिं प्रसवं त्वन्ये - गौ. का. 330

36

231 2 236 1 298 2 203 2 406 2 197

2:270

166 165 5-2-27 2-3-14 12-2-22 6-5-51 सू. विमुक्तश्च विमुच्यते - कठ. 5-1 विरुद्धमिति नः क्व प्रत्ययः- विभ्रमहंतूनां विचित्रत्वात् सि. वि. 1 श्लो. व्या. विभेदजनक - वि. पु. 6-7-16 विमतं ज्ञानव्यतिरेकेण – ? गौ. 6-5-49 1-7 -भाम. 1-1-1 ब्र. सि. 63 पुट. विरुद्धवत्प्रतीयन्ते -- ? सू. विरोधे त्वनपेक्षम् - जै. विवर्तवादस्य हि - - सं. शा. विवादपदं प्रमाणशानम् - विवरण 100 पुट. विविदिषन्ति यज्ञेन — बृ. 1-4-22 विशेष्यं नाभिधा गच्छेत् ? विश्वमन्तरिक्षं च - मा. भा. 1--4--11 विश्वमा प्रा- -ऋ. सं. 1-1-14 विश्वस्य योनिः – ? 2-7-3 1−3 3 2-61 1 1 3 6 1 343 विश्वं सत्यम् – ऋ. सं. 3 87 विश्वो हि स्थूलभुक्- 1 50 विषयावभासाभवात् - विवरण 1-1-2 3 35 विषयनिरूप्यं हि ज्ञानम् – ? 2 235 विषयाविषयौ–तन्त्र. 88 का. 1-3 16*