पृष्ठम्:स्वराज्य सिद्धि.djvu/८२

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प्रकरणं १ श्लो० ३

चेतन के समान हान स श्रात्मा से भिन्न नहीं होगा श्रार आत्मा और ज्ञान का विरुद्ध धर्म होने से जड़ रूप अणु आत्मा का चेतन रूप ज्ञान गुण सब शरीर में कैसे व्याप्त होगा ? आत्मा का अणु परिणाम तुझे किस प्रमाण स सिद्ध है ? श्रुति से ऐसा नहीं कहना चाहिये क्योंकि यह श्रति आत्मा की अपरिच्छिन्नता के तात्पर्य वाली है ॥३७॥
( ) हे यादी तुम्हारे मत में (यदि चित्स्वरूपः अणु श्रान्मा ) यदि चेतन स्वरूप श्रगु परिमाण वाला आत्मा है, तो नृम्हारे मन में (मकल तनौ ) सारे ही शरीर में अर्थात् आत्मा मे मंबंध वाले अग्गुरुरूप शरीर के अवयव से भिन्न सर्व ही शरीर में (शैत्य योधा न स्यान् ) शीतलता का ज्ञान नहीं होगा ।
पूर्व पक्ष - आत्मा ‘सर्व शारीरावयवव्यापि' तथा ज्ञान. गुण वाला , श्रत: मागे मत में यह उत्क्त दोष नहीं आता ।
ममाधान-ट बादिन गुणा गुणी भाव वैधम्र्यता में ही देखने में श्राता हैं । तुम्हारे भत में श्रात्मा भी चेतन है और ज्ञान गुण भी चेनन ई इम्म प्रकार से ( अवैधम्ये ) वैधम्र्यता का अभाव होने पर ( मकलननु गन ग्राहक: ) सर्व ही देह गत शीतलता श्रादिकों के प्रया का कर्ना ( श्रस्य ) इस आत्मा का (बोधो गुणश्च ) ज्ञांन मंतक गुरा भी ( अन्यो न स्यात्) चेतनता ममान होने मे श्रान्मा मे भिन्न नहीं होगा । और ( वैधम् ) आत्मा और ज्ञान की विधर्मता होने पर (अणो; ) जड़ रूप श्रणु श्रात्मा का ( चिन् गुगा: ) वेतन् रूप ज्ञान गुण (अखि लतनु कथम ) मत्र ही शरीर का किस प्रकार ( व्याप्नुयात्) व्याप्त करेगा । भान्न यह है कि गुरएा गुणी की समान देशता का