७२ स्वाराज्य'सिद्धि
इस शरीर में बुद्धि का पर्याय नित्य विज्ञान है। यह
मन के समान हे, श्रात्मा नहीं है । यदि होता तो उस
विज्ञान के अनेक रुप होने से अनेक श्रात्मा हो जायेंगे ।
विज्ञान में तादात्म्य ज्ञान के हेतु से आत्मा का बंध सुना
गया है । शरीर रूप रथ में यह सारथी है यह कल्पना की
गई है। इससे भी विज्ञान का साक्षी उपहित चेतन वास्तव में
सबके आन्तर रहा हुश्रा आत्मा है और वह विज्ञान से
पृथक् है यही ज्ञात होता है ॥३६॥
(इह) इस शरीर में (स्थायि यत् विज्ञानम्) बुद्धिं का अपर
पर्याय जो नित्य विज्ञान है { तत्) वह बुद्धि रूप नित्य विज्ञान
भी (मनसा समम्) उत्पत्ति श्रादिक उक्त आठ हेतुश्रों में मन के
ही समान है। अर्थ यह है कि उत्पत्ति आदिक उक्त हेतुओं से
बुद्धि भी अनात्मा ही है। यदि यह विज्ञान आत्मा माना जावेगा
ता (नानाऽऽत्मता स्यान्) शरीर में अनेक आत्मा हो जावेंगे
क्योंकि ( तस्य अनेकात्मकत्वात्) उस विज्ञान के अनेक रूप
होते हैं। अर्थ यह है कि बुद्धि सावयव है और अवयवावयवी का
तादात्म्य होता है, इसलिये शरीर में नाना आत्मा हो जावेंगे और
श्रात्मा का नानात्व इष्ट नहीं है। इस कथन से बुद्धि की अनि
त्यता भी कही गई जान लेनी चाहिये क्योंकि जहां जहां सावय
वता होती है, तहाँ तहाँ अनित्यता भी अवश्य ही होती है, किंच
( तदभिमतिवशात्) विज्ञान में तादात्म्य अध्यास रूप हेतु से
(आत्मबन्धश्रुतेश्च) आत्मा को बंध होता है, ऐसी श्रुति है इस
कारण से भी आत्मा बुद्धि से भिन्न है। तथा (स्वात्मनः भोग
मुक्तयो:) आत्मा के भीग मोक्ष का यह विज्ञान निमित्त है, इस