४२ ] स्वाराज्य सिद्धि माध्यमिक सर्वशून्य वादी हैं। तीनों में से पहले सर्वास्तित्वादिश्रों का मत खंडन करना है इसलिये उनके मत की संकेत प्रक्रिया बतलाई जाती है। सर्वास्तित्ववादियों के मत में पृथिवी आदि रूप श्रादि तथा चतु श्रादि बाह्यपदार्थो का अंगीकार है और चित्त तथा काम आदिक चैत्तरूप प्रांतर पदार्थो का अंगीकार है । पृथिवी श्रादि चारों भूतोंके परमाणु क्रम से कठिन, स्निग्ध, उष्ण तथा चलन स्वभाववाले पृथिवी श्रादि भाव से एकत्रित होते हैं श्रथात् पृथिवी श्रादि चारों भूतों के परमाणु मिलकर पृथिवी श्रादि स्थूल भाव को प्राप्त होते हैं, और रूपस्कंध, विज्ञानस्कंध, वेदनास्कंध, संज्ञास्कंध तथा संस्कारस्कंध ये पांचोंस्कंध उक्त भूत भौतिकों से भिन्न श्रांतर चित्त, वैत्त या आध्यात्मिक कहे जाते हैं । सविषय इन्द्रियों का नाम रूप स्कंध है । रूप्यमान पृथ्वी श्रादिक यद्यपि बाह्य हैं तथापि कार्य में श्रश्चत् शरीर में स्थिति होने से अथवा इद्रियों के संबंध से ये श्राध्यात्मिक हैं । (श्रहं ) अहं इस श्राकार वाला श्रालय विज्ञान और रूप आदिकों को विपय करने वाला इद्रिय जन्य ज्ञान यह दोनों ज्ञान विज्ञान स्कंध कहा जाता है। सुख श्रादिकों का अनुभव वेदना स्कंध कहा जाता है। यह डित्थ हैं, गौर है ब्राह्मण है. जाता है, इस प्रकार नाम विशिष्ट सविकल्पक प्रत्यय संज्ञा स्कंध कहा जाता है। तथा राग, द्वेष, मद, मोह, धर्म और अधर्म संस्कार स्कंध कहा जाता है। इन सबका संघात ही आत्मा है जो सकल लोक यात्रा का निर्वाहक है। यह सर्वास्तित्ववादिश्रों के मत का संक्षेप है । ( वेदवाह्य: सुगतः ) वेद विरोधी नास्तिक बुद्ध को ( पृच्छथ ताम् ) पूछना चाहिये कि (जड़ कुबुद्धे ) हे जंड़ कुबुद्धे ( बाह्य क्षणिकम् ) शरीर से बहिर स्थित
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