प्रकरण १ श्लो० २२ [ ४१ मिदमुत प्रौढिरेषा त्वदीया किंवा मोहात्प्रलापः किमथ जड जगद्विप्रलिप्सा कुबुद्धे ।।२२।। हे वेदबाह्य सुगत, तुझे पूछते हैं कि शरीर के बाहर पदार्थ क्षणिक हैं, पृथ्वी आदि चारों भूतों के समुदाय भोग्य है और शरीर के भीतर बाहर के पदार्थों के समान क्षणिक रूप स्कंधों के पंचक को तू भोक्ता समुदाय कहता है, हे कुबुद्धि, तुझे क्या इस क्षणिकता का प्रमाण से निश्चय हुआ है, अथवा क्षणिकत्व तेरी बुद्धि का वैभव है अथवा भ्रांति से ही तू यह बकता है अथवा जगत् को ठगने के लिये ऐसा कहता है ॥२२॥ प्रथम यह बात जानना आवश्यक है कि सर्व वैनाशिक के मंद, मध्यम और उत्तम शिष्यों के भेद से यह मत तीन प्रकार का है। यह वार्ता बोध चित्त बिवरणनामक ग्रंथ में कही है। देशना लोक नाथानां सत्त्वाशय वशानुगाः । भिद्यन्ते बहुधा लोक उपायैर्बहुभिः पुनः ॥१॥ गंभीरोत्तान भेदेन क्वचिचोभय लक्षणा । अभिन्ना देशनाििभन्नाशून्यताऽद्वयलक्षणा ॥२॥ (देशनाः) आगम (गंभीरः) अगाध (उत्तान: ) स्थूल दृष्टि योग्य (उभय लक्षणा) ज्ञान मात्र अस्तित्व और बाह्य अर्थ अस्तित्व लक्षण । यहां वैभाषिक और सौत्रान्तिक अवांतर भेदवादी हुए भी सर्वास्तित्व वादी हैं, योगाचार विज्ञान मात्र अस्तिवादी हैं और
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