पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/८४

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७६ ] स्वाराज्य सिद्धि श्रश क्या है? और उसका योग कॅसे है ? श्रात्मा क्या है? चेतन की जड़ता किस कारण है? कैसे उत्पन्न होती है ? उसका कर्तव्य किस प्रकार है ? देव पूजक पशु कर्मठों से जीव तत्व का निरूपण करना कठिन है ॥३८॥ (आत्मा एक: चिज्जडात्मा न स्यात् ) श्रात्मा एक होते हुए चित् जड़ रूप नहीं हो सकता, क्योंकि एक श्रधिकरण में विरुद्ध धर्मो का समावेश हो नहीं सकेगा । (अथ) चेतन और जड़ रूपता की उक्ति से अनन्तर विचार किया जाता है कि जड़ रूपता का ज्ञान किससे होगा । जड़ रूप आत्म श्रश का जड़ रूअसे ही अर्थात् यूपने से ही तो ज्ञान हो नहीं सकेगा। अन्यथा घटादिक जड़ पदार्थ भी अपने को श्राप ही प्रकाशेगे और ऐसा होने पर प्रकाशक यह कथन व्यर्थ होगा और यदि कहे कि. जड़ अंश का चेतन अंश से ज्ञान होता है सो यह कहना भी आत्माश्रय दोषं होने से संभव नहीं । ( विषय:) जड़ अंश चेतन अंश का विषय दै तो (सः) वह आत्मा (स्वस्य विषय: स्वयं कथं स्यात् ) अपना विषय आप ही कैसे हो सकता है ? यदि ऐसा कहे केि दोनों अंशों के अंशी से अभेद होने पर भी उक्त दोनों अंशों का परस्पर भेद ही है इसलिये अंशों का विषय विषयी भाव बन सकता है, आत्माश्रय दोष नहीं श्राता, तो यह कहना भी संभव नहीं क्योंकि (तौ अंशौ कौ) चिद् रूप और श्रचिद् रूप श्रअंश. क्या हैं (योगः) और तिन श्रअंशों का क्या संबंध है ? भाव यह है कि न तो उन अंशों को श्रवयव रूपता निरूपण कर सकते हैं श्रऔर न श्रअंशों का कोई संबंध निरूपण कर सकते हैं। अन्यथा आत्मा को सावयवादि प्रसंग प्राप्त होने से अनित्यता दोष प्राप्त होगा और श्रान्नत्यता स कृतनाश, श्रकृताभ्यगम श्रादि दोष प्राप्त